इंदिरा, सोनिया और राहुल जब-जब डरे तब-तब दक्षिण भारत में ली शरण
इंदिरा गांधी और उनके परिवार को उत्तर भारत के चुनावी रण में जब-जब खतरा महसूस हुआ तब-तब वे राजनीतिक शरण के लिए दक्षिण भारत गये। इंदिरा गांधी 1977 में ऐतिहासिक हार से इतनी विचलित हो गयीं थीं कि उन्हें रायबरेली को दिल से ही उतार दिया था। सोनिया गांधी को जब राजनीति में स्थापित होना था तब उन्होंने 1999 में दो सीटों से चुनाव लड़ा था। सोनिया गांधी को रायबरेली में हारने का डर था इसलिए उन्होंने कर्नाटक के बेल्लारी से भी चुनाव लड़ा था। उन्हें भी लगा था कि अगर उत्तर भारत में हार भी गयीं तो दक्षिण भारत उनकी लाज बचा लेगा। इसी तरह 2019 में राहुल गांधी को भी अमेठी में हार का खतरा महसूस हुआ तो उन्होंने केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ा। यानी इंदिरा गांधी परिवार में शुरू से उत्तर बनाम दक्षिण की भावना रही है। वे अपने फायदे के लिए इसको भुनाते रहे हैं। चूंकि दक्षिण भारत में कांग्रेस मजबूत है इसलिए वे अक्सर सिर छिपाने के लिए यहां पहुंच जाते हैं।
वायनाड में ताजगी तो क्या अमेठी में घुटन?
अमेठी में राहुल गांधी चुनाव क्या हार गये उन्होंने पूरे उत्तर भारत की राजनीतिक शैली पर सवाल उठा दिया। अमेठी में राहुल गांधी को घुटन और केरल के वायनाड में ताजगी महसूस हो रही है। राहुल गांधी का कहना है कि केरल के लोग सतही नहीं बल्कि मुद्दों पर राजनीति करते हैं। तो क्या वे ये कहना चाहते हैं कि अमेठी या उत्तर भारत के लोग सतही राजनीति करते हैं ? अगर वे 15 साल से उत्तर भारत में 'दूसरे तरह की राजनीति' का सामना कर रहे थे तो अभी तक चुप क्यों थे ? ये बात उन्हें इतने दिन बाद क्यों याद आयी ? उनकी मां सोनिया गांधी अभी भी उत्तर भारत की रायबरेली सीट से सांसद हैं। तो क्या वे सतही राजनीति का हिस्सा हैं ? राहुल गांधी ने ऐसा कह कर क्या उत्तर भारत का अनादर नहीं किया है ? अमेठी में राहुल गांधी को हराने वाली स्मृति ईरानी ने इस रवैये के लिए उन्हें एहसान फरामोश कहा है।
राहुल गांधी ने कहा-'केरलवासी मुद्दों पर रखते हैं दिलचस्पी', भड़कीं स्मृति ईरानी
इंदिरा गांधी भी हार के बाद गयी थीं दक्षिण भारत
1977 में रायबरेली सीट पर इंदिरा गांधी की हार, भारतीय राजनीति का निर्णायक मोड़ था। इस हार को इंदिरा गांधी कभी पचा नहीं पायीं। कांग्रेस को 153 सीटें मिलीं थीं। लेकिन लोकसभा में इंदिरा गांधी नहीं थीं। कांग्रेस को सहारा देने के लिए इंदिरा गांधी का लोकसभा में पहुंचना जरूरी था। इमरजेंसी के कारण उत्तर भारत में तब कांग्रेस के खिलाफ जबर्दस्त गुस्सा था। अब सवाल था कि इंदिरा गांधी कैसे लोकसभा में पहुंचे ? कौन सी सीट उनके लिए सुरक्षित है ? इस तलाश में कांग्रेस की नजर कर्नाटक के चिकमंगलूर सीट पर जा कर ठहर गयी। उस समय कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार थी। देवराज अर्स मुख्यमंत्री थे। 1977 में चिकमंगलूर सीट से कांग्रेस के चंद्र गौड़ा जीते थे। इंदिरा गांधी के लिए चंद्र गौड़ा ने चिकमंगलूर सीट से इस्तीफा दे दिया। 1978 में यहां उपचुनाव कराया गया। इंदिरा गांधी खड़ी हुईं। उनके खिलाफ विपक्ष मे कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेन्द्र पाटिल को मैदान में उतारा। तब तक जनता पार्टी की मोरारजी सरकार में आंतरिक झगड़े शुरू हो चुके थे। जनता सरकार की गलतियों के कारण इंदिरा गांधी के लिए सहानुभूति पैदा होने लगी थी। नतीजे के तौर पर इंदिरा गांधी ने यह चुनाव करीब 77 हजार वोटों से जीता।
