क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दे रहीं 4500 महिलाएं, किसानों को मिल रही MSP, आत्मनिर्भर बन रही 'आधी आबादी'

'नारी तू नारायणी, इस जग का आधार...' किसी रचना की इन पंक्तियों को सच साबित कर रही हैं मध्य प्रदेश की कुछ महिलाएं। हजारों की संख्या में इन महिलाओं की सक्रियता से पुरुषों का वर्चस्व समाप्त हो रहा है। पढ़िए रिपोर्ट

Google Oneindia News

भोपाल, 05 जून : खेती-किसानी को लेकर मध्य प्रदेश से एक पॉजिटिव स्टोरी सामने आई है। इस कहानी की किरदार महिलाएं हैं और किस्सा काबिलियत साबित होने का है। मध्य प्रदेश के 52 जिलों की 4500 से अधिक महिलाएं सीधे किसानों से कृषि उत्पाद खरीदती हैं। इस शानदार सक्सेस स्टोरी का एक पहलू ये भी है कि महिलाएं आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ घर का खर्च भी चला रही हैं। पूरी कहानी का सार ये कि MPSRLM स्कीम के तहत 45 लाख से अधिक महिलाएं संगठित हुई हैं। पढ़िए प्रेरक कहानी

mpsrlm

महिलाओं को रोजगार के अवसर

इस सक्सेस स्टोरी में जिन महिलाओं की बात हो रही है वे जिलों में बनाए गए सरकारी केंद्रों पर किसानों से कृषि उत्पाद खरीदती हैं। खरीद के दौरान सरकार की ओर से निर्धारित, न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP का पूरा ध्यान रखा जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि महिलाओं के मोर्चा संभालने के बाद खरीद प्रक्रिया से करप्शन खत्म हो रहा है। सबसे उत्साहित करने वाली बात ये है स्वयं सहायता समूह (SHG) से जुड़ी महिलाओं को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।

436 महिला समूह

कृषि उत्पाद खरीदने में महिलाओं के जुड़ने से किसानों और बाजार के बीच बिचौलिए की भूमिका में मुनाफाखोरी करने वाले प्राइवेट व्यापारियों पर शिकंजा कस रहा है। साहूकारों की धौंस खत्म होने का ही परिणाम है कि पूरे मध्य प्रदेश में अब तक 436 महिला समूह सीधा किसानों से कृषि उत्पाद खरीदने के काम में शामिल हो चुके हैं।

किसानों को मिल रही MSP

गांव कनेक्शन डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के देवास जिले में एक विधवा महिला ने सरकारी गोदाम में काम करने का फैसला लिया। इस गोदाम में किसानों से उनके कृषि उपज और खेत की फसलों की खरीद की जाती है। खास बात ये कि किसान इस गोदाम में आकर सीधा अपनी फसल बेचते हैं, बदले में सरकार की ओर से तय की गई रकम यानी एमएसपी का भुगतान किया जाता है।

छिना मांग का सिंदूर, अब खुद कमा रहीं दो बच्चों की मां

गोदाम में काम कर रही महिलाओं को सबसे बड़ा फायदा ये हो रहा है कि उन्हें व्यापारियों के पास जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। ये 30 वर्षीय महिला 2 बच्चों की मां हैं। महीने में जितना भी गेहूं खरीदती हैं उसके आधार पर उन्हें मासिक भुगतान किया जाता है। गांव कनेक्शन की रिपोर्ट के मुताबिक इन्हें हर महीने लगभग 10 हजार रुपये की कमाई होती है। एक क्विंटल गेहूं खरीदने पर ₹ 27 मिलते हैं।

मध्य प्रदेश में ग्रामीण आजीविका मिशन

देवास की महिला का ये उदाहरण 39100 ग्रामीण महिलाओं में से एक की कहानी है। इस प्रेरक कहानी से साबित होता है कि मध्य प्रदेश में ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाएं अब खरीद प्रक्रिया से प्राइवेट प्लेयर्स को बाहर करने की ठान चुकी हैं। खरीद प्रक्रिया में 436 महिला समूहों के शामिल होने से निजी व्यापारी और विक्रेताओं की दबंगई खत्म हो रही है और महिलाओं का आत्मविश्वास भी बढ़ रहा है।

सरकारी मशीनरी से मिल रही मदद

मध्य प्रदेश में चल रहे इस कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में ग्रामीण महिलाओं को सरकारी गोदामों के आसपास कृषि उत्पाद खरीदने के लिए परचेज सेंटर यानी खरीद केंद्र आवंटित किए जाते हैं। इन केंद्रों पर किसानों से गेहूं, चना और सरसों खरीदे जाते हैं। राज्य सरकार की मशीनरी महिलाओं की मदद करती है। सरकार का खाद्य नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग किसानों की उपज ट्रांसपोर्ट करने में लगने वाले वाहनों का इंतजाम करता है।

