पितृ पक्ष में पूर्वजों के श्राप से मिलेगी मुक्ति..
महिर्ष भृगु ने अपने अतुलनीय ग्रन्थ 'भृगु संहिता' में अनेक प्रकार के श्रापों का उल्लेख किया है। जैसे- ब्रहाण श्राप, सर्प श्राप, भाई श्राप, मातृ श्राप, पत्नी श्राप, मामा श्राप, पितृ श्राप अथवा पितर श्राप आदि। इन सभी श्रापों के कारण व्यक्ति को नाना प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिसके फलस्वरूप प्रगति में अवरोध, कार्यो में अड़चने, आर्थिक क्षति, सन्तान सुख में कमी व शत्रु हावी होकर परेशान होते है।
फेंगसुई और वास्तु शास्त्र में क्या है अंतर?
एक मास में दो पक्ष होते है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष, एक पक्ष 15 दिन का होता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिन पितृ पक्ष के नाम से प्रचलित है। इन 15 दिनों में लोग अपने पूर्वजों/पितरों को जल देंते है तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते है। पितरों का ऋण श्राद्धों के द्वारा उतारा जाता है। पितृ पक्ष श्राद्धों के लिए निश्चित पन्द्रह तिथियों का कार्यकाल है। वर्ष के किसी महीना या तिथि में स्वर्गवासी हुए पूर्वजों के लिए कृष्ण पक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। इस बार श्राद्ध पक्ष 17 सितम्बर से 30 सितम्बर तक रहेगा।
कैसे जानें आप पर पितृ दोष का श्राप है-
जब पितरों के कर्मो का लोप होने लगता है अर्थात जातक के द्वारा पितरों के श्राद्ध आदि कर्म उचित व विधिपूर्वक नहीं किये जाते है तो पितर प्रेत योनि में चले जाते है और जातक के वंश वृद्धि, धन वृद्धि, विकास, पद, प्रतिष्ठा, प्रगति में गिरावट, सन्तान से कष्ट, मानसिक दशा में गिरावट, आर्थिक विपन्नता हो रही है, तो श्राद्ध पक्ष में उस जातक को पूरे विधि-विधान से पितरों का श्राद्ध करना चाहिए और तर्पण करना चाहिए। पितृ पक्ष में तर्पण करने से पितरों के श्राप से बचा जा सकता है।