झारखंड में बेहतर चिकित्सा सुविधा के लिए अस्पतालों को किया जा रहा अपग्रेड
राज्य में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है।
नई दिल्ली,4 दिसंबर: राज्य में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है। अंतिम पायदान तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने के लिए सरकार ने इस साल 16 फीसदी बजट में बढ़ोत्तरी की है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए बजट को बढ़ाकर 4,200 करोड़ कर दिया गया है। हालांकि स्वास्थ्य सेवाओं को आम आदमी तक पहुंचाने के रास्ते में कई चुनौतियां हैं। जिला अस्पताल को अपग्रेड किया गया है और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और स्वास्थ्य उप केंद्र की नयी बिल्डिंग तैयार कर ली गयी है, लेकिन आम आदमी को स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। बिल्डिंग तो तैयार है, लेकिन अस्पतालों के संचालन की मूलभूत सुविधा ही नहीं है। मैनपावर नहीं है, उपकरण नहीं है।
ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर चिकित्सा सुविधा नहीं होने के कारण स्वास्थ्य योजना का सही से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। ऐसे में स्थिति बेहतर नहीं हो पा रही है। महिलाओं में एनीमिया की स्थिति पिछले साल की तुलना में सुधरी नहीं है। एनएफएचएस-पांच (2019-21) की रिपोर्ट के अनुसार गर्भवती महिलाओं में एनीमिया बढ़ गया है, जबकि वर्ष 2015-16 में राज्य की 15 से 49 साल की 65.2 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं। वहीं, वर्ष 2019-21 में इनकी संख्या 65.3 फीसदी हो गयी है। ग्रामीण महिलाएं शहरी क्षेत्र की तुलना में ज्यादा एनिमिया से पीड़ित हैं. ग्रामीण इलाकों में 66.7 फीसदी और शहर में 61.7 फीसदी है। यानी ग्रामीण स्तर पर महिलाओं के स्वास्थ्य में कोई ज्यादा सुधार नहीं हो रहा है।
राज्य
गठन
के
बाद
तीन
नये
मेडिकल
कॉलेज
खुले,
लेकिन
नामांकन
में
जद्दोजहद
राज्य
गठन
के
बाद
राज्य
में
तीन
नये
सरकारी
और
दो
निजी
मेडिकल
कॉलेज
का
संचालन
हो
पाया
है।
हजारीबाग,
दुमका
और
पलामू
में
तीन
सरकारी
मेडिकल
कॉलेज
खुले,
लेकिन
हर
साल
यहां
नामांकन
में
परेशानी
होती
है।
नामांकन
के
लिए
सीटों
पर
रोक
लगा
दी
जाती
है।
काफी
प्रयास
के
बाद
सरकार
नामांकन
के
लिए
अनुमति
प्राप्त
कर
पाती
है।
वहीं,
निजी
अस्पताल
में
जमशेदुपर
में
मणिपाल
मेडिकल
कॉलेज
और
गढ़वा
में
रामचंद्रवंशी
मेडिकल
कॉलेज
खुले
हैं।
सरकारी
मेडिकल
कॉलेजों
में
430
और
निजी
मेडिकल
कॉलेज
में
250
सीट
आवंटित
हैं
वहीं,
डेंटल
कॉलेज
में
363
सीटें
हैं।
1300
डॉक्टर
सिर्फ
झारखंड
में
हैं
और
नये
मिलते
नहीं
राज्य
में
चिकित्सकों
की
भारी
कमी
है।
जानकारी
के
अनुसार
राज्य
में
मात्र
1,300
सरकारी
डॉक्टर
है,
जो
जिला
अस्पताल
और
पीएचसी-सीएचसी
में
तैनात
है।
वहीं,
नये
डॉक्टरों
की
बहाली
के
लिए
सरकार
द्वारा
लगातार
आवेदन
निकाला
जाता
है,
लेकिन
डॉक्टरों
का
आवेदन
नहीं
आता
है।
कुल
आवदेन
में
20
से
25
फीसदी
डॉक्टर
आवेदन
करते
है,
लेकिन
साक्षात्कार
में
10
से
15
फीसदी
शामिल
होते
है।
वहीं,
चयन
के
बाद
पांच
फीसदी
ही
योगदान
देते
है।
यह
योजना
भी
धरातल
पर
नहीं
उतरी,
नहीं
बन
सका
अपोलो
चेन्नई
हॉस्पिटल
तत्कालीन
सरकार
ने
रांची
में
अपोलो
चेन्नई
हॉस्पिटल
लाने
की
तैयारी
की
थी।
200
बेड
के
सुपर
स्पेशियलिटी
हॉस्पिटल
को
घाघरा
में
स्थापित
करना
था।
इसी
को
लेकर
रांची
नगर
निगम
और
अपोलो
चेन्नई
के
बीच
वर्ष
2014
में
एग्रीमेंट
हुआ
था।
सरकार
ने
एक
रुपये
में
जमीन
उपलब्ध
करायी
थी।
एग्रीमेंट
के
तहत
2.83
एकड़
जमीन
आवंटित
की
गयी़
जमीन
का
आंवटन
इसी
शर्त
पर
हुआ
था
कि
राज्य
के
लोगों
को
विशेष
सुविधाएं
दी
जायेंगी।
बेड
का
आवंटन
लोगों
को
प्राथमिकता
के
आधार
पर
की
जायेगी।
शर्तों
के
अनुसार
टेंडर
लेने
वाली
कंपनी
को
18
महीनों
के
अंदर
हॉस्पिटल
का
निर्माण
कार्य
पूरा
करना
था,
लेकिन
नौ
वर्ष
बाद
भी
अपोलो
हॉस्पिटल
का
निर्माण
शुरू
नहीं
हो
पाया
है।
वहीं,
नगर
निगम
ने
विगत
माह
में
अस्पताल
के
निर्माण
कार्य
में
बाधा
बन
रहे
अतिक्रमण
हटाने
के
लिए
कुछ
निर्माण
कार्य
को
तोड़ा
था।
अतिक्रमण
हटाने
के
लिए
निगम
की
नोटिस
को
हाईकोर्ट
में
चुनौती
दी
गयी़
सुनवाई
के
दिन
निगम
ने
अतिक्रमण
को
ध्वस्त
कर
दिया
था,
जिसे
कोर्ट
ने
गंभीरता
से
लिया
था।
इसके
बाद
पीड़ितों
को
निगम
ने
2.5-2.5
लाख
मुआवजा
भी
भुगतान
किया।
इसके
बाद
योजना
अभी
भी
लंबित
है।