मानसिक तनाव दूर करने के लिये वास्तु टिप्स
हमारा शरीर पंच तत्वों से बना है। ये पांच तत्व हैं- अग्नि, पृथ्वी, वायु जल और आकाश। जब तक शरीर में इन तत्वों का संतुलन रहता है, तब तक हम सुखी और स्वस्थ रहते हैं। देखा जाए तो वास्तुशास्त्र मानसिक शांति का द्वार ही है। जब इन तत्वों का संतुलन असामान्य हो जाये तो हमारा स्वास्थ्य क्षीण होने लगता है।
इसके फलस्वरूप हम शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने के साथ-साथ मानसिक तनाव में भी आ जाते हैं। इसका प्रभाव हमारे कार्य-व्यवसाय और मन की शांति पर पड़ता है। [नीचे स्लाइडर में वास्तु के कुछ प्रमुख सिद्धांत पढ़ना न भूलें]
अत: अपनी आंतरिक और बाहरी शक्तियों को पुन: प्राप्त करने और लगातार बनाये रखने के लिये इन पांच तत्वों का संतुलन करना आवयक होता है। जिससे हम शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सके और जीवन में धन, खुशी, सम्पन्नता और सफलता प्राप्त कर सकें।
आपको घर, कारखाना या ऑफिस में अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिये वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करना चाहिये। इससे जीवन में सुख-शांति और सम्पन्नता प्राप्त होती है। [नाम से पता करें इंसान की पर्सनालिटी]
तत्वों का संतुलन आवश्यक
जल तत्व: इसके लिये उत्तर दिशा और उत्तर-पूर्व दिशा का ईशान कोण अति उत्तम है। भूमिगत जल का भंडार इस दिशा में होना चाहिए। अग्नि तत्व: दक्षिण-पूर्व दिशा या आग्नेय कोण में रसोई घर, भट्टी आदि होना चाहिए।
वायु तत्व : उत्तर-पचिम दिशा यानि वायव्य कोण वायु का स्थान है। वायु का सम्बन्ध बुद्धिमत्ता से है। अत: लिखने-पढ़ने का काम इस दिशा में होना चाहिए। अतिथियों का कमरा भी इस दिशा में अच्छा रहता है।
पृथ्वी तत्व: दक्षिण-पचिम दिशा यानी कि नैऋत्व कोण में पृथ्वी तत्व की स्थिति मानी गई है। इस दिशा में गृह-स्वामी का शयन कक्ष व भारी सामान का भंडार गृह होना चाहिये। दक्षिण-पचिम कोण को सर्वाधिक ऊंचा और भारी होना चाहिये। आकाश तत्व: आकाश तत्व की प्राप्ति के लिये घर के केन्द्र स्थान को खाली रखें, बीच आंगन को पर से खाली रखें जिससे कि आकाश दिखायी पड़ता रहे।
अगर इन तत्वों में असंतुलन रहेगा तो शरीर और मन में बेचैनी रहेगी। अत: वास्तु के सिद्धान्तों का पालन करते हुये हम अधिकतम शांति और सुख को प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हैं। इसके माध्यम से भाग्य को पूरी तरह बदल पाना तो संभव नहीं हो सकता है, लेकिन बहुत सी कठिनाइयों को दूर करके हम जीवन को सफलता के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं।
वास्तु के कुछ प्रमुख सिद्धांत
वास्तु के सिद्धांत
आगे हम आपको बतायेंगे वो सिद्धांत जिनका पालन कर जीवन भर घर में खुशियां ला सकते हैं।
मकान का मुख
पूर्व, उत्तर पूर्व और उत्तर की तरफ मुख वाले मकान और प्लाट सर्वाधिक शुभ होते हैं।
किस दिशा में हो प्लॉट
दक्षिण, दक्षिण पचिम और पचिम दिशा की ओर उठे हुये प्लाट अधिक अच्छे रहते हैं।
प्लॉट का आकार
प्लाट का वर्गाकार, आयताकार होना शुभ है। निवास हेतु बनाये जाने वाले मकान में लम्बाई और चौड़ाई का अनुपात 2:1 से अधिक नहीं होना चाहिये।
प्लॉट की मिट्टी
प्लाट की मिट्टी की गंध अच्छी हो तो प्लाट शुभ रहता है।
मकान बनवाने के समय
मकान बनवाने के समय उत्तर-पूर्व की ओर अधिकतम खुला स्थान छोड़ना चाहिये।
पूजा का कमरा
पूजा का कमरा बनवाने के लिये सर्वोत्तम दिशा उत्तर-पूर्व का कोना है। मूर्तियों को पूर्व, पचिम अथवा उत्तर दिशा की ओर स्थित कर सकते हैं। दक्षिण दिशा में शिवजी तथा हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना की जा सकती है।
रसोई घर का स्थान
रसोईघर के लिये आग्नेय कोण यानि दक्षिण-पूर्व की दिशा उचित रहती है। उत्तर-पचिम दिशा में भी रसोईघर बनाया जा सकता है।
सोने का स्थान
शयन कक्ष दक्षिण-पचिम दिशा में होना चाहिये। सोते समय पैर उत्तर की ओर हों, दक्षिण की ओर सिर करके सोना सर्वोत्तम है। सोते समय पैर मुख्य द्वार की ओर न हों तो और भी अच्छा रहता है।
बच्चें का कमरा
बच्चों के शयन कक्ष के लिये उत्तर-पचिम तथा दक्षिण-पूर्व उचित है। पूर्वोत्तर भी ठीक है किन्तु दक्षिण-पचिम हमेशा ही त्यागना चाहिये।
शौचालय का स्थान
शौचालय व स्नानगृह साथ-साथ हो तो शयन कक्ष के उत्तर-पचिम में होने चाहिये। केवल स्नानगृह पूर्व में तथा केवल शौचालय पचिम या दक्षिण दिशा में हो सकता है।