ऐसे काम करता है महिलाओं का ग्रुप

गांव कनेक्शन की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश में कुल 529 सरकारी खरीद केंद्र हैं। इनमें से 436 महिला समूह के पास हैं। 62 ग्राम संघों के पास 9 केंद्रों को क्लस्टर लेवल फोरम और 15 सेंटर को किसान उत्पादक संगठन (FPO) संचालित करते हैं। इन केंद्रों में एक सेंटर पर 8-10 महिलाएं काम करती हैं। इनमें कुछ लोग अनाज या कृषि उत्पाद का कलेक्शन करते हैं। कुछ लोग बोरियों की पहचान के लिए उन पर मार्किंग करते हैं। कुछ लोगों को क्वालिटी चेक में भी लगाया गया है।

ट्रेनिंग का इंतजाम

इस स्कीम का एक रोचक पहलू यह भी है कि सरकार की स्कीम को लागू करने में ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन तकनीकी सहयोग कर रही है। इस संस्था की मदद से महिलाओं को खरीद-बिक्री प्रक्रिया, खरीदे गए उत्पाद की लोडिंग की जांच और उत्पादों की निगरानी के संबंध में ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग वर्कशॉप ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया के अधिकारी आयोजित करते हैं।

दवाबों के आगे नहीं झुकी नारी शक्ति

महिलाओं को वैसे सामाजिक दबाव से निपटने में भी मदद मुहैया कराई जाती है जिससे उनके पैरों में पड़ी अदृश्य बेड़ियां टूट रही हैं। मसलन, घरों के बाहर महिलाओं के काम करने पर लोग क्या कहेंगे ? जैसी दलीलों के आगे महिलाएं कई बार बिना डरे और आजादी से काम नहीं कर पातीं, ऐसे में ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन महिलाओं को इन दबावों से निपटने में मदद करता है।

महिलाओं ने बहादुरी से किया धमकियों का सामना

यह भी दिलचस्प है कि कृषि उपज की खरीद-फरोख्त में हमेशा पुरुषों का दबदबा देखा गया है अक्सर बाजार के काम में पैसों से समृद्ध साहूकार और सियासी हस्तियों का बोलबाला होता है। ऐसे में महिलाओं को अपनी जगह बनाने में खासी मशक्कत भी करनी पड़ी। गांव कनेक्शन की रिपोर्ट में ट्रांसफॉर्मर रूरल इंडिया फाउंडेशन के कोऑर्डिनेटर ने बताया की भ्रष्टाचार को दूर करने और खरीद प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के दौरान तथाकथित अमीर और सतही सियासत करने वाले नेताओं की ओर से धमकियां भी दी गईं, लेकिन बातचीत के बाद गांव की महिलाओं ने खुद दृढ़ संकल्प दिखाया। ट्रेनिंग मिलने के बाद सरकारी खरीद केंद्रों को संचालित करने के लिए महिलाओं ने कमर कस ली।

भीड़ को ऐसे मैनज कर रहीं महिलाएं

खरीद केंद्रों पर भीड़ को मैनेज करने के बारे में एक महिला बताती हैं कि एक दिन में तोले जाने वाले कुल अनाज के बारे में अंदाजा लगाने के बाद किसानों को उपज बेचने के लिए अलग-अलग दिनों पर बुलाया जाता है। इससे किसानों का समय भी बचता है और लंबी कतारों में इंतजार नहीं करना पड़ता। खरीदे जा रहे कृषि उत्पाद अच्छी गुणवत्ता के हों इस बात को सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग मानकों पर कृषि उपज की जांच भी की जाती है। जांच के बाद उसका वजन किया जाता है। फिर उत्पादों को पैक करके टैग लगाए जाते हैं। इन कामों के बदले में महिलाओं को कमीशन के पैसे मिलते हैं।

45 लाख से अधिक महिलाएं संगठित

एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 में पूरे मध्यप्रदेश में 9,86,560 क्विंटल से अधिक गेहूं खरीदा गया। इससे सैकड़ों किसानों को फायदा पहुंचा। एमपी एसआरएलएम (मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एल एम बेलवाल कहते हैं कि आने वाले समय में इन महिला समूहों से जुड़ी हर महिला महीने में कम से कम 10 हजार रुपये कमा सकेगी। उन्होंने बताया कि पूरे राज्य में MPSRLM के तहत 45 लाख से ज्यादा महिलाओं को संगठित किया गया है। इन्हें खरीद प्रक्रिया के अलावा दूसरी गतिविधियों से भी जोड़ा गया है। इससे महिलाओं की आमदनी भी हो रही है और सरकारी तंत्र से भ्रष्टाचार धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। इनका मानना है कि आजीविका मिशन के शुरू होने के बाद गांवों से शहरों की ओर जाने वाले लोगों की संख्या घटी है, यानी पलायन की समस्या से भी निजात मिल रही है।

ये भी पढ़ें- Rajnigandha : इस फूल की खेती में लागत कम, मुनाफा लाखों, खिल उठेंगे किसानों के चेहरे

Comments
English summary
know how MOSRLM scheme in Madhya Pradesh empowering women.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X