क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

ऋषि पंचमी व्रत 2017: हर पाप से मुक्त करता है ये उपवास

By पं. गजेंद्र शर्मा
Google Oneindia News

नई दिल्ली। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार जाने-अनजाने में हुए समस्त पापों से मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी व्रत सबसे प्रभावशाली है। इस व्रत का विधान स्त्री-पुरूष दोनों के लिए है। धर्म शास्त्रों में रजस्वला स्त्री को महा अपवित्र माना गया है।

जानिए रामचरित मानस के श्लोकों और दोहों का अद्भुत चमत्कारजानिए रामचरित मानस के श्लोकों और दोहों का अद्भुत चमत्कार

मान्यता के अनुसार रजस्वला स्त्री ऋतु स्नान के पहले दिन चांडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी और तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। चौथे दिन स्नान करने के बाद ही वह शुद्ध होती है और उसके बाद ही वह घर की किसी भी वस्तु को हाथ लगा सकती है।

कथा

कथा

प्राचीन काल में सीताश्व नामक एक महाधार्मिक राजा हुआ करता था। वह धर्म-कर्म, व्रत-पूजा आदि में ही अपना समय व्यतीत करता था। एक दिन उसने ब्रह्मा जी से पूछा कि सभी व्रतों में श्रेष्ठ और तुरंत फल देने वाला व्रत कौन सा है? तब ब्रह्मा जी ने बताया कि ऋषि पंचमी नाम का व्रत सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ और सभी पापों का विनाश करने वाला है। राजा सीताश्व के पूछने पर ब्रह्मा जी ने इस व्रत की कथा सुनाई।

एक सदाचारी ब्राह्मण

एक सदाचारी ब्राह्मण

विदर्भ देश में उत्तंक नाम का एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी सुशीला अत्यंत पतिव्रता थी। उसके एक पुत्र और एक पुत्री थे। परिवार सुख से रहते हुए धर्म कर्म करते हुए जीवन यापन कर रहा था कि अचानक उन पर विपदा टूट पड़ी। ब्राह्मण की बेटी विवाह के तुरंत बाद विधवा हो गई और मायके वापस आ गई। दुखी ब्राह्मण दंपति अपनी बेटी सहित गंगा किनारे आ गए और एक कुटिया बनाकरर रहने लगे।

ईश्वर का जाप

ईश्वर का जाप

एक दिन उत्तंक को ईश्वर का जाप करते हुए विचार उत्पन्न हुआ कि आखिर उनकी बेटी ने ऐसा कौन सा पाप किया है कि उसे भाग्य की यह चोट भोगनी पड़ी। उत्तंक ने समाधि लगाकर अपनी कन्या के पूर्वजन्म का अवलोकन किया। उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी पुत्री पूर्व जन्म में रजस्वला होने पर भी घर के बर्तनों को छू लेती थी। इससे उसका भाग्य उससे रूठ गया और इस जन्म में भी वह बीमार बनी रहती है।

ऋषि पंचमी का व्रत

ऋषि पंचमी का व्रत

सच्चाई जानने के बाद ब्राह्मण ने अपनी बेटी को बुलाकर सारी बातें समझाईं और उससे ऋषि पंचमी का व्रत करने को कहा। पिता की आज्ञा से पुत्री ने पूरे विधि-विधान से, शुद्ध मन से ऋषि पंचमी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से वह सभी पापों से मुक्त हो गई। इससे वर्तमान जीवन में वह सभी शारीरिक कष्टों से मुक्ति पा गई और अगले जन्म में उसे अटल सुहाग की प्राप्ति हुई और वह अक्षय सुखों की स्वामिनी हुई।

भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि

भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि

ऋषि पंचमी का व्रत भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को किया जाता है। पापों के प्रक्षालन के लिए स्त्री-पुरुष दोनों को यह व्रत करना चाहिए। इस दिन व्रती को गंगा या किसी नदी या तालाब पर स्नान करना चाहिए। यदि संभव ना हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसके पश्चात पूजा के स्थान को गोबर से लीपकर मिट्टी या तांबे का जल से भरा कलश रखकर अष्टदल कमल बनाएं। इसके बाद अरूंधती समेत सप्तऋषियों का पूजन कर कथा सुनें। तत्पश्चात किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।

English summary
Rishi Panchami is the fifth day, the next day after Ganesh Chaturthi day in Bhadrapad month of the Lunar calendar. It is a traditional worship of Sapta Rishi.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X