प्रात:काल में सप्तऋषियों का नाम लेने से दिन होता है शुभ
नई दिल्ली, 12 जुलाई। सनातन संस्कृति में प्रात:काल का विशेष महत्व होता है। मनुष्य प्रात:काल जब निद्रा से जागता है तो सर्वप्रथम उसे देवी-देवताओं के नाम स्मरण के लिए निर्देशित किया जाता है। कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम्, यह मंत्र सदियों से प्रात:काल के समय बोला जाता है। इसके साथ ही सप्तऋषियों के नाम स्मरण के लिए भी कहा जाता है। शास्त्रों का कथन है किसप्तऋषियों का नाम प्रात:काल लेने से पूरा दिन शुभ जाता है। पूरी दिनचर्या ठीक से चलती है क्योंकि ये सप्तऋषि ही सृष्टि के आरंभ से अब तक क्षण-प्रतिक्षण के गवाह हैं।
प्रलय के बाद जब-जब पुन: सृष्टि प्रारंभ होती है, तब-तब विभिन्न मन्वंतरों में धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए तथा अपने सदाचरण से लोक जीवनचर्या की उत्तम शिक्षा प्रदान करने के लए सात ऋषि प्रकट होते हैं। ये ही सप्तर्षि कहलाते हैं। इन्हीं की तपस्या, ज्ञान, शक्ति और जीवन दर्शन से समस्त संसार सुख और शांति प्राप्त करता है। ये सप्तर्षि हैं मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु तथा वशिष्ठ। ये सप्तर्षि सौरमंडल में उत्तर दिशा में सप्तर्षि मंडल के नाम से शकटाकार रूप में स्थित रहते हैं। वशिष्ठ तारे के पास एक छोटा तारा और होता है जो वशिष्ठ की पत्नी अरुंधती है।
ऋषि सप्तर्षि मंड
अलग-अलग मन्वंतरों में भिन्न नाम वाले ऋषि सप्तर्षि मंडल में शामिल होते हैं। वर्तमान में सातवां वैवस्वत नामक मन्वंतर चल रहा है। इस मन्वंतर के सप्तर्षि हैं- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज। शास्त्रों का कथन है किप्रात:काल इन सप्तर्षि का नाम स्मरण करने से दिन शुभ व्यतीत होता है।
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ऋषियों की पूजा का दिन
भाद्रपद शुक्ल पंचमी ऋषि पंचमी कहलाती है। इस दिन इन्हीं सप्त ऋषियों का पूजन किया जाता है। इस व्रत को स्त्री-पुरुष दोनों करते हैं किंतु स्ति्रयों के लिए विशेष रूप से करने का निर्देश है।