प्रशासन की अनदेखी से यूपी में भूजल का दुरुपयोग, अंधाधुंध दोहन के मामले में बड़े शहरों में टॉप पर लखनऊ
लखनऊ। प्रशासन की अनदेखी से भूगर्भ जल भंडारों के अंधाधुंध दोहन ने लखनऊ को प्रदेश में भूजल के दुरुपयोग में टॉप पर पहुंचा दिया है। तीन दशक पूर्व शहर में जहां भूजल आठ मीटर की गहराई पर मिलता था, वह आज नगर के 50 फीसद से अधिक के हिस्से में 25-30 मीटर से अधिक की गहराई पर चला गया है, जिसे भूविज्ञानी बड़ा खतरा मान रहे हैं।
कानपुर, आगरा, गाजियाबाद, नोयडा, मेरठ शहरों के भी एक बड़े हिस्से में भूजल स्तर की गहराई 25 मीटर की अलार्मिंग सीमा को पार कर चुकी है। आलम यह है कि भूजल दोहन पर प्रभावी अंकुश न होने से लोग अब 100 मीटर से अधिक की गहराई पर भविष्य की जलनिधि के रूप में प्रकृति द्वारा संचित भूजल भंडारों से बेहिसाब पानी निकाल रहे हैं। इस दोहन में अब जलकल विभाग की पेयजल आपूर्ति योजनाएं भी पीछे नहीं है। लखनऊ में शहरी जलापूर्ति के लिए 680 नलकूपों से रोजाना 39 करोड़ लीटर पानी निकाला जा रहा है, जिसके चलते राजधानी भूजल दोहन के मामले में बाकी शहरों के मुकाबले सबसे ऊपर है।
शहर में भूजल दोहन की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट दर्शाती है कि शहरी जलापूर्ति के अलावा निजी कॉलोनियों, बहुमंजिला इमारतों, निजी प्रतिष्ठानों, सरकारी कार्यालय परिसरों व घर-घर में लगी सबमर्सिबल बोरिंगों के जरिए गहरे स्ट्रेटा से बेहिसाब ढंग से 100 करोड़ लीटर से अधिक भूजल रोजाना निकाला जा रहा है, जो शहर में पेयजल आपूर्ति के लिए जलकल विभाग द्वारा निकाले जा रहे भूजल दोहन का लगभग तीन गुना है। यह स्थिति तब है जबकि लखनऊ सहित 26 शहरों को प्रदेश में भूजल एक्ट के अंतर्गत अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है, परंतु इस प्रकार के दोहन को रोकने के लिए ना तो कोई नीति है ना ही कोई नियम। प्रदेश में छोटे-बड़े 653 शहर हैं, जिसमें से 622 में पेयजल आपूर्ति पूरी तरह भूजल स्रोतों पर निर्भर हैं। इन शहरों में रोजाना कुल 600 करोड़ लीटर से ज्यादा भूजल अकेले शहरी पेयजल आपूर्ति के मकसद से निकाला जा रहा है।
उपलब्ध नहीं है भूजल दोहन की असल जानकारी: शहरी क्षेत्रों में विभिन्न सेक्टरों में हो रहे अंधाधुंध भूजल दोहन की सही जानकारी किसी भी महकमे के पास नहीं है। केंद्रीय भूजल बोर्ड ने 10 प्रमुख शहरों में भूजल उपलब्धता की जो रिपोर्ट 2019 में जारी की है, उसमें लखनऊ सहित अलीगढ़, कानपुर, बरेली गाजियाबाद, मेरठ, मुरादाबाद, प्रयागराज व वाराणसी को अतिदोहित शहर घोषित किया है, जबकि आगरा को क्रिटिकल क्षेत्र में घोषित किया गया है। किंतु इस रिपोर्ट में भी चौतरफा हो रहे दोहन की वास्तविक तस्वीर नहीं रखी गई है, क्योंकि भूजल दोहन का आधार केवल शहरी आबादी को लिया गया है।
भूपर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव: भूजल विशेषज्ञ बीबी त्रिवेदी का कहना है कि लगातार भूजल दोहन से भूगर्भ में मौजूद बालू, चिकनी मिट्टी, सिल्ट की विभिन्न अदृश्य तहों में धीरे-धीरे जो बदलाव आ रहे है, वह भूपर्यावरण के लिहाज से लखनऊ सहित प्रमुख शहरों के लिए बेहद चिंताजनक व संवेदनशील स्थिति है। भविष्य में इन शहरों में जमीन फटने जैसी गंभीर पर्यावरण घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। शहरों में कंक्रीट के कारण निरंतर बढ़ रहे दोहन से ऊपरी स्ट्रेटा पूरी तरह से सूख गया है। वहीं, गहरे स्ट्रेटा से भूजल का वह हिस्सा खाली किया जा रहा है, जो हजारों साल पहले हिमालय से रिचार्ज होकर गंगा बेसिन के भूजल भंडारों में संचित है। हकीकत यह है कि लगातार दोहन से खाली हो रहे इन भूजल भंडारों की भरपाई नामुमकिन है। भूपर्यावरण के नजरिए से यह खतरे की घंटी है। भूजल विशेषज्ञ एक दशक पूर्व ही सरकार को आगाह कर चुके हैं, किंतु यह विडंबना है कि नीति निर्धारकों और जिम्मेदार विभागों ने इन अध्ययन निष्कर्षों पर अभी तक गौर नहीं किया है।
यूपी में नलकूपों से रोजाना हो रहा दोहन
लखनऊ
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39.00
अलीगढ़
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12.5
बरेली
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13.0
गाजियाबाद----
18.5
मेरठ
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26.0
कानपुर
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17.0
प्रयागराज
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20.8
वाराणसी
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13.5
मुरादाबाद
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16.5
(भूजल
दोहन
के
आकड़े--करोड़
लीटर
प्रतिदिन)
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