पाकिस्तान के पेशावर में अपने परिजनों के शवों को दफनाने के लिए मजबूर हैं हिन्दू
हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मुर्दे को जलाते हैं लेकिन पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह में हिन्दू अपने चहेतों को मौत के बाद दफनाने के लिए मजबूर हैं।
पेशावर। अपने परिजनों की मौत के बाद उन्हें अपने धर्म के हिसाब के दफनाने या जलाने की चाह सभी की होती है। इसको लेकर सभी धर्मों में कई तरह के निर्देश भी दिए गए हैं। धार्मिक मान्यताओं में मुर्दे के मोक्ष या मगरिफत के लिए उसका खास तरह से अंतिम संस्कार करना जरूरी माना जाता है। हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मुर्दे को जलाते हैं लेकिन पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह में हिन्दू अपने चहेतों को मौत के बाद दफनाने के लिए मजबूर हैं।
बीबीसी ने खैबर पख्तूनख्वाह और कबायली इलाकों में शवों को दफनाने के लिए मजबूर अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय के लोगों पर एक रिपोर्ट दी है। इस रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह और कबायली इलाकों में रहने वाले हिंदू श्मशान घाट ना होने की वजह से अपने मृतकों को जलाने के बजाय उन्हें कब्रिस्तान में दफनाने पर मजबूर हो रहे हैं।
सरकार
और
भूमाफिया
कर
चुके
अल्पसंख्यकों
की
जमीनों
पर
कब्जा
खैबर
पख्तूनख्वाह
में
हिंदू
समुदाय
की
आबादी
लगभग
50
हजार
है।
इनमें
अधिकतर
पेशावर
में
बसे
हुए
हैं।
इसके
अलावा
फाटा
में
भी
हिंदुओं
की
एक
अच्छी
खासी
तादाद
है।
ये
अलग-अलग
पेशों
को
अपनाकर
जीवन
गुजार
रहे
हैं।
बीबीसी
की
रिपोर्ट
कहती
है
कि
पिछले
कुछ
सालों
हिंदू
समुदाय
के
लिए
खैबर
पख्तूनख्वाह
और
फाटा
के
श्मशान
घाट
लगभग
खत्म
हो
चुके
हैं।
ऐसे
में
वे
अपने
मृतकों
को
जलाने
के
बदले
दफनाने
के
लिए
मजबूर
हैं।
पेशावर
में
ऑल
पाकिस्तान
हिंदू
राइट्स
के
अध्यक्ष
और
अल्पसंख्यकों
के
नेता
हारून
सर्वदयाल
का
कहना
है
कि
पेशावर
में
ही
नहीं
बल्कि
सूबे
के
ठीक-ठाक
हिंदू
आबादी
वाले
जिलों
में
भी
यह
सुविधा
न
के
बराबर
है।
इन
जिलों
में
कई
सालों
से
हिंदू
समुदाय
अपने
मृतकों
को
दफना
रहा
है।
सर्वदयाल
कहते
हैं
कि
पाकिस्तान
का
संविधान
के
मुताबिक
सभी
अल्पसंख्यकों
के
लिए
कब्रिस्तान
और
श्मशान
घाट
की
सुविधा
प्रदान
करना
सरकार
की
जिम्मेदारी
बनती
है,
लेकिन
बदकिस्मती
से
हिंदू,
सिखों
और
ईसाईयों
के
लिए
कब्रिस्तान
और
श्मसान
की
सुविधा
ना
के
बराबर
है।
सर्वदयाल
के
अनुसार
हिंदुओं
और
सिखों
के
लिए
अटक
में
एक
श्मशान
घाट
बनाया
गया
है
लेकिन
ज्यादातर
हिंदू
गरीब
परिवारों
से
संबंध
रखते
हैं
जिसकी
वजह
से
वह
पेशावर
से
अटक
तक
आने-जाने
का
किराया
वहन
नहीं
कर
पाते
हैं।
हारून
सर्वदयाल
बताते
हैं
कि
पेशावर
के
हिंदू
पहले
अपने
मृतकों
को
बाड़ा
के
इलाके
में
एक
श्मशान
घाट
में
ले
जाकर
जलाते
थे
लेकिन
खराब
कानून
व्यवस्था
की
वजह
से
अब
लोग
बाड़ा
जाते
हुए
डरने
लगे
हैं।
हारून
कहते
हैं
कि
पाकिस्तान
में
अल्पसंख्यकों
के
हर
छोटे
बड़े
शहर
में
धार्मिक
केंद्र
या
पूजा
स्थल
थे
लेकिन
उनपर
सरकार
या
भूमि
माफियाओं
ने
कब्जा
कर
लिया
है,
इससे
हर
छोटे-मोटे
कार्यक्रम
के
लिए
अल्पसंख्यकों
को
परेशान
होना
पड़ता
है।
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