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जामुन की खेती : 12वीं ड्रॉपआउट राजेश ने 1000 आदिवासी महिलाओं को दिया रोजगार, कमाल के उत्पाद

जामुन की खेती (Jamun farming) किसानों को मालामाल करने वाला ऑप्शन है। जामुन में छिपी संभावनाओं को पहचानते हुए 12वीं ड्रॉपआउट राजेश ओझा ने आदिवासी महिलाओं के साथ उद्यम शुरू किया है। जानिए सक्सेस स्टोरी

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उदयपुर, 22 जून : जून-जुलाई का मौसम जामुन के किसानों के लिए सुनहरा अवसर होता है। दरअसल, जामुन की मार्केट में अच्छी डिमांड है। ऐसे में जामुन के नए बगीचे लगाने की प्लानिंग कर रहे किसान जून से अगस्त के बीच जामुन की रोपाई (jamun farming) कर सकते हैं। कृषि मामलों के जानकारों के मुताबिक जामुन की खेती से किसानों को अच्छी कमाई हो सकती है। राजस्थान के उदयपुर में रहने वाले राजेश ओझा जामुन की प्रोसेसिंग कर कई उत्पाद बना चुके हैं। कामयाबी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब कंपनी करोड़ों का कारोबार कर रही है।

जामुन से महिलाओं को फायदा

जामुन से महिलाओं को फायदा

राजेश ओझा का दावा है कि इन्होंने एक केंद्र और 75 महिलाओं के साथ जामुन की प्रोसेसिंग शुरू की, लेकिन आज 1000 से अधिक आदिवासी महिलाओं को रोजगार मिल चुका है। 18 गांवों की 1200 महिलाएं छह केंद्रों पर काम कर रही हैं। लोगों की सेहत का ध्यान रखते हुए कई उत्पादों को बाजार में उतारा गया है। 12वीं कक्षा के ड्रॉपआउट राजेश ओझा आज 20 करोड़ रुपये की कंपनी- जोवाकी और ट्राइवलवेदा के CEO हैं। जानिए खेती-किसानी और बागवानी आधारित उद्यम में कैसे पाएं कामयाबी। वनइंडिया हिंदी ने राजेश के साथ विशेष बातचीत भी की। जामुन का फल औषधीय गुणों से भी भरपूर होता है। गहरे बैंगनी रंग के जामुन को अंग्रेजी में ब्लैकबेरी कहा जाता है।

बाजार में जामुन की कीमत

बाजार में जामुन की कीमत

ब्लैकबेरी की अच्छी कीमत मिलने के कारण कृषि वैज्ञानिक किसानों को जामुन की खेती या बागवानी की सलाह दे रहे हैं। बाजार में इसकी कीमत डेढ़ सौ से ₹200 प्रति किलो तक जाती है। आम तौर पर 80-100 रुपये किलो मिलने वाले फल की कीमत गुणवत्ता के आधार पर तय होती है। जामुन का फल सेहत के लिए भी काफी बेहतर माना जाता है। जामुन का नेचर एसिडिक होता है। इस कारण इसका स्वाद थोड़ा कसैला होता है।

जामुन खाना सेहत का खजाना !

जामुन खाना सेहत का खजाना !

आमतौर से जामुन का पेड़ 20 से 25 फीट की लंबाई का होता है। अच्छे से विकसित हुए कुछ पेड़ों की लंबाई इससे भी अधिक होती है। जामुन के फल का सेवन डायबिटीज, एनीमिया, और पेट संबंधी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए फायदेमंद होता है। दांत की समस्याओं में भी जामुन फायदेमंद होता है।

ऐसी मिट्टी में करें जामुन की रोपाई

ऐसी मिट्टी में करें जामुन की रोपाई

जामुन की खेती से पहले सबसे अहम सवाल है जामुन की खेती कैसे की जाए ? इस पर कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि जामुन के बागान लगाने के लिए दोमट मिट्टी बेहतर विकल्प है। उपजाऊ जमीन पर जामुन की खेती में यह ध्यान रखना जरूरी है कि खेत या बागान में पानी न जमा हो। जामुन के पेड़ कठोर और रेतीली भूमि पर नहीं उपजाने की सलाह दी जाती है। गर्मी और बरसात से जामुन का पेड़ प्रभावित नहीं होता।

बारिश में पकता है जामुन, लेकिन...

