सीएम योगी का मैराथन दौरा: यूपी चुनाव में पश्चिम बंगाल फॉर्मला क्यों नहीं चलेगा? जानिए
लखनऊ। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उत्तर प्रदेश के विपक्षी दलों में एक उम्मीद की किरण पैदा हुई है। उम्मीद कि यदि गैर-भाजपाई वोटरों को एक साथ आ जाएं तो योगी आदित्यनाथ सरकार को लगातार दूसरा कार्यकाल नहीं मिलेगा। लेकिन क्या पश्चिम बंगाल में जो हुआ वह यूपी में भी वास्तव में होता दिख रहा है? जवाब है नहीं।
यूपी
में
पश्चिम
बंगाल
फॉर्मला
क्यों
नहीं
चलेगा
जानिए
बंगाल
में
शुरू
से
ही
मुख्य
मुकाबला
टीएमसी
और
भाजपा
के
बीच
था।
वहां
की
जनता
वामदलों
और
कांग्रेस
को
पहले
ही
नकार
चुकी
है।
लेकिन
उत्तर
प्रदेश
में
भाजपा
के
अलावा
सपा,
बसपा
और
कांग्रेस
जैसी
तीन
बड़ी
पार्टियां
हैं।
जहां
सपा
और
बसपा
का
अपना
बड़ा
वोट
बैंक
है,
वहीं
यूपी
में
कांग्रेस
की
हालत
पश्चिम
बंगाल
से
तो
बेहतर
ही
है।
गैर-भाजपाई
वोटों
को
एक
छतरी
के
नीचे
लाना
पड़ेगा
ऐसे
में
गैर-भाजपाई
एक
छतरी
के
नीचे
आते
दिखाई
नहीं
दे
रहे।
हां
अगर
सपा-बसपा
और
कांग्रेस
इकट्ठे
होकर
बीजेपी
के
खिलाफ
चुनाव
लड़ें
तो
मुश्किलें
जरूर
खड़ी
हो
सकती
हैं।
लेकिन
अपने-अपने
राजनीतिक
कारणों
से
उत्तर
प्रदेश
में
सपा-बसपा
और
कांग्रेस
का
एक
साथ
आना
संभव
नहीं
दिखता।
इस
कारण
वोटों
का
ध्रुवीकरण
होना
भी
संभव
नहीं
होगा।
बंगाल
में
मुस्लिमों
की
पसंद
ममता
थीं,
यूपी
में
कौन?
बंगाल
में
मुस्लिम
मतदाताओं
की
पहली
और
आखिरी
पसंद
ममता
बनर्जी
थीं।
लेकिन
उत्तर
प्रदेश
में
यह
आसान
नहीं
होगा।
राज्य
में
लगभग
19।3
फीसदी
आबादी
वाले
मुस्लिम
मतदाताओं
के
लिए
किसी
एक
राजनीतिक
दल
को
वोट
देने
की
स्थिति
में
न
होने
से
इसका
लाभ
भाजपा
को
मिल
सकता
है।
अभी
ओवैसी
की
एंट्री
होनी
बाकी
है।
पूरी
उम्मीद
है
कि
ओवैसी
की
पार्टी
एआईएमआईएम
यूपी
विधानसभा
चुनाव
में
उतरेगी।
सपा-बसपा-कांग्रेस
का
एक
साथ
आना
संभव
नहीं
लोकसभा
चुनाव
2019
में
सपा
और
बसपा
जरूर
साथ
आए
थे।
रालोद
भी
इस
महा
गठबंधन
का
हिस्सा
था।
लेकिन
चुनाव
परिणाम
बताते
हैं
कि
जनता
को
ही
यह
गठजोड़
पसंद
नहीं
आया।
इसके
कुछ
दिनों
बाद
ही
मायावती
ने
गठबंधन
तोड़ने
का
फैसला
किया।
उपचुनाव
में
सपा
और
बसपा
अलग
अलग
लड़े।
रालोद
जरूर
सपा
के
साथ
गठंधन
में
रहा
लेकिन
नतीजे
उत्साहजनक
नहीं
रहे।
अखिलेश
गठबंधन
के
लिए
साफ
मना
कर
चुके
हैं
समाजवादी
पार्टी
के
राष्ट्रीय
अध्यक्ष
अखिलेश
यादव
पहले
ही
साफ
कर
चुके
हैं
कि
उनकी
पार्टी
यूपी
में
किसी
बड़ी
पार्टी
के
साथ
गठबंधन
नहीं
करेगी।
छोटी
पार्टियों
को
साथ
लेकर
अपने
बूते
चुनावी
मैदान
में
उतरेगी।
इस
निर्णय
के
पीछे
साल
2017
विधानसभा
चुनाव
के
नतीजे
भी
हैं।
सपा
और
कांग्रेस
ने
गठबंधन
में
चुनाव
लड़ा।
अखिलेश
और
राहुल
का
साथ
यूपी
को
पसंद
नहीं
आया
और
भाजपा
ने
प्रचंड
बहुमत
के
साथ
सरकार
बनाई।
यूपी
में
मुस्लिम
वोट
बैंक
और
तीन
बड़ी
पार्टियां
माना
जाता
है
कि
मुस्लिम
मतदाता
यदि
किसी
एक
दल
की
ओर
घूम
जाएं
तो
उस
पार्टी
के
लिए
यह
वोट
बैंक
एक
बड़ी
लीड
साबित
हो
जाती
है।
यही
कारण
है
