National Youth Day 2022: जानिए स्वामी विवेकानंद ने क्यों कहा-'विश्वास कीजिए लेकिन दिमाग का भी प्रयोग कीजिए'
नई दिल्ली, 12 जनवरी। स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिन को देश 'राष्ट्रीय युवा दिवस' के रूप में मनाता है। स्वामी जी का पूरा जीवन अपने आप में ज्ञान का भंडार है, धर्म पर अटूट विश्वास करने वाले स्वामी विवेकानंद ने हमेशा अपने तर्कों से लोगों निशब्द कर दिया है। उनके जीवन का ऐसा ही एक रोचक किस्सा है, जिसे आज देश के हर बच्चों और युवाओं का जानना चाहिए।
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'जगत के कण-कण में ईश्वर व्याप्त हैं'
एक बार की बात है, एक महात्मा ने बच्चों औऱ भक्तों को बताया कि 'इस जगत को भगवान ने बनाया है और इसके कण-कण में ईश्वर व्याप्त है, चाहे उस चीज में जान हो या फिर नहीं।' ये बात एक भक्त पर काफी असर कर गई, उसे अब चीज में भगवान दिखाई पड़ने लगे। कुछ वक्त बाद वो ही महात्मा फिर से उस भक्त के गांव के पास पधारे।
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महात्मा के आश्रम तक पहुंचने के लिए एक जंगल से गुजरना था
जिनसे मिलने के लिए वो भक्त फिर से महात्मा के पास जाने लग गया। महात्मा के आश्रम तक पहुंचने के लिए एक जंगल से गुजरना था। वो भक्त अपने महात्मा प्रेम में जल्दी-जल्दी चले जा रहा था कि अचानक से उसे सामने से बड़ी तेजी से हाथी आता दिखाई पड़ा।
'सबलोग रास्ते से हट जाओ, ये हाथी पागल हो गया है'
हाथी के पीछे-पीछे महावत दौड़ रहा था और चिल्ला रहा था कि 'सबलोग रास्ते से हट जाओ, ये हाथी पागल हो गया है' ये बात उस भक्त को भी सुनाई दी लेकिन उसके दिमाग में महात्मा जी की बात गूंज रही थी। वो महावत की बात सुनकर भी नहीं हटा और सोचने लगा कि अगर हाथी में भी भगवान हैं तो मुझे नुकसान नहीं पहुंचेगा और ऐसा सोचकर वो हाथी के सामने आ गया लेकिन हाथी ने उसे अपनी सूंड़ में लपेटकर पटक दिया। जिससे वो बेहोश हो गया।
' विश्वास कीजिए लेकिन दिमाग का भी प्रयोग कीजिए'
जब उसे होश आया तो देखा कि वो अपने महात्मा के ही आश्रम में था। महात्मा ने उसे पूछा कि ये सब कैसे हुआ? तब उसने सारी घटना कह सुनाई और कहा कि मैंने आपकी बात मानी तो मेरा ऐसा हाल हो गया। इस पर महात्मा के पास खड़े शिष्य ने कहा कि गुरुदेव ( महात्मा) की बात एकदम सही है। आपको हाथी और महावत दोनों दिखाई दे रहे थे। महावत वहां ईश्वर के ही रूप में आपको हिदायत दे रहे थे लेकिन आपने उनकी बात को नजर अंदाज करके मुसीबत यानी हाथी को ईश्वर मान लिया, तो गलती आपकी है,ईश्वर की नहीं। विश्वास कीजिए लेकिन दिमाग का भी प्रयोग कीजिए।
वो महात्मा रामकृष्ण परमहंस थे
शिष्य की ये बात सुनकर महात्मा, भक्त और वहां खड़ा हर इंसान अवाक रह गया। जानते हैं वो शिष्य कौन था? तो वो शिष्य और कोई नहीं स्वामी विवेकानंद थे। और वो महात्मा रामकृष्ण परमहंस थे, जिन्होंने नरेंद्र को विवेकानंद नाम दिया था।