Green Farming Incentive : केमिकल मुक्त खेती की पहल, खाद बनाने में मिलती है सरकार से आर्थिक मदद
वैज्ञानिक साधनों के उपयोग के कारण खेती महंगी भी होती जा रही है। किसानों को केमिकल के बिना बनाए जाने वाले खाद के उपयोग का सुझाव दिया जा रहा है। सरकार किसानों को आर्थिक मदद भी देती है। जानिए कैसे मिलेगी मदद
नई दिल्ली, 11 मई : खेती में वैज्ञानिक तरीकों की मदद लेने के साथ-साथ केमिकल का यूज कम करने के लिए सरकार किसानों की आर्थिक मदद करती है। ऑर्गेनिक एंड नेचुरल फार्मिंग को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से परम्परागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana-PKVY स्कीम) चलाई जा रही है। इस स्कीम में किसानों को तीन साल तक 31 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की आर्थिक मदद मिलती है। योजना के तहत भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (Bharitya Prakratik Krishi Padhati) से फसलों को उपजाने के लिए किसानों को नॉन केमिकल फार्मिंग के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
केंद्र सरकार गंगा नदी के किनारे पर जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। इसके लिए किसानों की आर्थिक मदद भी की जा रही है। गैर-रासायनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए PKVY स्कीम के तहत देश के सभी राज्यों में किसानों को बीज, जैव उर्वरक, जैव कीटनाशक, जैविक खाद, कम्पोस्ट/वर्मी-कम्पोस्ट, वनस्पतियों के अर्क (botanical extracts) आदि के लिए सरकार की ओर से पैसे दिए जाते हैं। एक हेक्टेयर की जोत के किसान को तीन वर्ष तक 31 हजार रुपये की वित्तीय सहायता केंद्रीय कृषि मंत्रालय की ओर से दी जाती है।
सरकार किसानों की मदद के लिए प्रतिबद्ध
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक भारत के सभी राज्यों में लागू PKVY योजना के तहत किसानों को 31 हजार की आर्थिक मदद के अलावा और भी सहायता प्रदान की जाती है। व्यक्तिगत किसानों के अलावा केंद्र सरकार और भी सहायता मुहैया कराती है।
- समूह / किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाने में।
- किसानों की ट्रेनिंग में।
- ऑर्गेनिक उत्पाद के लिए सर्टिफिकेट देने में
- ऑर्गेनिक उत्पादों को और बेहतर बनाने, यानी वैल्यू एडिशन में।
- जैविक उत्पादों की मार्केटिंग में मदद।
संसद के बजट सत्र के दौरान सरकार ने बताया था कि नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कुल 120.49 करोड़ रुपये का फंड जारी किया गया। PKVY स्कीम के तहत 34.20 करोड़ रुपये जारी किए गए। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय किसान विकास योजना (RKVY) के तहत 67.36 करोड़ रुपये जारी किए। मदद की यह राशि 1,23,620 हेक्टेयर जमीन के लिए जारी की गई।
रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल
खेती में नॉन केमिकल फर्टिलाइजर के इस्तेमाल की जानकारी जुटाने के लिए लगभग 6 साल पहले एक सर्वे किया गया था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में हुए लैंड सर्वे के मुताबिक 76 फीसद से अधिक खेती वाली जमीनों पर एक से अधिक केमिकल उर्वरक का उपयोग किया गया। सरकार ने केमिकल खाद के प्रयोग के बाद उपजाई गई फसलों के बारे में कहा कि ऐसा कोई आंकड़ा नहीं रखा जाता।
केमिकल और फर्टिलाइजर मंत्रालय के मुताबिक लगभग छह साल पहले सभी फसलों का क्षेत्रफल 19.24 करोड़ हेक्टेयर से अधिक बताया गया। इसमें 14.72 करोड़ हेक्टेयर यानी 76.53 प्रतिशत जमीन पर उपजाई गई फसलों पर एक से अधिक रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल किया गया।
जैव-उर्वरक को प्रोत्साहन
सरकार का दावा है कि भारत में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए गत लगभग सात साल से (2015-16 से) परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) चलाई जा रही है। इसके अलावा मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्टर्न रीजन (MOVCDNER) भी लागू किया जा रहा है।
- दोनों योजनाओं के तहत जैविक और जैव-उर्वरक के उपयोग के लिए प्रोत्साहन
- मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (Soil Health Management) से जुड़ी योजनाओं के तहत भी पैसे दिए जाते हैं।
- नई जैव-उर्वरक इकाई (200 मीट्रिक टन या 5 लाख लीटर क्षमता) लगाने के लिए 160.00 लाख रुपये का आवंटन।
- अब तक 15 जैव उर्वरक उत्पादन यूनिट्स की स्थापना।
मिट्टी की सेहत में सुधार के लिए रासायनिक खाद
खेती के बदले माहौल में सरकार का मानना है कि रासायनिक उर्वरकों का सोच-समझकर संतुलित उपयोग करने से मिट्टी की सेहत पर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता। अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत 'दीर्घकालिक उर्वरक प्रयोगों' (All India Coordinated Research Project on 'Long Term Fertilizer Experiments') पर पांच दशकों से अधिक समय तक की गई जांच।
जांच में संकेत मिले कि केवल नाइट्रोजन उर्वरक का लगातार या अधिक उपयोग मिट्टी के लिए नुकसानदेह है। ऐसा करने से मिट्टी की सेहत और फसल की पैदावार क्षमता पर हानिकारक प्रभाव पड़ा है। केमिकल में नाइट्रोजन मिले हुए खाद के कारण खेती की जमीन से प्रमुख और सूक्ष्म पोषक तत्व भी गायब हुए।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की ओर से की गई सिफारिश के मुताबिक मिट्टी की सेहत में सुधार के लिए रासायनिक खाद का विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा। इसके लिए पौधों के पोषक तत्वों और मिट्टी की जांच भी करानी होगी। ICAR के मुताबिक किसानों को परीक्षण आधारित संतुलित और एकीकृत पोषक प्रबंधन करना चाहिए।
- फलीदार फसलों को उगाने और संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों (Resource Conservation Technologies) के उपयोग का भी सुझाव।
- सभी विषयों पर ICAR की ओर से किसानों को ट्रेनिंग और सूचनाएं भी दी जाती हैं। किसानों के सामने फर्टिलाइजर के इस्तेमाल में संतुलन और मिट्टी की टेस्टिंग का डेमो (Front Line Demonstrations) भी दिया जाता है।