बारिश में पकता है जामुन, लेकिन...

ठंडे प्रदेशों के अलावा बाकी इलाकों में जामुन का सफल उत्पादन किया जा सकता है। जाड़े में पाला पड़ने पर जामुन का उत्पादन प्रभावित होता है। अधिक तेज धूप में जामुन के फल प्रभावित होते हैं। बारिश के मौसम में जामुन के फल आसानी से पकते हैं। हालांकि, फूल लगने के बाद होने वाली बारिश से जामुन के फलों को नुकसान होता है।

रोपाई के बाद जामुन की देखभाल

रोपाई के बाद जामुन की देखभाल

जामुन की रोपाई से पहले खेतों की अच्छे से जुताई करें। दो पौधों के बीच 5-7 मीटर की दूरी रखें। रोपाई के समय 10-15 किलो पुरानी सड़ी गोबर की खाद मिट्टी में मिलाने से पौधे अच्छे से विकसित होते हैं। मिट्टी की जांच के आधार पर दूसरे उर्वरकों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। रोपाई के बाद जामुन के पौधों पर एनपीके केमिकल का छिड़काव करें। साल में तीन बार छिड़काव करें। बड़े हो चुके जामुन के पेड़ों पर साल में चार बार छिड़काव करें। जामनु की रोपाई इसके बीज और कलम से नर्सरी में तैयार पौधों से भी की जाती है। बीजों की रोपाई फरवरी मार्च में होती है। जामुन के पौधे बारिश के मौसम में लगाए जाते हैं।

सिंचाई का तरीका

सिंचाई का तरीका

शुरुआत में जामुन के पौधों की अधिक सिंचाई करनी पड़ती है। रोपाई के फौरन बाद सिंचाई की जाती है। गर्मियों में जामुन के पौधों की सिंचाई सप्ताह में एक बार की जाती है, जबकि सर्दियों में 15 दिन में एक बार सिंचाई की जाती है। बड़े जामुन के पौधों की सिंचाई साल में 5-6 बार करनी होती है। जामुन के पौधों में फल लगने में पांच से आठ साल तक का समय लग सकता है।

जामुन के फलों की पहचान

जामुन के फलों की पहचान

जामुन के पौधों पर फूल निकलने के डेढ़ महीने बाद फल लगने शुरू हो जाते हैं। इसके पौधों पर लगे फल बैंगनी या कुछ काले रंग के दिखाई देने लगते हैं। उसी समय और उसकी तुड़ाई की जाती है। जामुन स्टॉक करके नहीं रखा जाता है। ऐसे में इसकी तुड़ाई प्रतिदिन जरूरत के हिसाब से की जाती है। फलों को तोड़े जाने के बाद इन्हें धोकर साफ किया जाता है और जालीदार टोकरी में रखा जाता है। ये इस समय जामुन की शॉर्टिंग का समय होता है। यानी अगर कोई फल खराब होता है तो उसे निकाल कर बाहर फेंक दिया जाता है।

छह से आठ लाख की आमदनी

छह से आठ लाख की आमदनी

जामुन के पूरी तरह विकसित पौधे में 80 से 90 किलो जामुन का उत्पादन होता है। 1 एकड़ खेत में लगभग 100 जामुन के पेड़ लगाया जा सकते हैं इस आधार पर लगभग एक सीजन में 10000 किलो जामुन का उत्पादन हासिल किया जा सकता है। एक बार की पैदावार के बाद छह से आठ लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है।