इंदिरा ने रायबरेली को उतार दिया था दिल से
जनता पार्टी में टूटफूट के बाद 1980 में लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ। अब सवाल था कि इंदिरा गांधी कहां से चुनाव लड़े ? इंदिरा गांधी मन मार के रायबरेली पहुंची थीं। लेकिन उनके मन में हार की पुरानी टीस कायम थी। तब वे सुरक्षित सीट की तलाश में फिर दक्षिण भारत पहुंची। इस बार उन्होंने तत्कालीन आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) के मेडक लोकसभा क्षेत्र में शरण ली। उन्होंने रायबरेली और मेडक दोनों सीटों से चुनाव लड़ा। संयोग से दोनों सीटों पर जीतीं। जब एक सीट छोड़ने की बात आयी तो उन्होंने रायबरेली से इस्तीफा दे दिया। जीत कर भी उन्होंने अपनी पारिवारिक सीट रायबरेली का प्रतिनिधित्व नहीं किया। रायबरेली से उनके पति फिरोज गांधी भी सांसद रहे थे। लेकिन एक हार ने इंदिरा गांधी को विचलित कर दिया था। उनका मन यहां से उचट गया था। 1980 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं तो वे दक्षिण भारत के मेडक सीट से सांसद थीं। इंदिरा गांधी के इस्तीफा देने के बाद रायबरेली में उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस के अरुण नेहरू वहां से जीते।
सोनिया भी पहुंची थीं कर्नाटक के बेल्लारी
1999 में सोनिया गांधी को चुनावी राजनीति में स्थापित होना था। उनके खिलाफ विदेशी मूल का मुद्दा जोरशोर से उछला हुआ था। तब सोनिया गांधी ने भी दो सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला किया। तयशुदा जीत की आस में वे भी दक्षिण भारत पहुंची। सोनिया ने कर्नाटक के बेल्लारी लोकसभा क्षेत्र से से भी किस्मत आजमाने की सोची। उन्होंने अमेठी और बेल्लारी से पर्चा दाखिल किया। दोनों सीटों पर जीत मिली। बाद में सोनिया गांधी ने बेल्लारी से इस्तीफा दे दिया। वे अमेठी से सांसद बनी रहीं। 2004 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने अमेठी सीट राहुल गांधी के लिए छोड़ दी। राहुल गांधी अमेठी से 2004, 2009 और 2014 में सांसद चुने गये। लेकिन 2019 के चुनाव में भाजपा की स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हरा दिया। राहुल गांधी की इस हार से कांग्रेस हिल गयी थी। इससे राहुल गांधी की भावी राजनीति को भी जोरदार धक्का लगा था। राहुल गांधी को भी अमेठी में चुनाव हारने का डर था इसलिए उन्होंने केरल के वायनाड को भी अपना संबल बना रखा था। आज वे सांसद हैं तो वायनाड की वजह से। इसलिए राहुल गांधी आज दक्षिण भारत का गुणगान कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने भारत को उत्तर और दक्षिण में बांट कर, और दक्षिण को बहुत अच्छा बता कर एक नये विवाद को न्योता दे दिया है।