इस युग में है कंपनी सचिव का बोलबाल
नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। व्यवसाय जगत में 'सेक्रेटरी' (सचिव) शब्द का अनुपयुक्त अर्थ लिया जाता है। विशेष रूप से वह व्यक्ति गलत अर्थ लेता है जिसे इस शब्द की संकल्पना की समुचित जानकारी नहीं है। कंपनी सचिव को नियमित अनाप-शनाप सचिवीय कार्य-टाइपिंग, डिक्टेशन, फाइलें रखने या पत्राचार जैसे कार्यो से कुछ लेना-देना नहीं है। विधिक विषयों पर सलाहकार के रूप में कंपनी सेक्रेटरी किसी कॉरपोरेट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 383-ए के अनुसार, सांविधिक रूप से यह जरूरी है कि न्यूनतम पचास लाख रुपये की प्रदत्त पूंजी वाली कंपनियां कंपनी सेक्रेटरी की नियुक्ति करें। पचास लाख रुपए से कम प्रदत्त पूंजी वाली कंपनी के मामले में इंटरमीडिएट उत्तीर्ण व्यक्ति भी इस नियुक्ति के पात्र है। इसलिए कंपनी सचिव किसी भी कंपनी के प्रबंधन का महत्वपूर्ण अंग है।
कंपनी सचिव की जिम्मेदारी संगठन और उसके आकार-प्रकार पर निर्भर करती है। कंपनी के कार्य-कलापों के स्वरूप का कंपनी सचिव के कार्य पर प्रभाव पड़ता है।
विधि के तहत कंपनी सचिव को कंपनी में महत्वपूर्ण दर्जा दिया गया है। कंपनी की सफलता या असफलता की जिम्मेदारी काफी हद तक इस विशिष्ट पद पर जाती है। अत: व्यावसायिक दृष्टि से कंपनी सचिव के रूप में प्रशिक्षित होना जरूरी है।
कंपनी, निदेशक मंडल, शेयर धारकों तथा सरकारी और नियामक एजेंसियों को जोड़नेवाली महत्वपूर्ण कड़ी 'कंपनी सचिव' ही होता है। किसी संगठन में कंपनी सचिव की जिम्मेदारियां इस प्रकार होती हैं- कंपनी का प्रमुख अधिकारी होने के नाते वह तमाम सचिवालय संबंधी कार्यो की देखरेख करता है। इसमें कार्य सूची तैयार करना, निदेशक मंडल की बैठकें, शेयर धारकों की वार्षिक आम बैठकें, अंतरविभागीय बैठकें, विदेशी शिष्टमंडलों की बैठकें, वित्तीय संस्थाओं, नियामक प्राधिकारियों की बैठकें आयोजित करने, बुलाने तथा कार्यवृत्त तैयार करने का कार्य शामिल है।
सचिव कंपनी के रजिस्ट्रार के रूप में कार्य करता/करती है। कंपनी के निगमीकरण, संघटन, समामेलन, पुर्नसगठन या बंद करने के लिए आवश्यक कानूनी पहलुओं को व्यावहारिक रूप देना भी कंपनी सचिव की जिम्मेदारी है। अंत: निगम निवेश तथा ग्रहण से जुड़ी समस्त जिम्मेदारियां कंपनी सचिव द्वारा देखी जाती हैं। निदेशक मंडल की बैठकों से जुड़ी समस्त जिम्मेदारियां कंपनी सचिव के पद से जुड़ी हैं। यह अधिकारी अन्य सदस्यों की सलाह से बैठकों की समय-सूची तैयार करता है। बैठकें आयोजित करता है और संबंधित रिकार्ड रखता है।
कंपनी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कंपनी सचिव कर संबंधी मामले तथा उत्पाद विधि, श्रम विधि एवं निगम विधि जैसी अन्य विधियों से जुड़े मामले संभालता है। उसके कार्यो में बोर्ड के विचाराधीन प्रस्तावों के विस्तार के संबंध में निदेशक मंडल को सलाह देना भी शामिल है।
निगमित विकास योजनाकार के रूप में वह विस्तार संबंधी अवसरों का अभिनिर्धारण करता है, सहयोग समामेलन, आमेलन, अधिग्रहण, ग्रहण, विनिवेश, नियंत्रित कंपनियों की स्थापना तथा भारत में और भारत से बाहर संयुक्त उद्यम खोलने की व्यवस्था करता है। सचिव प्रबंधन नियुक्तियों से संबंधित आवेदन पत्रों और उनकी आमदनी से संबंधित कार्रवाई करता है।
