चुनाव आयुक्त चावला को लेकर सरकार ने कहा, मामले की समीक्षा की जाएगी (राउंडअप)
गोपालस्वामी ने बतौर चुनाव आयुक्त चावला की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए उन्हें पद से हटाने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिशी पत्र लिखा है। उधर चावला ने इस्तीफा देने से साफ इंकार कर दिया है।
इस अप्रत्याशित घटना से देश में एक प्रकार का राजनीतिक बवंडर मच गया है। बहरहाल, सीईसी की इस सिफारिश के बाद चावला के भविष्य को लेकर भी अटकलें तेज हो गई हैं।
इस राजनीतिक बवंडर के बीच सरकार की ओर से देर शाम यह स्पष्ट किया गया कि गोपालस्वामी की सिफारिश की समीक्षा की जाएगी। विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने पत्रकारों से कहा, "इस मामले की समीक्षा की जाएगी और सरकार के निर्णय के बारे में सभी को अवगत करा दिया जाएगा।"
इससे पहले इस मामले पर गोपालस्वामी ने कुछ भी विस्तृत जानकारी देने से इंकार कर दिया। उन्होंने संवाददाताओं से सिर्फ इतना कहा कि सरकार को एक विशेषाधिकार युक्त दस्तावेज भेजा गया है।
जब उनसे यह पूछा गया कि उन्होंने राष्ट्रपति को दस्तावेज कब भेजा तो उन्होंने कहा, "जब राष्ट्रपति ने दस्तावेज प्राप्त किया।"
राष्ट्रपति भवन के एक प्रवक्ता के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त का पत्र पिछले हफ्ते प्राप्त हुआ था।
इस बीच, चावला ने गोपालस्वामी द्वारा खुद को हटाने की अनुशंसा संबंधी खबरों पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि उनका इस्तीफा देने का कोई इरादा नहीं है।
चावला ने आईएएनएस से कहा, "मुझे इस्तीफा क्यों देना चाहिए? हमें अभी आगामी लोकसभा चुनाव को पूरी एकता और गरिमापूर्ण ढंग से संपन्न कराना है।"
उन्होंने कहा, "मुख्य निर्वाचन आयुक्त की ओर से राष्ट्रपति को भेजे पत्र के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है।"
चावला ने कहा, "देश में चुनाव आयोग वर्षो से निष्पक्ष चुनाव कराता रहा है और हमें भी इसी परिपाटी को आगे जारी रखना है।"
उधर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कहा है कि नवीन चावला कभी भी राजनीतिक रूप से निष्पक्ष नहीं रहे।
भाजपा महासचिव अरुण जेटली ने संवाददाताओं से कहा कि चावला राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। वे सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के करीब हैं।
जेटली ने दावा किया कि चावला को हटाने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश ही काफी है। सीईसी की यह सिफारिश मानने को सरकार बाध्य है।
चावला को तत्काल पद से हटाए जाने की मांग करते हुए जेटली ने कहा कि उन्हें चुनावी प्रकियाओं से भी दूर रखा जाना चाहिए। पार्टी ने इसके साथ ही सीईसी द्वारा की गई सिफारिश को भी सार्वजनिक करने की मांग की।
उल्लेखनीय है कि भाजपा ने वर्ष 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के सामने चावला को चुनाव आयुक्त के पद से हटाने के लिए याचिका पेश की थी। पार्टी ने इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भी याचिका दाखिल की थी लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। याचिका वर्ष 2007 में वापस ले ली गई।
इसी बीच कांग्रेस ने भाजपा पर इस मामले का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा, "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा इस मसले पर राजनीति कर रही है। आयोग के अन्य सदस्यों के बारे में हम भी कह सकते हैं लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे। सरकार इस समस्या का हल निकालेगी। "
कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने आईएएनएस को बताया, "राष्ट्रपति कार्यालय ने सीईसी से पत्र प्राप्त होने की पुष्टि की है। सरकार ने मामले को अपने अधिकार में ले लिया है और वह यह तय करेगी कि इस मामले के साथ कैसे निपटा जाए।"
गोपालस्वामी की सिफारिश को लेकर संविधान विशेषज्ञों में दो तरह की राय सामने आई है।
संविधान विशेषज्ञ के.के.वेणुगोपाल का कहना है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को किसी अन्य चुनाव आयुक्त को हटाने की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है।
जाने-माने कानून विशेषज्ञ फली नरीमन ने भी गोपालस्वामी के कदम को उचित नहीं ठहराया है।
हालांकि वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन का विचार इससे अलग है। उन्होंने कहा, "मुख्य चुनाव आयुक्त होने के नाते यह उनका नैतिक व कानूनी कत्र्तव्य बनता है कि वह चुनावी प्रक्रिया की शुद्धता व ईमानदारी को बनाए रखें।"
धवन का कहना है, "यदि मुख्य चुनाव आयुक्त किसी चुनाव आयुक्त को पक्षपाती पाते हैं तो राष्ट्रपति से उसे हटाने की अनुशंसा करने के लिए वह पूरी तरह अधिकृत हैं।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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