UP: राजनीतिक विरोधियों पर भारी पड़ रहे हैं CM योगी आदित्यनाथ, मंत्रिमंडल विस्तार पर भी संशय!
लखनऊ, जून 03: भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियों का दरवाजा खोल दिया है, लेकिन पार्टी के एक धड़े को निराशा हाथ लगती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर अपना दमखम दिखाया है और माना जा रहा है कि इसके चलते राज्य सरकार के मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावना धूमिल नजर आ रही है। मुख्यमंत्री योगी के कामकाज के तरीके पर सवाल उठाने वाले भाजपा के कुछ विधायक, राज्य सरकार के मंत्री और नेता स्थिति देखकर फिर 'ऑफ द रिकार्ड' की शैली में आ गए हैं। वहीं केन्द्र सरकार से जनवरी महीने में इस्तीफा देकर गए विधान परिषद सदस्य अरविंद कुमार शर्मा को बड़ी कुर्सी मिलने पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं।
बताते हैं मख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अरविंद कुमार शर्मा मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनाने के लायक भी नहीं नजर आ रहे हैं। मौजूदा दोनों उप मुख्यमंत्रियों (दिनेश शर्मा, केशव प्रसाद मौर्य) से फिलहाल योगी को एतराज नहीं है और वह उनकी भूमिका में भी बदलाव के पक्ष में नहीं हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में योगी के तमाम शुभ चिंतक मौजूद हैं। उन्हें भी लग रहा है कि पिछले दो सप्ताह में जो कुछ हुआ, उसका तरीका थोड़ा अलग होना चाहिए था। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के लखनऊ प्रवास, पार्टी-संगठन पर चर्चा तथा प्रधानमंत्री, केन्द्रीय गृहमंत्री, भाजपा के संगठन मंत्री, उत्तर प्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल के साथ मंत्रणा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के मुख्यमंत्री को विश्वास में लेना चाहिए था। इससे एक गलत संदेश गया है।
विरोधियों को फिर भी है थोड़ी उम्मीद
उत्तर प्रदेश में भाजपा में एक खेमा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कामकाज के तरीके से काफी नाराज है। इसका कहना है कि राज्य में नौकरशाही का बोलबाला है। भाजपा कार्यकर्ताओं और संगठन के लोगों की अनदेखी हो रही है। कार्यकर्ताओं में भी एक वर्ग है, जो मंत्रियों विधायकों के व्यवहार से तंग है। मंत्रियों में भी एक वर्ग है, जिसे लग रहा है कामकाज और कोरोना के कुप्रबंधन के चलते 2022 का विधानसभा चुनाव बड़ी चुनौती बन सकता है। इस खेमे के मंत्रियों को अभी भी प्रदेश में सुधार की दिशा में बड़ा प्रयास होने की उम्मीद है। मध्य उत्तर प्रदेश से आने वाले एक मंत्री ने बताया कि संगठन मंत्री बीएल संतोष ने कई मंत्रियों और नेताओं को बुलाकर उनसे अकेले में मंत्रणा की है। इसलिए इस कवायद को हल्के में नहीं लेना चाहिए। वहीं मुख्यमंत्री के कामकाज की तारीफ करने वाले वर्ग के चेहरे पर फिर मुस्कान लौट आई है। हालांकि यह वर्ग पहले से मानकर चल रहा था कि ढोल चाहे जितना जोर से बजाया जाए, लेकिन कुछ होने वाला नहीं है।
बीएल संतोष का ट्वीट
भाजपा के संगठन मंत्री बीएल संतोष ने उत्तर प्रदेश सरकार के कोरोना से निपटने को लेकर उसकी पीठ थपथपाई है। इस ट्वीट के तमाम माने निकाले जा रहे हैं। एक अर्थ यह भी है कि प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से पहले कोई भी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ किसी मुहिम को न चलाए। गलत मंशा न पाले। विरोधियों के अनुसार कुछ इसके उलट भी हो सकता है। इसलिए समय का इंतजार करना चाहिए। खैर, बीएल संतोष ने अपने ट्वीट में कहा कि है कि पांच सप्ताह के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार को कोरोना संक्रमण के मामले 93 फीसदी तक कम करने में सफलता मिली। इसे याद रखना चाहिए कि उत्तर प्रदेश की आबादी 20 करोड़ से अधिक है। इसके सामानांतर डेढ़ करोड़ जनसंख्या और एक नगर निगम वाले राज्य के मुख्यमंत्री (अरविंद केजरीवाल) अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर पाए। इस तरह से देखें तो योगी ने अपनी जिम्मेदारी प्रभावी तरीके से निभाई। बीएल संतोष के इस ट्वीट को लोगों की नाराजगी को संतुलित करने, केन्द्र और राज्य के बीच में अच्छा वातावरण बनाने तथा पार्टी और कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित होने से बचाने के तौर पर देखा जा रहा है।
क्या मुख्यमंत्री किसी की नहीं सुनते?
