Janmashtami 2023: कान्हा को क्यों कहते हैं 'लड्डू गोपाल' ?
Janmashtami 2023: देश में जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है, इस बार भी ये पर्व दो दिन मनाया गया। आपको बता दें कि देवकीनंदन ने रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था। वैसे तो कान्हा जी का हर रूप बहुत मनमोहक है लेकिन जन्माष्टमी के पावन पर्व पर नटखट 'लड्डू गोपाल' की पूजा की जाती है। भगवान का ये रूप बहुत मोहक है।
कान्हा को क्यों कहते हैं 'लड्डू गोपाल' ?
लड्डू गोपाल का चित्रण बाल कृष्ण के रूप में हैं, जो कि घुटनों के बल चलते हैं, उनके एक हाथ में लड्डू होता है। अब आप सोच रहे होंगे कि कान्हा जी तो मक्खन और दही को पसंद करते हैं तो फिर उन्हें लड्डू गोपाल क्यों कहते हैं?
Janmashtami 2023: रोहिणी नक्षत्र में आई है जन्माष्टमी, लड्डू गोपाल के जन्म पर बना दुर्लभ संयोग
कुम्भनदास मुरलीवाले के बहुत बड़े भक्त थे
दरअसल इसके पीछे एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि ब्रज भूमि में भगवान श्रीकृष्ण के एक परम भक्त कुम्भनदास थे, जिनका एक छोटा बेटा था रघुनंदन। कुम्भनदास मुरलीवाले के बहुत बड़े भक्त थे। वो दिन रात उनकी पूजा करते थे इसलिए अपना घर और मंदिर छोड़कर कहीं नहीं जाते थे लेकिन एक बार वृंदावन से उन्हें भागवत कथा का न्यौता आया, जिसे वो मना नहीं कर पा रहे थे तो उन्होंने बहुत सोच-विचार कर जाने का मन बनाया और अपने बेटे को भगवान की पूजा की जिम्मेदारी देकर गए और बोले कि शाम को प्रभु को भोग जरूर लगाना।
प्रभु ने धरा बाल रूप
शाम को रघुनंदन ने श्रीकृष्ण की पूजा विधिवत की और भोग की थाली प्रभु के सामने परोसी। वो एक छोटा बच्चा था, उसे लगा कि भगवान अपने हाथों से भोग खा लेंगे। लेकिन ऐसा तो हुआ नहीं तो वो जोर-जोर से रोने लगा, उसे लगा कि उसकी पूजा से भगवान नाराज हो गए हैं। उसके रोने की आवाज प्रभु ने सुनी तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने बाल रूप धारण किया और रघुनंदन के सामने प्रकट हो गए। रघुनंदन उन्हें देखकर खुश हो गया और प्रणाम करते हुए उनके सामने भोग की थाली रख दी।
कुम्भनदास को हुआ शक
प्रभु ने पूरा प्रसाद खा लिया और फिर बहुत सारा आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए। कुम्भनदास जब घर लौटे तो भोग की थाली एकदम साफ देखकर हैरान रह गए लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि शायद रघुनंदन को भूख लगी होगी तो उसने खा लिया होगा लेकिन अब तो ये रोज का हाल हो गया। उन्होंने देखा कि उनसे ज्यादा रघुनंदन अब प्रभु की पूजा में रूचि लेने लग गया है इससे उन्हें शक हुआ। वो इसका सच जानने के लिए एक दिन मंदिर की दीवार के पीछे छिप गए।
रघुनंदन ने प्रभु की पूजा की और भोग की थाली परोसी,
जैसे ही शाम हुई रघुनंदन ने प्रभु की पूजा की और भोग की थाली परोसी, वैसे ही प्रभु बालरूप में प्रकट हुए, ये देखकर कुम्भनदास एकदम चकित रह गए। वो भाव-विभोर हो गए और तुरंत ही सामने से निकलकर प्रभु की चरणों में गिर गए। उस वक्त भगवान के एक हाथ में लड्डू था। वो उसी रूप में वहां जड़ हो गए। गोपाल तो उन्हें कहते ही हैं, उनके हाथ में लड्डू था तो इसलिए उनका नाम लड्डू गोपाल पड़ गया और जन्माष्टमी पर इनके मोहक रूप की पूजा होने लग गई।