कंपनी सचिव संस्थागत वित्त प्राप्त करने के लिए सभी संबंधित मामले देखता है। इस संबंध में उसके कार्यो में परियोजना संबंधी अनुमोदन प्राप्त करना, लाइसेंस और परमिट लेना, एकाधिकार और प्रतिबंधित व्यापार पद्धति (एमआरटीपी), विदेशी मुद्रा विनिमय विनियमन अधिनियम (एफइआरए) जैसे विनियमों और विभिन्न अधिनियमों के तहत अपेक्षाओं की सूची तैयार करना आदि कार्य शामिल हैं।
कंपनी सचिव कंपनी की वार्षिक विवरणिकाओं पर हस्ताक्षर करने और आवश्यकता पड़ने पर कंपनी का प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिकृत है। यदि आवश्यक हो तो सार्वजनिक क्षेत्र का प्रबंध कार्य भी कंपनी सचिव की जिम्मेदारी के दायरे में आ जाता है।
भारतीय कंपनी सचिव संस्थान एकमात्र संगठन है, जहां इस विशेष व्यवसाय में प्रशिक्षण दिया जाता है। कंपनी सचिव अधिनियम, 1980 के तहत भारत में कंपनी सचिव के व्यवसाय के विकास एवं नियमन के लिए गठित यह सांविधिक निकाय है। यह संस्थान कंपनी विभाग, विधि, न्याय और कंपनी कार्य, मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रणाधीन कार्य करता है।
कंपनी सचिव परीक्षा के आयोजन के अलावा यह संस्थान व्यावहारिक प्रशिक्षण के बाद योग्य छात्रों को सदस्यों के रूप में नामित करता है। व्यावसायिक लोकाचार, आचार संहिता से संबंधित मामलों में सदस्यों पर व्यावसायिक स्तर पर नियंत्रण रखता है तथा नियमित आधार पर व्यावसायिक विकास की दृष्टि से निरंतर शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन करता है। यह संस्थान शोध पत्र-पत्रिका, मार्गदर्शन नोट, सचिवीय मानक तथा निगमित कार्यपालकों के लिए 'चार्टर्ड सेक्रेदरी'और विद्यार्थियों के लिए 'स्टूडेंट कंपनी सेक्रेटरी' तथा 'सीएस फाउंडेशन पाठ्यक्रम बुलेटिन' प्रकाशित करता है।
डाक माध्यम से आईसीएसआई द्वारा चलाया जा रहा यह पाठ्यक्रम शिक्षण और वैकल्पिक कोचिंग कक्षाओं का मिश्रित रूप है। प्रवेश के समय छात्रों को अध्ययन सामग्री दी जाती है।
डाक माध्यम से कोचिंग और कॉन्टेक्ट कक्षाओं के समापन पर यदि विद्यार्थी ऐसा विकल्प चुनता है तो वह संस्थान की परीक्षाओं में बैठने का पात्र होगा। परीक्षा से कम से कम नौ माह पहले प्रत्येक परीक्षा के लिए निबंधन (रजिस्ट्रेशन) कराना जरूरी है। प्रति वर्ष जून और दिसंबर में छत्तीस केंद्रों में यह परीक्षा ली जाती है।
कंपनी सचिव के रूप में प्रशिक्षण के बुनियादी पाठ्यक्रम के लिए न्यूनतम पात्रता 10+2 या समतुल्य परीक्षा है। सीएस के प्रशिक्षण के तीन स्तर हैं - आधारभूत या बुनियादी, इंटरमीडिएट तथा अंतिम। यदि आप आईसीएसआई के सदस्य बनना चाहते हैं तो आपको ये तीनों परीक्षाएं उत्तीर्ण करनी होंगी तथा इसके अलावा सोलह माह का प्रशिक्षण लेना होगा। वाणिज्य या किसी अन्य विद्या के स्नातक या स्नातकोत्तर आधारभूत पाठ्यक्रम छोड़कर सीधे परीक्षा में नाम लिखा सकते हैं लेकिन ललित कला का विषय इसका अपवाद है।
आईसीडब्ल्यू (इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया) की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके अभ्यार्थियों को भी यह छूट प्राप्त है। अंतिम परीक्षा में बैठनेवाले व्यक्ति का लाइसेंशिएट आईसीएसआई के रूप में नाम लिखा जा सकता है। अंतिम परीक्षा उत्तीर्ण करने तथा व्यावहारिक प्रशिक्षण लेने के बाद व्यक्ति एसोशिएट सदस्य के रूप में प्रवेश लेने का पात्र होगा।
