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Motivational and Inspiring Story: कभी सुख नहीं देती दूसरों की देखादेखी जुटाई गई सुविधाएं

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली, 10 मई। अक्सर हम अपने आसपास, परिवार में, समाज में ऐसे लोगों को देखते हैं जो दूसरों की देखादेखी अपने पास सुविधाएं जुटाने का प्रयास करते हैं। उसके पास बड़ा मकान है तो मेरे पास भी होना चाहिए। उसके पास बड़ी कार है तो मेरे पास भी होनी चाहिए। इसके चक्कर में वह व्यक्ति अनैतिक कार्य भी करने लगता है और शास्त्रीय मर्यादाओं का उल्लंघन करने में भी पीछे नहीं रहता। लेकिन दूसरों की देखादेखी जुटाई गई ऐसी सुविधाएं मनुष्य को कभी सुख नहीं देती। मनुष्य यदि दूसरों की सुख-सुविधाओं को देखकर वैसी ही अपने पास भी लाना चाहता है तो दूसरे के कष्ट भी उसके साथ अपने आप चले आते हैं।

कभी सुख नहीं देती दूसरों की देखादेखी जुटाई गई सुविधाएं

आइए इसे इस छोटी सी कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं-

एक समय की बात है। गौतमी नदी के तट पर आत्रेय ऋषि आश्रम बनाकर निवास करते थे। उन्होंने यज्ञ करके अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त कर ली थी। उन्हें मन की गति से कहीं भी आने-जाने की शक्ति भी प्राप्त हो गई थी। इस शक्ति का उपयोग करते हुए वे एक समय इंद्रलोक में चले गए। वहां उन्होंने रत्नाभूषणों से सुसज्जित देवताओं से घिरे हुए इंद्र को देखा जो सुंदर सुंदर अप्सराओं का नृत्य देख रहे थे। वहां सर्वत्र सुख ही सुख दिखाई दे रहा था। यह सब देखकर आत्रेय मुनि उन सब वस्तुओं पर मोहित हो गए और अपने आश्रम पर लौट आए और अपनी पत्नी से कहा किमुझे इंद्रलोक के सारे सुख भोग और ऐश्यर्व यहीं पृथ्वी पर चाहिए। मुझे आश्रम की कोई वस्तु अब सुहाती नहीं हैं। पत्नी ने उन्हें समझाया किहम ब्राह्मण हैं और यह सब ऐश्वर्य हमारे किसी के काम के नहीं, लेकिन मुनि तो उन सुखों के पीछे मोहित हो गए थे।

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महात्मन! मैं इंद्र का पद प्राप्त करना चाहता हूं

उन्होंने अपने योग बल की शक्ति से विश्वकर्मा को बुलाया और कहा कि महात्मन! मैं इंद्र का पद प्राप्त करना चाहता हूं। आप शीघ्र ही यहां इंद्रपुरी का निर्माण करें और मुझे इंद्रलोक से भी बढ़कर सारे सुख यहां उपस्थिति करके दीजिए। यदि आपने इसके विपरीत कोई बात की तो मैं अभी यहीं आपको भस्म कर दूंगा। ऐसा वचन सुनकर विश्वकर्मा ने तत्काल वहां मेरू पर्वत, देवपुरी, कल्पवृक्ष, कल्पलता, कामधेनु, वज्र आदि मणियों से विभूषित सुंदर तथा अत्यंत चित्रकारी किए हुए गृह बनाए। वहां सुधर्मा सभा, सुंदर अप्सराएं, उच्चैश्रवा अश्व, ऐरावत हाथी, समस्त अस्त्र-शस्त्र और इंद्र की पत्नी शचि के समान सुंदर स्त्री का निर्माण किया। आत्रेय ने उस रूपवान स्त्री को अपनी भार्या बना लिया। वहां उसी तरह नृत्य संगीत होने लगा जैसा इंद्र की सभा में होता था। आत्रेय का जीवन सुख पूर्वत व्यतीत हो रहा था लेकिन वे खतरे से अनजान थे।

इंद्रलोक का समस्त सुख-वैभव पृथ्वी पर आ गया है

उधर दैत्यों और दानवों को जब यह बात पता लगी कि इंद्रलोक का समस्त सुख-वैभव पृथ्वी पर आ गया है तो वे इंद्र से वृत्रासुर के वध का प्रतिशोध लेने पहुंच गए। उन्होंने आत्रेय के सुंदर लोक को चारों ओर से घेर लिया और आक्रमण कर दिया। यह देख आत्रेय मुनि घबरा गए और बाहर निकलकर दैत्यों से विनती करने लगे किहे दैत्यों, दानवों मैं इंद्र नहीं हूं। मैं आत्रेय मुनि हूं। यह न तो इंद्रपुरी है और न यहां इंद्र का नंदनवन है। मैं तो ब्राह्मणों के साथ गौतमी तट पर निवास करता हूं। मैंने इंद्रलोक से मोहित होकर उसकी तरह इंद्र पद प्राप्त करना चाहा और ये सारे संसाधन जुटाए। मैंने यह गलत कार्य कर डाला जो न तो वर्तमान में सुख देगा न भविष्य में।

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'मुनिश्रेष्ठ आत्रेय! यह इंद्र का सुख तुरंत समेट लो'

यह सुनकर असुर बोले- मुनिश्रेष्ठ आत्रेय! यह इंद्र का सुख तुरंत समेट लो और अपने आश्रम लौट जाओ तभी सुखपूर्वक रह सकते हो। तब आत्रेय ने पुन: विश्वकर्मा को आमंत्रित किया और उनसे सारा सुख वापस लेने का आग्रह किया। उन्होंने कहा मैंने मर्यादा का उल्लंघन कर इंद्र की बराबरी करने का प्रयास किया जिसका दंड मुझे मिला। मुझे क्षमा करें। तो देखा किस प्रकार दूसरों की देखादेखी करने का नतीजा। इसलिए जो आपके पास है उसमें सुखी रहना सीखें। अपने वर्तमान संसाधनों से संतुष्ट रहें और नीतिगत तरीके से आगे बढ़ने का प्रयास करें।

English summary
Dont Copy Others, its not good thing, please read Motivational and Inspiring Story.
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