ऐसा कदापि नहीं है। लेकिन योगी के बारे में आम है कि वह अपना पक्ष भी मजबूती से रखते हैं। मसलन केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा प्रदेश में दो उपमुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद योगी कुछ दिनों तक असहज थे। इसकी एक बड़ी वजह उनके हर दौरे में दोनों उप मुख्यमंत्रियों का दौरा तय होना भी था। योगी आदित्यनाथ ने इसे लेकर अपनी नाराजगी जताई और सफल हुए। इसी तरह से योगी आदित्यनाथ ने केन्द्रीय नेतृत्व से लेकर पार्टी संगठन और मंत्रिमंडल तक अपने कामकाजी व्यवहार से साफ किया कि वह रबर स्टांप मुख्यमंत्री नहीं हैं। वह मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी निभाने आए हैं और इसे पूरी मेहनत, ईमानदारी से निभाएंगे।
मुख्यमंत्री के करीबी बताते हैं कि उन्हें केन्द्र द्वारा मुख्यमंत्री बनाने का अहसास कराना अखरता है। दरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पद को पाने के पहले पार्टी के कोई पदाधिकारी नहीं थे। उनके पास कोई बड़ा पद, अनुभव भी नहीं था। जबकि केशव प्रसाद मौर्य के पास उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष का प्रभार था। लेकिन वह उपमुख्यमंत्री बने और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने में संघ का बड़ा योगदान रहा। इसलिए योगी के समर्थक यह अहसास कराने से नहीं चूकते कि प्रधानमंत्री मोदी के बाद पार्टी में कोई चेहरा केवल मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ही हैं, इनका विकल्प नहीं है।
योगी के व्यक्तित्व को भी समझना होगा
गोरक्षा पीठाधीश्वर स्व. महंत अवैद्यनाथ के शिष्य योगी आदित्यनाथ आरंभ से ही अपने धुन के पक्के हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनके इस व्यक्तित्व में कोई बदलाव नहीं आया। मुख्यमंत्री स्वाभिमानी भी हैं। इसे एक उदाहरण से समझना चाहिए। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले लखनऊ के संक्षिप्त प्रवास पर थे। लेकिन लखनऊ आने के पहले वह केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत अन्य के साथ बैठक कर चुके थे। कहीं न कहीं यह बात योगी को खटकी। बताते हैं योगी आदित्यनाथ ने भी अपनी तरफ से दत्तात्रेय होसबोले से मिलने की कोई पहल नहीं की। वह लखनऊ से मिर्जापुर के दौरे पर चले गए। मिर्जापुर से गोरखपुर और अपने तय कार्यक्रम के अनुसार व्यस्त हो गए। सूत्र बताते हैं कि दत्तात्रेय होसबोले ने मुख्यमंत्री की व्यस्तता देखकर एक दिन और प्रवास किया। इसके बाद भी कोई संकेत न मिलने पर वह लौट आए।
क्या कोरोना कुप्रबंधन के लिए योगी सरकार ही दोषी है?
उत्तर प्रदेश के एक मंत्री कहते हैं कि जिस तरह से तमाम नगरों में कोरोना संक्रमण बढ़ने पर हाहाकार देखा गया, उसे क्या कहा जाए? वह साफ कहते हैं कि अगर कुछ न किया गया तो क्षेत्र में जाने पर जनता की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। लेकिन इसके सामानांतर टीम योगी का तर्क दूसरा है। उसका कहना है कि उत्तर प्रदेश में कोई सुविधा और संसाधन रातों-रात नहीं खड़ा किया जा सकता। जब निष्पक्ष आकलन किया जाएगा तो सबको दिखाई पड़ेगा कि अप्रैल के तीसरे सप्ताह से योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बहुत प्रभावी तरीके से कदम उठाया है। दबी जुबान से यह टीम केन्द्र पर दोष मढ़ने में पीछे नहीं रहती। इसका कहना है कि केन्द्र को भी अंदाजा नहीं था कि कोरोना की दूसरी लहर कितनी घातक होगी? कोई चेतावनी या सलाह भी तो जारी नहीं हुई थी। जो जारी होती है, उसका पालन करने में उत्तर प्रदेश नंबर एक पर रहता है।