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Kanwar Yatra 2022: शिव-शंभू के भक्त क्यों करते हैं 'कांवड़ यात्रा'? क्या है इसका महत्व और नियम?

By ज्ञानेंद्र शास्त्री
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नई दिल्ली, 14 जुलाई। भगवान शिव का प्रिय मास सावन गुरुवार से प्रारंभ हो रहा है, सावन मास आते ही प्रकृति भी खिल उठती है। चारों ओर हरियाली ही हरियाली नजर आती है। आस्था और विश्वास के इस पावन महीने से त्योहारों की भी शुरुआत हो जाती है, वैसे तो सावन की हर बात निराली है और इसकी हर चीज काफी आकर्षित करती है लेकिन सावन का जिक्र तब तक अधूरा है, जब तक इसमें 'कांवड़ यात्रा' का वर्णन ना हो। सावन आते ही भगवा चोला पहने भोलेनाथ के भक्त अपने शिव-शंभू को प्रसन्न करने के लिए हाथों में कावंड़ लिए हरिद्धार से गंगाजल लाने के लिए निकल पड़ते हैं।

आइए जानते हैं कि इस 'कांवड़ यात्रा' का महत्व

आइए जानते हैं कि इस 'कांवड़ यात्रा' का महत्व

आपको बता दें कि इस बार 'कांवड़ यात्रा' 14 जुलाई से शुरू होकर 26 जुलाई तक चलेगी। दो साल तक कोरोना की वजह से कांवड़ यात्रा नहीं हो पाई थी, इसलिए इस बार भक्तगण दोगुने जोश से इस यात्रा को निकालने वाले हैं। आपको बता दें कि शिव भक्त हरिद्धार से पवित्र गंगा को कांवड़ में लेकर पदयात्रा के जरिए अपने गांव वापस लौटते हैं इसलिए इस यात्रा को कांवड़ यात्रा बोला जाता है।

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गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं

गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं

कांवड़ से भरे गंगाजल से वो शिवलिंग का अभिषेक करते हैं, ऐसा माना जाता है कि इस अभिषेक से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और वो अपने भक्त को हर कष्ट से दूर कर देते हैं। कांवड़ के जल से अभिषेक श्रावण की चतुर्दशी के दिन होता है।

'कांवड़ यात्रा' का संदेश

'कांवड़ यात्रा' का संदेश

शिव ही सृष्टिकर्ता हैं, शिव ही अनन्त हैं और शिव ही प्रेम हैं और वो भक्त के लोटे भर जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं। ये बात ये संदेश देती है, अगर भक्ति में पवित्रता हो और वो पानी जैसा रंगहीन हो तो सृष्टिकर्ता भी प्रसन्न हो जाते हैं, ऐसे में हम और आप मनुष्य क्या चीज हैं, इसलिए हर इंसान में एक-दूसरे के प्रति निस्वार्थ भाव का प्रेम होना चाहिए, जिसमें केवल प्यार का रंग घुला होना चाहिए।

'वाल्मीकि रामायण'

'वाल्मीकि रामायण'

ये कांवड़ों का अपने शिव के प्रति प्रेम और भक्ति की शक्ति ही है जो वो मीलों पैदल यात्रा करके कांवड़ में जल लेकर आते हैं। आपको बता दें कि त्रेता युग में श्रावण मास में ही श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा शुरू की थी। तभी से शिवभक्ति की यह परंपरा चली आ रही है। इस बात का उल्लेख 'वाल्मीकि रामायण' में भी है।

श्रवण कुमार थे पहले कांवड़-यात्री

श्रवण कुमार थे पहले कांवड़-यात्री

उन्होंने लिखा है कि श्रवण कुमार ने अपने नेत्रहीन मां-पिता को कंधे में बैठाकर हरिद्वार लाए थे और उन्हें गंगा स्नान कराया, वापसी में अपने साथ गंगाजल भी ले गए थे तो वो पहले कांवड़-यात्री थे,तो वहीं द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान ही युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम ने हरिद्वार से गंगाजल लाकर शिव की अराधना की थी।

कांवड़ यात्रा में बहुत सारी बातों का ध्यान भी रखना होता है जो कि निम्मलिखित है..

  • कांवड़ यात्रा में कांवड़ को धरती पर नहीं रखना होता है।
  • अगर यात्री थक जाए तो कांवड़ को टांग दिया जाता है।
  • कांवड़ यात्रा के दौरान मदिरा पान, मांस-मच्छी खाना वर्जित है।
  • कांवड़ यात्रा के दौरान मन-तन दोनों का सात्विक होना अनिवार्य है।
  • कांवड़ यात्रा के दौरान केवल इंसान को शिव शक्ति का ही ध्यान रखना होता है।
  • कांवड़ यात्रा इंसान को संयम, शांति और ध्यान का पाठ सिखाती है।

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English summary
The Kanwar Yatra will begin on July 14 and will end on July 26 this year.Read its History, Significance and rules.
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