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Pitru Paksha 2020: गयासुर राक्षस का शरीर बन गया मोक्ष प्रदाता 'गया" नगर

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण आदि करने के लिए बिहार में स्थित गया का नाम आदर के साथ लिया जाता है। पूरे वर्षभर यहां अपने पितरों के निमित्त लोग पिंडदान करने आते हैं। पितृपक्ष में तो यहां लाखों लोग पहुंचते हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार पितरों के निमित्त किया जाने वाला पिंडदान पितरों को मोक्ष प्रदान करता है और उनके जो अग्रज पिंडदान करते हैं, उन्हें भी पितरों का शुभाशीष प्राप्त होता है।

गयासुर राक्षस का शरीर बन गया मोक्ष प्रदाता गया नगर

वैसे तो हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन, नासिक, त्रयंबकेश्वर समेत देश भर में अनेक पवित्र नदियों के तट पर पिंडदान, तर्पण आदि किए जाते हैं, लेकिन इनमें सबसे अधिक महत्व बिहार के फल्गु तट पर बसे गया नगर का है। कहा जाता है कि यहां एक बार पिंडदान कर दिया तो पितरों की आत्मा को शांति मिल जाती है। भगवान राम ने भी पिता दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में पिंडदान किया था।

महाभारत में बताई है गया की महिमा

महाभारत में गयाजी के बारे में लिखा है कि फल्गु तीर्थ में स्नान करके जो मनुष्य श्राद्धपक्ष में भगवान विष्णु का दर्शन करता है, वह पितृ ऋ ण से मुक्त हो जाता है। फल्गु तीर्थ में श्राद्धपक्ष के दौरान पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन- ये तीन मुख्य कार्य होते हैं। पितृपक्ष में यहां कुल परंपरा के अनुसार कर्मकांड का विधि व विधान अलग-अलग है। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन तक के कर्मकांड करते हैं।

क्या है गयाजी की कहानी

पुराण्ा कथा के अनुसार एक समय गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या करके ब्रह्मदेव को प्रसन्न् कर लिया। ब्रह्मदेव के प्रकट होने पर गयासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं। उसे ब्रह्माजी ने यह वरदान दे दिया, लेकिन शीघ्र ही यह वरदान देवताओं के लिए मुसीबत बन गया। स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी, क्योंकि लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होकर मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में पहुंचने लगे।

देवताओं को एक युक्ति सूझी

इस परेशानी से बचने के लिए देवताओं को एक युक्ति सूझी। देवताओं ने एक यज्ञ करने के लिए गयासुर से पवित्र स्थल की मांग की। गयासुर ने सोचा कि मुझे ब्रह्माजी का वरदान है और मेरा शरीर अत्यंत पवित्र है, इसलिए मैं अपना शरीर ही देवताओं को यज्ञ के लिए दे देता हूं। तब गयासुर ने अपना शरीर यज्ञ के लिए दे दिया। गयासुर जब लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया और उस पर देवताओं ने यज्ञ किया। यही पांच कोस जगह आगे चलकर गयासुर के नाम पर गया कहलाई। यज्ञ संपन्न् हुआ। इसके बाद भी गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और उसने देवताओं से फिर वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे। जो भी लोग यहां पर पिंडदान करें, उनके पितरों को मुक्ति मिले। यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों के मोक्ष की कामना से गया में पिंडदान करने आते हैं।

पिंडदान के तीन विशेष स्थान

भारत भूमि पर श्राद्ध के लिए गंगासागर, पुष्कर, बद्रीनाथ, हरिद्वार, उज्जैनी, नासिक, जगन्न्ाथपुरी, रामेश्वरम सहित 50 से अधिक स्थानों को पवित्र माना गया है। इनमें तीन जगह का महत्व सबसे अधिक है। इनमें बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल, हरिद्वार में नारायणी शिला और बिहार के गया को सबसे सिद्ध और महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां हर साल करोड़ों श्रद्धालु अपने पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान, श्राद्धकर्म करने पहुंचते हैं।

यह पढ़ें: Pitru Paksha 2020: श्राद्ध से आती है समृद्धियह पढ़ें: Pitru Paksha 2020: श्राद्ध से आती है समृद्धि

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English summary
Why Gaya is very Important For Pind Daan, Read Story.
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