नेत्र रोगों के लिए ये ग्रह हैं जिम्मेदार इसलिए रखिए ध्यान
नई दिल्ली। वैदिक ज्योतिष में आंखों की बीमारियों का पता जन्म कुंडली के द्वितीय भाव से लगाया जाता है। वैसे कुंडली के द्वितीय भाव से दायीं आंख और द्वादश भाव से बायीं आंख के रोगों की जानकारी हासिल की जाती है, लेकिन मुख्य रूप से दोनों आंखों के बारे में द्वितीय भाव से ही पता चल जाता है। इसलिए यदि द्वितीय स्थान में दूषित ग्रह हों तो नेत्र रोग होने की आशंका रहती है। नवग्रहों में सूर्य और चंद्र को नेत्रों का प्रतिनिधि ग्रह माना जाता है। सूर्य से दायीं आंख और चंद्र से बायीं आंख के रोगों का पता चलता है। यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली के द्वितीय भाव में सूर्य है और द्वादश भाव में चंद्र है तो आंखों का कोई गंभीर रोग होता है।
आइए जानते हैं जन्मकुंडली में और कौन-कौन सी ग्रह स्थितियां होती हैं जिनसे नेत्र रोगों की जानकारी मिलती है
सूर्य की स्थिति
- सूर्य पित्त कारक ग्रह है। आयुर्वेद के अनुसार आमतौर पर नेत्र रोग पित्त दोषों के कारण ही होते हैं। भृगु संहिता के अनुसार सूर्य यदि प्रथम भाव में नीच का है तो व्यक्ति गंभीर नेत्र रोगों का शिकार होता है। प्रथम भाव में सूर्य होने के कारण व्यक्ति किसी भी विषय पर अत्यधिक सोच-विचार करता है और इस कारण उसे तनाव होता है। तनाव के कारण ब्लड प्रेशर होता है और इस कारण आंखों में दिक्कत होती है।
- सूर्य यदि कुंडली के द्वितीय स्थान में है तो नेत्र रोग होते हैं। सूर्य के साथ यदि दूसरे भाव में मंगल भी हो तो गंभीर नेत्र रोग होने की आशंका रहती है। ऐसा व्यक्ति किसी दुर्घटना का शिकार भी हो सकता है जिसमें उसकी नेत्र ज्योति स्थायी रूप से जा सकती है।
- जन्मकुंडली का छठा भाव रोगों का भाव है। यदि सूर्य छठे भाव में शत्रु ग्रहों के साथ बैठा है तो निश्चित रूप से नेत्र रोग होत हैं।
- सूर्य यदि द्वादश स्थान में दूषित ग्रहों के साथ बैठा हो, शत्रु राशि में हो या इस पर शत्रु ग्रहों की दृष्टि हो तो नेत्र रोग होते हैं।
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मंगल की स्थिति
- द्वितीय स्थान में मंगल ग्रह का होना गंभीर नेत्र रोगों का संकेत देता है। इससे व्यक्ति को ऐसे सीरियस नेत्र रोग होते हैं जिनका उपचार भी लगभग असंभव रहता है। नर्व से संबंधित नेत्र रोग अधिक होते हैं।
- मंगल यदि जन्म कुंडली के अष्टम या द्वादश भाव में है तो भी व्यक्ति को नेत्र रोग होते हैं। ऐसे व्यक्ति को जीवनभर ऐनक लगाना पड़ता है। आंखों की सर्जरी होती है। कांटेक्ट लैंस लगाने की नौबत आती है।
- मंगल यदि प्रथम स्थान में है तो गंभीर नेत्र रोग होते हैं। खासकर बायीं आंख पर ज्यादा असर होता है, भृगु संहिता के अनुसार यदि प्रथम स्थान में बुध और शनि साथ में हो तो व्यक्ति बायीं आंख से दृष्टिहीन हो सकता है।
- बुध यदि दशम स्थान में हो तो व्यक्ति को 28 की आयु में आंखों का कोई गंभीर रोग होता है। किसी केमिकल के कारण आंखों की ज्योति जाने की आशंका रहती है।
- द्वितीय स्थान में शुक्र हो तो व्यक्ति की आंखें उम्रभर अच्छी रहती है,लेकिन यदि द्वितीय भाव का स्वामी कमजोर होकर छठे, आठवें या 12वें भाव में बैठा हो तो द्वितीय में शुक्र होने का भी कोई लाभ नहीं होता।
- शनि यदि द्वितीय स्थान में हो तो आंखों में लगातार कोई न कोई रोग लगा रहता है। ऐसे लोगों को मोटा चश्मा भी लगाना पड़ता है।
- द्वादश स्थान में राहु-केतु होने पर आंखों में चोट लगने की आशंका रहती है।
- आंखें सेहतमंद रहने के लिए सूर्य को प्रसन्न् किया जाता है। इसके लिए प्रतिदिन ठीक सूर्योदय के समय सूर्य को जल अर्पित करें और इस दौरान जल की गिरती धार में से सूर्य को देखने का प्रयास करें।
- आदित्यहृदय स्तोत्र और चाक्षुसी स्तोत्र का नियमित पाठ करें।
- मंदिर में या घर में जब भी भगवान की पूजा करें तो आंखें बंद न करें। खुली आंखों से भगवान की पूजा करें।
इन स्थितियों पर भी गौर करें
ये उपाय करें
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