Must Read: राधा में समाया है ब्रह्मांड का पुण्य
नई दिल्ली। भारतीय जनमानस की श्रद्धा के दो विशेष केंद्र हैं- श्री राम और श्री कृष्ण। श्री राम अपनी नीति और मर्यादा के लिए जाने जाते हैं, तो श्री कृष्ण अपनी माया और प्रेम के बल पर पूरे ब्रह्मांड को सहज ही अपने वश में करते हैं। दोनों की ही कथाएं भारतीय जनमानस में हर समय बड़े ही प्रेम और श्रद्धा से सुनी जाती हैं। भारतीय श्रद्धालु वर्ग में से आधे लोगों की सुबह ही राम राम के उद्घोष से होती है, तो बाकी आधा वर्ग जै श्री कृष्ण की पुकार लगाता है। जब बात श्री कृष्ण की आती है, तो राधा रानी का नाम आना उतना ही सहज है, जितना जीवन के साथ सांसों का। यह माना जाता है कि राधा के बिना बिहारी को कोई नहीं मना सकता। यही कारण है कि भारत में आपसी अभिवादन में राधे राधे का चलन आम है। राधा- इन दो अक्षरों की महिमा कितनी गहन है।
आज इसी तथ्य को एक सुंदर- सी कथा के माध्यम से जानते हैं
सेठ को भगवान के नाम से ही चिढ़ थी
किसी नगर में एक सेठ रहता था। उसका एक ही पुत्र था, जिसे भगवान के नाम से ही चिढ़ थी। उसे जितना भगवान का नाम लेने को कहा जाता, वह उतना ही बिदकता था। सेठ अपने पुत्र के व्यवहार से बड़े दुखी थे। एक बार कोई जाने- माने संत उस नगर में आए, तो सेठ अपने पुत्र को लेकर उनके पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। संत ने कहा- बेटा, बोलो राधे- राधे। बेटा चुप। संत ने कई बार अपनी बात दोहराई, तब चिढ़कर वह बालक बोला- मैं क्यों बोलूं राधे- राधे। संत ने कहा, बस, सेठ, अब इसकी चिंता ना करो, आपका काम हो गया। उन्होंने पुत्र से कहा कि जब यमराज पूछें कि तुमने क्या पुण्य किया, तो बोल देना कि मैंने एक बार राधे- राधे कहा था।
इंद्र बोले कि राधा नाम की महिमा तो अपार है
समय के साथ बडे़ होकर, अपनी आयु पूर्ण करने के बाद सेठ का पुत्र यमराज के समक्ष पहुंचा। यमराज ने पुण्य पूछे, तो उसने दोहरा दिया कि मैंने एक बार राधे- राधे कहा था। अब आप ही देख लें। यमराज जी को समझ ना आया कि इस पुण्य को क्या प्रतिदान दूं, तो वे सेठ के पुत्र को लेकर इंद्र के पास चले। इस समय सेठ का पुत्र अड़ गया कि मैं पालकी में ही जाउंगा और पालकी को कंधा आप देंगे। यमराज ने बात मान ली।
सारी बात सुनकर इंद्र बोले कि राधा नाम की महिमा तो अपार है, पर कितनी, यह मैं नहीं जानता, तो हम सबको ब्रह्मा जी के पास जाना चाहिए। अब सेठ का पुत्र अड़ गया कि दूसरी तरफ से पालकी इंद्र उठाएं, तो ही आगे चलंूगा। उधर ब्रह्मा जी भी राधा नाम के पुण्य की व्याख्या ना कर सके और उन्होंने शिव जी के पास चलने को कहा। अब सेठ का बेटा अड़ गया कि मेरी पालकी ब्रह्मा जी भी उठाएं। इसी तरह शिव जी के पास जब यह पालकी पहुंची, तो उन्होंने भी राधा नाम का पुण्य बताने में असमर्थता जताई और श्री विष्णु के पास चलने को कहा। सेठ का बेटा फिर अड़ गया कि अब चौथी तरफ से शिव जी कंधा दें, तो ही चलूंगा। हारकर शिव जी ने कहार हटा कर खुद पालकी संभाली।
जीवन में मात्र एक बार राधे- राधे बोल वह व्यक्ति मोक्ष पा गया..
जब यह सवारी श्री विष्णु के धाम पहुंची तो वे स्वयं उठकर द्वार तक देखने आए कि ऐसा कौन पुण्यात्मा है, जिसे ब्रह्मांड की महान विभूतियां अपने कंधे पर उठाकर ला रही हैं। सभी ने श्री विष्णु को विस्तार से सारी बात बताई तो वे हंसकर बोले- जिस व्यक्ति की पालकी स्वयं यमराज, इंद्र, ब्रह्मा जी और शिव जी ने उठाई हो, वह तो स्वयं मेरी गोद में बैठने का अधिकारी हो गया। इस व्यक्ति को और क्या प्रतिदान दिया जा सकता है। इसे मेरे पास ही छोड़ दें। इस तरह जीवन में मात्रएक बार राधे- राधे बोल वह व्यक्ति मोक्ष पा गया।
Note: तो देखा आपने, प्रेम की महिमा और राधा नाम के जाप का प्रतिफल। यही श्री कृष्ण की माया है, यही उनका अमर प्रेम है, जो राधा के नाम को ही भवसागर को पार करने का माध्यम बना देता है।