जानिए आखिर क्यों भगवान को चढ़ाया जाता है वस्त्र?
दरअसल यज्ञ, हवन, मंत्र सिद्धि, काम्य जप आदि भारत की वैदिक परंपरा से आया है। वैदिक काल से अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए साधना-सिद्धियां की जाती रही हैं।
नई दिल्ली। प्रत्येक मनुष्य की यह ख्वाहिश होती है कि उसे जीवन में संपूर्ण भोग, विलास, ऐश्वर्य, धन, संपदा और निरोगी जीवन प्राप्त हो। इसे पाने के लिए वह कर्म के साथ-साथ भाग्य पर भी विश्वास करता है।
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कर्म करने के साथ वह देव पूजा, मंत्र जप, यंत्र सिद्धि जैसे उपाय भी करता है। घंटों यज्ञ, हवन आदि करता है। कुछ लोगों को तो उनकी मनचाही वस्तु इन सब उपायों से प्राप्त हो जाती है, लेकिन कई लोगों की कामनाओं की पूर्ति नहीं हो पाती।
क्यों साधना अधूरी रह जाती है?
उनकी साधना सफल नहीं होती। उनके मंत्र, जप, हवन, यज्ञ आदि का उन्हें 10 प्रतिशत भी प्रभाव दिखाई नहीं देता। उल्टे उन्हें दुष्परिणाम ही प्राप्त होते हैं। कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है। विधि-विधान से करने के बाद भी उनका शुभ परिणाम क्यों प्राप्त नहीं होता। क्यों साधना अधूरी रह जाती है। क्यों मंत्र अपना असर नहीं दिखा पाते और क्यों रोग घेरने लगते हैं।
भारत की वैदिक परंपरा
दरअसल यज्ञ, हवन, मंत्र सिद्धि, काम्य जप आदि भारत की वैदिक परंपरा से आया है। वैदिक काल से अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए साधना-सिद्धियां की जाती रही हैं। राजाओं के द्वारा भी अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिए ब्राह्मणो, ऋषियों के माध्यम से बड़े दैवीय यज्ञ करवाए जाते थे। इस दौरान न सिर्फ यज्ञ करवाने वाले पुरोहित बल्कि यज्ञ के यजमान यानी राजा, उनकी रानियों और राज संतानों को विशेष प्रकार के वस्त्र पहनने के लिए दिए जाते थे। यज्ञ पुरोहित दिव्य वस्त्रों का रहस्य भली भांति जानते थे। यह कैसे तैयार किए जाते हैं और किस व्यक्ति के लिए किस प्रकार के वस्त्र उपयुक्त होंगे इसके बारे में उन्हें पता था, चार वेदों में से एक अथर्ववेद में इन दिव्य वस्त्रों का कई जगह वर्णन आया है। जो विशेष प्रकार के तंतुओं से निर्मित किए जाते थे।
राशि व नक्षत्रों का मनुष्य के जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हम जानते हैं कि प्रत्येक ग्रह और उससे जुड़ी राशि व नक्षत्रों का मनुष्य के जीवन पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है। 12 राशियों मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन और 27 नक्षत्र अश्विनी, , कृतिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती से सम्बद्ध एक-एक पौधा या वृक्ष का वर्णन आया है।
ऋषियों ने दिव्य वस्त्र तैयार किए
ऋषियों ने अपनी दिव्य दृष्टि के माध्यम से यह पता लगाया था कि प्रत्येक नक्षत्र से जुड़े वृक्ष की क्या उपयोगिता है और उनका मनुष्य के जीवन पर क्या प्रभाव होता है। देवताओं से मिले दिव्य ज्ञान का उपयोग करके ऋषियों ने दिव्य वस्त्र तैयार किए थे, जिन्हें किसी धार्मिक अनुष्ठान, पूजा, जप, तप, हवन, यज्ञ, मंत्र जप के समय धारण करने से कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है।
वस्त्र अर्पित करने की परंपरा
यही कारण है कि किसी देव पूजा के समय देवताओं को भी वस्त्र अर्पित करने की परंपरा है-
ओम
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत,
ऋचः
सामानि
जज्ञिरे।
छन्दा
सि
जज्ञिरे
तस्माद्,
यजुस्तस्मादजायता।।
-यजुर्वेद
31.7
यजुर्वेद के इस मंत्र से देवताओं को वस्त्र अर्पित करने की वैदिक परंपरा रही है।
वेदों में दैवीय वस्त्र तैयार की संपूर्ण विधि भी दी गई है, लेकिन गहन कूट भाषा में लिखी गई उन विधि को प्रत्येक मनुष्य के लिए समझना असंभव है। जानकार लोग उन्हें समझकर उनसे लाभ उठा सकते हैं।
ये हैं नक्षत्र और उनसे जुड़े वृक्ष
- अश्विनी- कुचिला
- भरणी- आंवला
- कृतिका- गूलर
- रोहिणी- जामुन
- मृगशिर- खैर
- आर्द्रा- शीशम
- पुनर्वसु- बांस
- पुष्य- पीपल
- अश्लेषा- नागकेसर
- मघा- बरगद
- पूर्वा फाल्गुनी- ढाक
- उत्तरा फाल्गुनी- पाकड़
- हस्त- रीठा
- चित्रा- बेर
- स्वाति- अर्जुन
- विशाखा- कटाई
- अनुराधा- मौलश्री
- ज्येष्ठा- चीड़
- मूल- साल
- पूर्वाषाढ़ा- जलवेतस
- उत्तराषाढ़ा- कटहल
- श्रवण- मदार
- धनिष्ठा- छयोकर
- शतभिषा- कदम्ब
- पूर्वा भाद्रपद- आम
- उत्तरा भाद्रपद- नीम
- रेवती- महुआ
पंचगव्यों का प्रयोग दिव्य वस्त्र के निर्माण में किया जाता था
पूजा, यज्ञ, हवन, तप, मंत्र सिद्ध के दौरान इन दिव्य वस्त्रों को धारण करने से शत प्रतिशत सफलता प्राप्त होती है। इन कार्यों को करने के समय प्रत्येक व्यक्ति को उसके जन्म नक्षत्र के अनुसार वस्त्र धारण करना चाहिए। इससे उसकी साधना, सिद्धि निश्चित रूप से सफलल होती है। व्यक्ति निरोगी रहता है। उसके मन-मस्तिष्क से समस्त नकारात्मक विचार दूर रहते हैं। उसकी आध्यात्मिक उन्नति तेजी से होती है।