Safla Ekadashi Vrat 2022: सफला एकादशी व्रत आज, जानिए पूजा विधि और कथा
जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत रखकर भगवान नारायण की पूजा करता है उसे जीवन में कभी असफलता का सामना नहीं करना पड़ता है।
Safla Ekadashi Vrat 2022: आज पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी यानी कि सफला एकादशी है। आज के दिन तिल-शक्कर का भोग भगवान को लगाया जाता है और उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। सफला एकादशी का व्रत करने से सर्वत्र सफलता प्राप्त होती है। विधिपूर्वक जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत रखकर भगवान नारायण की पूजा करता है उसे जीवन में कभी असफलता का सामना नहीं करना पड़ता है। मान्यता है कि पांच हजार वर्ष तप करने के फल के बराबर फल इस एक एकादशी को करने से मिल जाता है।
कैसे करें सफला एकादशी व्रत
सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थान को साफ-स्वच्छ करें। नित्यपूजा के बाद एक चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। सफला एकादशी व्रत का संकल्प लें। संकल्प के बाद भगवान नारायण का पंचोपचार पूजन करें। पीले पुष्प अर्पित करें। ऋ तुफल और मिष्ठान्न आदि का नैवेद्य लगाएं। एकादशी व्रत की कथा सुनें। दिनभर निराहार रहते हुए रात्रि जागरण करें। दूसरे दिन शुभ समय में ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें और स्वयं व्रत खोलें।
सफला एकादशी व्रत कथा
एक समय चंपावती नगरी में महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था। उसके चार पुत्र थे। उन सबमें लुम्पक नाम वाला बड़ा राजपुत्र महापापी था। वह सदा परस्त्री और वेश्यागमन तथा दूसरे बुरे कामों में अपने पिता का धन नष्ट किया करता था। सदैव ही देवता, ब्राह्मण व वैष्णवों की निंदा किया करता था। जब राजा को लुम्पक के कुकर्मों का पता चला तो उन्होंने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। जीवनयापन के लिए उसने चोरी करने का निश्चय किया। दिन में वह वन में रहता और रात्रि को अपने पिता की नगरी में चोरी करता तथा प्रजा को तंग करने का कुकर्म करता। उसके इस तरह के कार्यों से सारी नगरी भयभीत हो गई। वह वन में रहकर पशु आदि को मारकर खाने लगा। नागरिक और राज्य के कर्मचारी उसे पकड़ लेते किंतु राजा के भय से छोड़ देते।
वृक्ष की पूजा भगवान के समान करते थे
वन में एक अतिप्राचीन पीपल का विशाल वृक्ष था। लोग उस वृक्ष की पूजा भगवान के समान करते थे। उसी वृक्ष के नीचे लुम्पक रहा करता था। पौष कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन शीत अधिक होने के कारण लुम्पक सारी रात सो नहीं सका। उसके हाथ-पैर अकड़ गए। सूर्योदय होते-होते वह मूर्छित हो गया। दूसरे दिन एकादशी को मध्याह्न के समय सूर्य की गर्मी पाकर उसकी मूर्छा दूर हुई। गिरता-पड़ता वह भोजन की तलाश में निकला। पशुओं को मारने में वह समर्थ नहीं था अतथ पेड़ो के नीचे गिरे हुए फल उठाकर वापस उसी पीपल वृक्ष के नीचे आ गया। उस समय तक भगवान सूर्य अस्त हो चुके थे। वृक्ष के नीचे फल रखकर कहने लगा- हे भगवन! अब आपके ही अर्पण हैं ये फल। आप ही तृप्त हो जाइए। उस रात्रि को दुथख के कारण रात्रि को भी नींद नहीं आई। उसके इस अनजाने में किए गए उपवास और जागरण से भगवान अत्यंत प्रसन्न् हो गए और उसके सारे पाप नष्ट कर दिए। दूसरे दिन प्रातथ एक अतिसुंदर घोड़ा अनेक सुंदर वस्तुओं से सजा हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र! श्री नारायण की कृपा से तेरे सब पाप नष्ट हो गए हैं। अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर। ऐसी वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न् हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके पिता के पास गया। पिता ने प्रसन्न् होकर उसे समस्त राज्य का भार सौंप दिया और वन का रास्ता लिया। अब लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा। अतथ जो मनुष्य इस परम पवित्र सफला एकादशी का व्रत करता है उसके सारे पापों का नाश होकर अंत में मुक्ति मिलती है। सफला एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने से अथवा श्रवण करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
एकादशी तिथि कब से कब तक
- एकादशी तिथि प्रारंभ : 18 दिसंबर रात्रि 3.32 से
- एकादशी तिथि पूर्ण : 19 दिसंबर रात्रि 2.32 बजे
- पारण : 20 दिसंबर को प्रात: 8.05 से 9.11
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