पेंच राष्ट्रीय उद्यान में दस शावकों के जन्म से आई बहार
भोपाल, 7 जून (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में स्थित इंदिरा प्रियदर्शिनी पेंच राष्ट्रीय उद्यान में एक पखवाड़े में हुए 10 शावकों के जन्म से बहार आ गई है। इन शावकों की उछलकूद हर किसी को लुभा रही है और उद्यान के प्रबंधन से लेकर पर्यटक तक इन शावकों की उछलकूद का आनन्द ले रहे हैं।
टाइगर स्टेट के नाम से पहचान बना चुका मध्यप्रदेश का पेंच राष्ट्रीय उद्यान मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र में फैला हुआ है। इसका 411 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मध्यप्रदेश में है जबकि 257 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र महाराष्ट्र में आता है।
उद्यान के सूत्रों के अनुसार पिछले पखवाड़े तीन बाघिनों ने शावकों को जन्म दिया। एक बाघिन ने चार शावकों को और दो बाघिनों ने 3-3 शावकों को जन्म दिया। संभवत: यह पहला मौका है जब एक पखवाड़े के भीतर किसी राष्ट्रीय उद्यान में 10 शावकों का जन्म हुआ है।
पेंच राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक एल. एस. डोगरियाल इस उपलब्धि से फूले नहीं समा रहे हैं। वे इसे उद्यान में उपलब्ध सुविधाओं और साधनों का नतीजा मानते हैं। उन्हें उम्मीद है कि आने वाले समय में पेंच उद्यान में और नए मेहमानों का आगमन हो सकता है।
वन्यप्राणी विशेषज्ञ मनीष भटनागर ने कहा कि इस उद्यान में वन्य प्राणियों के अनुकूल वातावरण है। यहां मौजूद बाघों को पानी के अलावा वे सारी सुविधाएं आसानी मिल रही हैं, जिनकी उन्हें जरूरत है। अब उन्हें पानी आदि के लिए भटकना नहीं पड़ता और इसी वजह से उनकी अकाल मौतों के सिलसिले पर भी अंकुश लगा है।
भटनागर के अनुसार उद्यान के अंदर मौजूद तालाब, कुएं और पानी के अन्य स्रोत सूख चुके हैं पर उन्हें उद्यान प्रबंधन ने टैंक आदि से पानी पहुंचाकर भर दिया है। उन्होंने कहा कि इस उद्यान में बाघिन तो हैं मगर बाघ कम हैं।
अब से एक पखवाड़े पहले तक पेंच राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या 33 और शावकों की संख्याा 12 थी। 10 शावकों के जन्म लेने से यह आंकड़ा 22 तक पहुंच गया है। अब यहां पर वयस्क बाघों और शावकों की कुल संख्या 55 हो गई है।
वन्य प्राणियों विशेषज्ञों का मानना है कि बाघों में सबसे ज्यादा मौत शावकों की होती है। इस स्थिति में पेंच राष्ट्रीय उद्यान में आए 10 शावकों को सुरक्षित रख पाना प्रबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
वन्यजीव प्रेमियों का मानना है कि इन शावकों की आमद दो साल पहले सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान में हुई बाघों की मौत से मिले घावों पर मलहम की तरह है। उन्हें लगता है कि बाघों के अब अच्छे दिन आ गए हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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