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भूख इंसान को गद्दार बना देती है

By सलीम अख्तर सिद्दीकी
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Dal-Pulses
इस समय देश पर जो लोग शासन कर रहे हैं, वे लोग इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि गरीबों को जमाखोरों और मुनाफाखोरों के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है। जब हमारे कृषि मंत्री शरद पवार यह कहते हैं कि चीनी अभी और महंगी या अभी महंगाई जारी रहेगी तो इसमें साफ संदेश यह होता है कि जमाखोर खाद्यान्न का स्टॉक कर लें, उनका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। यह हैरत की बात है कि कोई राज्य सरकार जमाखोरों के खिलाफ कानून का डंडा चलाने के लिए तैयार नहीं है। सरकारें जमाखोरों की हिमायत करें भी क्यों नहीं, जब यह जमाखोर ही चुनाव लड़ने के करोड़ों रुपए चंदा देते हैं। इन पर कानून का चाबुक चल गया तो ये लोग सरकार से नाराज हो जाएंगे।

देश की जनता भले ही भूख से मर जाए लेकिन जमाखोरों और मुनाफाखोरों पर आंच नहीं आनी चाहिए। सच तो यह है कि यही जमाखोर और मुनाफाखोर राजनैतिक पार्टियों को चलाते हैं। भूखी जनता सरकार को क्या देती है। सिर्फ वोट ही ना। लेकिन वोटों को खरीदने के लिए पैसा तो सरमाएदार देते हैं। फिर बताइए सरकार पहले भूखे लोगों को ख्याल रखे या अपने 'पूंजीपति आकाओं' का। अब तो लोकसभा और विधान सभाओं में करोड़पति ही जीतकर जाता है। सब जानते हैं कि करोड़पति कैसे बना जाता है। सरकार में इतनी हिम्मत भी नहीं रही कि इन करोड़पतियों से यह भी पूछ सके कि वे करोड़पति कैसे हुए हैं।

केन्द्र और राज्य सरकारें महंगाई के लिए एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर महंगाई से कराहती जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम रही हैं। समझ नहीं आता कि महंगाई बढ़ क्यों रही है ? सरकार को कम-से -कम देश की जनता को यह तो बताना ही चाहिए कि महंगाई बढ़ने के कारण क्या हैं ? जब सरकार से यह पूछा जाता है चीनी के दाम कब कम होंगे तो उसका जवाब इतना गलीच होता है कि गाली देने का मन करता है। कृषि मंत्री शरद पवार का यह कहना कि 'मैं कोई ज्योतिषि नहीं हूं, जो यह बता दूं कि चीनी कब सस्ती होगी,' गलीचता का निकृष्टतम उदाहरण है। ऐसा जवाब वही आदमी दे सकता है, जो संवेदहीन और जमाखोरों का हिमायती हो।

एक मंत्री ऐसा जवाब इसलिए दे पाता है, क्योंकि वह यह जानता है कि देश की जनता इतनी धैर्यवान है कि उसकी खाल भी खींच ली जाए तो वह उफ तक नहीं करेगी। देश की जनता की यही सहनशीलता उसके शोषण का कारण है। सवाल सिर्फ चीनी का ही नहीं है। जिंदा रहने की हर बुनियादी चीज महंगी और महंगी होती जा रही है। मीडिया रोज शोर मचा रहा है कि खाद्य पदार्थों के थोक और खुदरा मूल्यों में भारी अन्तर है। लेकिन सरकार यह तय नहीं कर पाती कि एक खुदरा व्यापारी किसी वस्तु पर कितना मुनाफा ले सकता है। ऐसा लगता है कि देश में केन्द्र और राज्यों की सरकारें सिर्फ अपनी कूर्सी बचाने और पैसा उगाहने में ही व्यस्त हैं। देश की जनता का कोई पूरसाने हाल नहीं है।

यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम धर्मो, पार्टियों और जातियों में जकड़े समाज हैं। हम यह क्यों नहीं सोचते कि कुछ होने से पहले हम इंसान हैं। जिंदा रहने का हमें भी हक है। जिंदा हम तभी रहेंगे, जब हमें और हमारे बच्चों को भरपेट भोजन मिलेगा। मंदिर-मस्जिद पर हजारों-लाखों की संख्या में सड़कों पर निकलने वाले लोग एक बार रोटी के लिए सड़कों पर क्यों नहीं आते? यह याद रखिए हम लोग सरकार बनाने और बिगाड़ने वाली भेड़ें मात्र नहीं हैं। हमारे वोटों से सरकार बनती है तो हमें दो वक्त की रोटी की आस भी सरकार से रहती है।

जिस दिन देश की भूखी जनता सड़कों पर आकर महंगाई के खिलाफ मोर्चा खोल देगी, उस दिन किसी शरद पवार की इतनी हिम्मत नहीं होगी कि वह यह कह सके कि मैं ज्योतिषि नहीं हूं, जो बता दूं कि महंगाई कब कम होगी। उस दिन हम यह कहने की स्थिति में होंगे कि शरद पवार बताओ चीनी अभी सस्ती करते हो या नहीं। सरकारों को यह सोचना चाहिए कि देश के लोग भूखे पेट रहकर देशभक्ति के तराने नहीं गा सकते। रोटियां आदमी को दीचाना बना देती हैं और भूख इंसान को गद्दार बना देती है। एक या दो गद्दार लोगों को संभालना मुश्किल होता है, लेकिन जब लाखों लोग गद्दारी पर उतर आएंगे तो संभालना मुश्किल हो जाएगा।

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