आधारभूत पाठ्यक्रम में व्यवसाय प्रशासन, व्यवसाय विधि तथा प्रबंधन, लेखाकरण के सिद्धांत, अर्थशास्त्र एवं सांख्यिकी विषय पढ़ाए जाते हैं। इंटरमीडिएट स्तर पर सामान्य विधि तथा पद्धतियां, कार्मिक प्रशिक्षण एवं औद्योगिक विधि, कर-विधि, लागत एवं प्रबंधन तथा लेखा जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं। अंतिम परीक्षा स्तर पर वित्तीय प्रबंधन, प्रबंधन, नियंत्रण और सूचना, निगमित कर प्रबंधन-प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर, निगमित विधि आदि विषय पढ़ाए जाते हैं।
उदारीकरण के साथ निगमित क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई है, जिससे विभिन्न प्रकार की कानूनी खामियां भी आई गई हैं। कंपनी सचिव इस संबंध में सेवाएं प्रदान करता है। इसलिए कॉरपोरेट क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं बहुत अधिक बढ़ चुकी हैं। लोक उद्यम ब्यूरो, सरकारी वित्तीय संस्थाओं एवं स्टॉक एक्सचेंज जैसी सरकारी क्षेत्र की संस्थाओं में भी रोजगार के अवसर बढ़े हैं। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार की विधि सेवाओं तथा वित्त, विधि, लेखा, वित्तीय संस्था, स्टॉक एक्सचेंज, राष्ट्रीयकृत बैंकों की मर्चेट बैंकिंग डिवीजन की लेखा शाखाओं में भी नई-नई संभावनाएं सामने आई हैं। शैक्षणिक क्षेत्र में विश्वविद्यालयों में प्रवक्ता बनने की ओर अधिक रुझान दिखाई दे रहा है। अनुभव और विशेषज्ञता के बलबूते पर व्यक्ति प्रतिष्ठित संगठन में चेयरमैन, प्रबंध निदेशक तथा निदेशक जैसे शीर्ष पदों तक पहुंच सकता है।
स्टॉक एक्सचेंज की सूची में शामिल होने की इच्छुक सभी कंपनियों के लिए जरूरी है कि वे पूर्णकालीन सीएस की नियुक्ति करें। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के शिक्षा विभाग ने वरिष्ठतर पदों तथा केंद्र सरकार के अंतर्गत सेवाओं में नियुक्ति के लिए आईसीएसआई की सदस्यता को मान्यता प्रदान की है। कंपनी कार्य विभाग की केंद्रीय कंपनी विधि सेवा की लेखा शाखा में ग्रेड 1 से ग्रेड 4 भर्ती के लिए आईसीएसआई की सदस्यता अनिवार्य योग्यता है। आईबीए (भारतीय बैंक संघ) ने बैंकों से सिफारिश की है कि वे वित्त, लेखा, विधि और मर्चेट बैंकिंग के क्षेत्र में विशेषज्ञों के रूप में कंपनी सचिव की नियुक्ति करने पर विचार करें।
प्रैक्टिस करनेवाले कंपनी सचिव की सेवाओं की भी तब आवश्यकता पड़ती है, जब अपेक्षित प्रमाण-पत्र के प्रयोजन से कंपनी को सचिवीय लेखा परीक्षा की जरूरत होती है। ऐसी लेखा परीक्षा से प्रबंधन वर्ग को यह सहायता मिलेगी कि विशेषज्ञ व्यावसायिक, कंपनी सचिव की सहायता से कंपनी द्वारा आत्मनियंत्रण की अवधारणा के संवर्धन तथा अनुपालन में आनेवाली कमियां बताई जा सकें एवं सुधार लाया जा सकें।
(कैरियर संबंधी और अधिक जानकारी के लिए देखिए ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली से प्रकाशित ए. गांगुली और एस. भूषण की पुस्तक "अपना कैरियर स्वयं चुनें" )
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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