कि
सभी
दल
इन्हें
अपने
साथ
जोड़ने
की
कोशिश
करते
हैं।
उत्तर
प्रदेश
में
मुस्लिम
वोट
बैंक
संपूर्ण
रूप
से
किसी
एक
पार्टी
की
ओर
नहीं
झुका
है।
इस
वोट
बैंक
का
बड़ा
हिस्सा
सपा
के
साथ
होता
है,
वहीं
बसपा
और
कांग्रेस
को
भी
मुस्लिमों
को
वोट
मिलता
है।
मुख्यमंत्री
योगी
मैराथन
दौरा
करने
में
लगे
हुए
हैं
आवैसी
चुनाव
लड़े
तो
यूपी
के
मुस्लिमों
के
पास
एक
दूसरा
विकल्प
भी
उपलब्ध
होगा।
योगी
आदित्यनाथ
कोरोना
की
पहली
वेव
में
अपने
काम
को
लेकर
काफी
लोकप्रिय
हुए
थे।
लेकिन
दूसरी
वेव
में
स्थितियां
जरूर
बेकाबू
हुईं,
लेकिन
जल्द
ही
वह
इसे
संभालने
में
कामयाब
रहे।
वह
खुद
भी
कोरोना
संक्रमित
हुए।
लेकिन
ठीक
होने
के
तुरंत
बाद
वह
ग्राउंड
पर
उतर
गए
और
करीब
25
दिनों
में
लगभग
यूपी
के
अधिकतर
जिलों
का
दौरा
कर
चुके
हैं।
भाजपा
अभी
से
सक्रिय
है,
सपा
और
बसपा
नदारद
अन्य
दलों
की
अपेक्षा
बीजेपी
यूपी
विधानसभा
चुनाव
लेकर
काफी
सक्रिय
हो
गई
है।
जल्द
ही
योगी
कैबिनेट
और
यूपी
भाजपा
संगठन
में
भी
बदलाव
देखने
को
मिल
सकता
है।
कोरोना
की
दूसरी
वेव
में
जो
डेंट
पहुंचा
है
उसका
डैमेज
कंट्रोल
करने
के
लिए
शीर्ष
नेतृत्व
व
संघ
एक्टिव
हो
गए
हैं।
दूसरी
ओर
सपा
और
बसपा
जमीन
पर
नहीं
दिख
रहे।
उनसे
ज्यादा
एक्टिव
कांग्रेस
दिखती
है।
ऐसे
में
विपक्षी
दलों
के
लिए
2022
की
चुनौती
इतनी
आसान
दिखती
नहीं।
मुस्लिमों
के
साथ
हिंदू
वोटों
का
भी
ध्रुवीकरण
होता
है
वर्ष
2011
की
जनगणना
के
अनुसार
उत्तर
प्रदेश
में
हिदुओं
की
जनसंख्या
79।73
फीसदी
और
मुस्लिमों
की
जनसंख्या
19।3
फीसदी
थी।
मुस्लिम
शहरों
से
लेकर
ग्रामीण
इलाकों
तक
सभी
जगह
कम-अधिक
संख्या
में
रहते
हैं,
लेकिन
कुछ
जिले
ऐसे
हैं
जहां
इनकी
आबादी
काफी
अधिक
है
और
मतदाता
की
जीत
या
हार
का
निर्णय
करते
हैं।
पश्चिमी यूपी के जिलों में यह एक फैक्टर होता है, लेकिन यहां हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण भी होता है। यदि कोई एक विपक्षी पार्टी हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण रोकने और मुस्लिम वोट बैंक साधने में सफल रही तब बीजेपी के लिए मुश्किल होगी। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा।
यूपी के विभिन्न जिलों में मुस्लिमों की आबादी
मुरादाबाद
में
50।80
फीसदी
रामपुर
में
50।57
फीसदी
सहारनपुर
में
41।97
फीसदी
मुजफ्फरनगर
में
41।11
फीसदी
शामली
में
41।73
फीसदी
अमरोहा
में
40।78
फीसदी
बागपत
में
27।98
फीसदी
हापुड़
में
32।39
फीसदी
मेरठ
में
34।43
फीसदी
संभल
में
32।88
फीसदी
बहराइच
में
33।53
फीसदी
बलरामपुर
में
37।51
फीसदी
बरेली
में
34।54
फीसदी
बिजनौर
में
43।04
फीसदी
अलीगढ़
में
19।85
फीसदी
अमेठी
में
20।06
फीसदी
गोंडा
में
19।76
फीसदी
लखीमपुर
खीरी
में
20।08
लखनऊ
में
21।46
फीसदी
मऊ
में
19।46
फीसदी
महाराजगंज
में
17।46
फीसदी
पीलीभीत
24।11
फीसदी
संत
कबीर
नगर
में
23।58
फीसदी
श्रावस्ती
में
30।79
फीसदी
सिद्धार्थनगर
में
29।23
फीसदी
सीतापुर
में
19।93
फीसदी
वाराणसी
में
14।88
फीसदी
अन्य
जिलों
में
यह
आबादी
10
से
15
फीसदी
के
बीच
है।