पौष माह में मिलेगा तरक्की का वरदान इसलिए जरूर कीजिए सूर्य उपासना
नई दिल्ली। हिन्दू पंचांग के अनुसार साल के दसवें माह का नाम पौष हैं। इस मास में हेमंत ऋतु होने से ठंड अधिक होती है। सोमवार से पवित्र पौष महीने का शुभारंभ हो गया है,इस महीने में सृष्टि में बहुत से बदलाव आते हैं, धर्म ग्रंथों के अनुसार इस मास में सूर्य की उपासना करना चाहिए। इस महीने सूर्य ग्यारह हज़ार रश्मियों के साथ व्यक्ति को उर्जा और उत्तम सेहत प्रदान करता है, पौष मास 04 दिसंबर से 02 जनवरी तक रहेगा।
सर्व प्रवर्तक
वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे। सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक.यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है।
भारत में सूर्योपासना का प्रचलन
वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो लोगों ने सूर्य मंदिर का निर्माण कर लिया। अनेक पुराणों में लिखा है कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। भारतीय ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है।
सू्र्य को अर्ध्य जरूर दें
इसलिए पौष के महीने में सू्र्य को अर्ध्य जरूर दें, 'सूर्य' को नियमित जल देने से प्रतिष्ठा, सरकारी पद, समाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। हडडी रोग, ऑख रोग, ह्रदय रोग आदि में फायदा होता है और तरक्की के रास्ते खुलते हैं। रोज सुबह स्नान करने के बाद सूर्य को जल अर्पित करें , तांबे के लोटे से जल अर्पित करेंगे तो ज्यादा फायदा होगा, अर्ध्य देते वक्त "ॐ आदित्याय नमः" और 'ॐ भास्कराय नम: का जाप करना चाहिए।
सूर्य धरती पर ऊर्जा का श्रोत
वैसे सूर्य धरती पर ऊर्जा का श्रोत है और सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा है।इसी तारे के चारों ओर पृथ्वी चक्कर लगाती है। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग 13 लाख 90 हजार किलोमीटर है।
25 करोड़ वर्ष
सूर्य की बाहरी सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम,ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निशियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से होता है।वैज्ञानिकों के मुताबिक सूरज आकाश गंगा के केन्द्र की 251 किलोमीटर प्रति सेकेंड से परिक्रमा करता है। इस परिक्रमा में 25 करोड़ वर्ष लगते हैं इस कारण इसे 'एक निहारिका वर्ष' भी कहते हैं।
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