50 साल तक मिलते हैं फल

50 साल तक मिलते हैं फल

जामुन का बड़ा पेड़ 50-60 साल तक फल देता है। जामुन को ब्लैकबेरी के अलावा, राजमन, जमाली औऱ काला जामुन नामों से भी जाना जाता है। कच्चे फलों को खाने के अलावा जामुन से जेली, शरबत, शराब और जैम जैसी चीजें भी बनती हैं। उदयपुर, राजस्थान के इंटरप्रेन्योर राजेश ओझा और लगभग 1000 आदिवासी महिलाओं को जामुन के इस्तेमाल से अच्छी आमदनी हो रही है।

जैविक कचरे का उपयोग

जैविक कचरे का उपयोग

राजेश बताते हैं कि उन्होंने जामुन की प्रोसेसिंग से जामुन स्ट्रिप्स, जामुन ग्रीन टी जामुन के बीजों का पाउडर और जामुन का फ्लैक्स (जामुन को सुखाने के बाद का पल्प) तैयार किया है। उन्होंने बताया कि जोवाकी में आदिवासी महिलाओं के साथ काम करने का उनका मॉडल प्रकृति के संरक्षण पर आधारित है। बकौल राजेश, कुछ भी बर्बाद नहीं होना चाहिए, इसलिए वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए छिलका/जैविक कचरे का उपयोग किया जाता है।

8 लाख पेड़ लगाने का टार्गेट

8 लाख पेड़ लगाने का टार्गेट

बकौल राजेश, फलों के बीजों के एक हिस्से का उपयोग दोबारा वृक्षारोपण में होता है। उन्होंने कहा कि पहले आदिवासी समाज के लोग जलावन के लिए पेड़ों को काटते थे। अब जोवाकी से मिली ट्रेनिंग के बाद पेड़ भी बच रहे हैं और पेड़ भी लगाए जा रहे हैं। अब तक पांच लाख पौधे लगाए जा चुके हैं और इस साल 8 लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य है।

केमिकल मुक्त उत्पाद

केमिकल मुक्त उत्पाद

जामुन के अलावा शरीफा या सीताफल (custard apple) के पल्प की प्रोसेसिंग होती है। मुख्य रूप से कैटरर्स, आइसक्रीम और मिठाई उद्योग से जुड़े करोबारी राजेश से ताजे फल का पल्प खरीदते हैं। राजेश पल्प की तैयारी का प्रोसेस समझाते हुए कहते हैं, बाग और पेड़ों से फलों को हाथ से चुना जाता है। विश्व स्तरीय स्वच्छत वातावरण में इनकी प्रोसेसिंग होती है, जिसमें किसी भी तरह के केमिकल का उपयोग नहीं होता।

सरकार की संस्थाओं से मिल रहा समर्थन

सरकार की संस्थाओं से मिल रहा समर्थन

कड़ी मेहनत और इनोवेशन को मिले सम्मान का प्रमाण चौधरी चरण सिंह नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चरल मार्केटिंग (CCS NIAM- Center for Innovation), केंद्रीय कृषि मंत्रालय के तहत चलाई जा रही एग्रीप्रेन्योरशिप स्कीम- RKVY-RAFTAAR और आईआईएम कलकत्ता इनोवेशन पार्क जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की ओर से मिलने वाला समर्थन है। दुनिया भर में 19 कंपनियों को दिए गए डीबीएस फाउंडेशन पुरस्कार के तहत राजेश की जोवाकी को सोशल एंटरप्राइज अवार्ड 2021 दिया गया।

18,000 आदिवासी परिवारों को फायदा

18,000 आदिवासी परिवारों को फायदा

जोवाकी सालाना 5 लाख किलोग्राम जंगली फलों और सब्जियों की प्रोसेसिंग के अलावा एक साल में 125 मीट्रिक टन उपज बेचने की योजना बना रही है। इससे 18,000 आदिवासी परिवारों को पूरे साल स्थायी आजीविका मिलेगी। वनों की कटाई में कमी आने पर 15 मिलियन पेड़ों को संरक्षित किया जा सकेगा।

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English summary
Know about success story of Rajesh Oza working with Tribal Women in Udaipur, Rajasthan under Jovaki and Tribalveda by processing Jamun also known as Blackberry or black plum.
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