वसंत पंचमी: क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त और कैसे करें मां सरस्वती की पूजा?
वसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा कहा जाता है। वसंत पंचमी के कामदेव व रति की पूजा की जाती है एंव इसी दिन माता सरस्वती का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है।
प्रत्येक वर्ष माघ मास की शुक्ल पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। वसंत का शाब्दिक अर्थ है मादकता। इस समय धरती पर उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है, वृक्षों में नई कपोलें आने लगती है, पौधों में नयी कलियाॅ प्रस्फुटित होेने लगती है। वसंत पंचमी से पाॅच दिन पहले से ही वसंत ऋतु आरम्भ हो जाती है। इस समय चारों ओर हरियाली व खुशहाली का वातावरण छाया रहता है। हर तरफ रंग-बिरंगे फूल दिखाई पड़ने लगते है। खेतों में पीली सरसों लहलहाती हुयी हर व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती है। वसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा कहा जाता है। वसंत पंचमी के कामदेव व रति की पूजा की जाती है एंव इसी दिन माता सरस्वती का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है।
कैसे उत्पन्न हुई माता सरस्वती-
ऐसी मान्यता है कि सृष्टि निर्माण के समय सर्वप्रथम आदि शक्ति का प्रादुर्वभाव हुआ। देवी महालक्ष्मी के आवाहन पर त्रिदेव यानि शिव, विष्णु व ब्रम्हा जी उपस्थित हुये। तत्पश्चात देवी लक्ष्मी ने तीनों देवों से अपने-अपने गुणों के अनुसार देवियों को उत्पन्न करने की स्तुति की। माॅ लक्ष्मी की प्रार्थना स्वीकार करके तीनों देवों ने अपने गुणों के अनुरूप देवियों का आवाहन किया। सबसे पहले भगवान शिव ने तमोगुण से महाकाली को प्रकट किया, भगवान विष्णु ने रजोगुण से माॅ लक्ष्मी को और ब्रम्हा जी ने अपने सत्वगुण से देवी सरस्वती का आवाहन किया।
माॅ सरस्वती को क्यों कहा जाता है वाणी की देवी-
ब्रम्हा जी ने सृष्टि का निर्माण करने के बाद जब अपने द्वारा बनाई गई सृष्टि को मृत शरीर की भाॅति शान्त, व स्वर विहीन पाया तो ब्रहमा जी उदास होकर बिष्णु जी से अपनी व्यथा को व्यक्त किया। विष्णु जी ने ब्रहमा से कहा कि आपकी इस समस्या का समाधान सरस्वती जी कर सकती है। सरस्वती जी की वाणी के स्वर से आपकी सृष्टि में ध्वनि प्रवाहित होने लगेगी। तब ब्रहमा जी ने सरस्वती देवी का आवाहन किया। सरस्वती जी के प्रकट होने पर ब्रहमा जी ने अनुरोध किया हे देवी आप-अपनी वाणाी से सृष्टि में स्वर भर दो। माता सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को स्पर्श किया वैसे ही ''सा'' शब्द फूट पड़ा। यह शब्द संगीत के सप्तसुरों में प्रथम सुर है।
इस ध्वनि से ब्रहमा जी की मूक सृष्टि में स्वरमय ध्वनि का संचार होने लगा। हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों एंव अन्य जीवों को वाणी मिल गई। नदियों में कलकल की आवाज आने लगी। इससे ब्रहमा जी ने प्रसन्न होकर सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुये वागेश्वरी नाम दे दिया।
शुभ मुहूर्त-इस वर्ष 01 फरवरी को वसंत पंचमी मनाई जायेगी। इस दिन पूजा का शुभ समय सुबह 7 बजकर 50 मि0 से 11 बजकर 56 मि0 तक है।
माॅ सरस्वती की पूजा विधि-
देवी भागवत के अनुसार देवी सरस्वती की पूजा सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण ने की थी।
प्रातःकाल समस्त दैनिक कार्यो से निवृत होकर स्नान, ध्यान करके माॅ सरस्वती की तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद कलश स्थापित गणेश जी तथा नवग्रहों की विधिवत पूजा करें। सरस्वती जी का पूजन करते समय सबसे पहले उनको स्नान करायें। तत्पश्चात माता को सिन्दूर व अन्य श्रंगार की वस्तुये चढ़ायें फिर फूल माला चढ़ाये। मीठे का भोगलगार सरस्वती कवच का पाठ करें। देवी सरस्वती के इस मन्त्र का जाप करने से ''श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा'' असीम पुण्य मिलता है। बसंत पंचमी या मां सरस्वती का दिन, जानिए महत्व