
Change in Congress: खड़गे के स्वागत में क्यों हो गयी कांग्रेस वर्किग कमेटी (CWC) की विदाई?
Change in Congress: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय में आज से लगभग दो महीने पहले 29 अगस्त 2022 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की मीटिंग हुई थी। इस बैठक में इसके कुछ सदस्य आये, जो नहीं आये वो ऑन लाइन जुड़े।
कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की ये बैठक कांग्रेस के नये अध्यक्ष के चुनाव के लिए थी। इसी बैठक में नये अध्यक्ष के चुनाव की तिथि और चुनाव कार्यक्रम निर्धारित किया गया।

सीडब्लूसी ने जैसा कार्यक्रम तय किया था, ठीक उसी कार्यक्रम के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हुआ। 19 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे को विजयी उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। जैसा कि स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस की परंपरा बन गयी थी कि वर्किंग कमेटी का अध्यक्ष भी कांग्रेस का अध्यक्ष ही होता था। इसी परंपरा के तहत कांग्रेस की सर्वोच्च निर्णायक समिति के अध्यक्ष के तौर पर मल्लिरार्जुन खड़गे को नियुक्त भी कर दिया गया।
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लेकिन 26 अक्टूबर को जैसे ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने विधिवत कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया, उन्होंने पहला निर्णय कांग्रेस वर्किंग कमेटी को ही खत्म करने का लिया। इस तरह कांग्रेस की सबसे ताकतवर कमेटी की जिस 29 अगस्त वाली बैठक में नये अध्यक्ष के चुनाव की रूपरेखा बनी थी, उसी अध्यक्ष ने उस ताकतवर कमेटी को खत्म कर दिया। 29 अगस्त की वह बैठक कांग्रेस कार्यसमिति की आखिरी बैठक साबित हुई।
मल्लिरार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में यह पहला ऐसा निर्णय था जिसने कांग्रेस में नये युग के आगाज का संकेत कर दिया है। 1920 से चली आ रही कांग्रेस वर्किंग कमेटी 26 अक्टूबर 2022 तक कांग्रेस की सबसे ताकतवर निर्णायक कमेटी मानी जाती थी। लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने लंबे अनुभव से जो पहला निर्णय लिया, वह कांग्रेस के इतिहास का अनोखा निर्णय साबित हुआ।
ऐसा कहा जाता है कि कांग्रेस की जान नेहरु वंश में बसती है तो नेहरु वंश की जान कांग्रेस वर्किंग कमेटी में बसती थी। नेहरु वंश से चुने जानेवाले कांग्रेस अध्यक्षों को अगर हम तोता कहें तो यह वर्किंग कमेटी उस तोते का पिंजरा था। तोते के बिना पिंजरे का और पिंजरे के बिना तोते का कोई महत्व नहीं रह जाता, वैसा ही संबंध नेहरु परिवार से होने वाले अध्यक्ष और सीडब्लूसी का रहा है। दोनों एक दूसरे के पूरक हो गये थे।
नेहरुवंश की किचन कैबिनेट हो गया था CWC
इस कमेटी की शुरुआत भले ही 1920 में कांग्रेस में लोकतांत्रिक तरीकों से निर्णय लेने के लिए की गई हो लेकिन आजादी के बाद जिस तरह से कांग्रेस पार्टी पर नेहरु वंश का एकाधिकार हो गया, उससे यह कमेटी नेहरु वंश की किचन कैबिनेट जैसी हो गयी थी। इसके सदस्य कहने के लिए कांग्रेस के कद्दावर नेता होते थे लेकिन इसी कमेटी के जरिए नेहरु वंश के वफादारों ने कांग्रेस पार्टी में लोकतंत्र को एक से एक करारी चोट देने काम किया है।
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इसका कारण है इस कमेटी की संरचना। 1920 के नागपुर अधिवेशन में जब कांग्रेस वर्किंग कमेटी का गठन हुआ था तब इसके 15 सदस्य नियुक्त किये गये थे। लेकिन समय समय पर इसके सदस्य घटते बढते रहे। कांग्रेस पार्टी के संविधान के अनुसार वर्तमान में इस कमेटी में अध्यक्ष और पार्टी लीडर के अतिरिक्त कुल 23 सदस्य हो सकते हैं। इन 23 सदस्यों में 12 का चुनाव होगा जबकि 10 को पार्टी अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाना है। स्वाभाविक है इस व्यवस्था के कारण ही यह नेहरु वंश की किचन कैबिनेट बन गयी क्योंकि अध्यक्ष तो इसी वंश से होना था। अब वह अपने विश्वस्त नेताओं को ही इस समिति में रखता था।
हालांकि कांग्रेस वर्किंग कमेटी में स्थाई आमंत्रित सदस्य और विशेष आमंत्रित सदस्य की भी जगह बनायी गयी लेकिन इसका स्वरूप नेहरु वंश से होनेवाले अध्यक्ष के किचन कैबिनेट जैसा ही था। बंगाल में ममता बनर्जी को कांग्रेस अध्यक्ष बनने से रोकना हो या फिर आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की जगह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रोसैया को बिठाना हो, इन राज्यों से कांग्रेस को खत्म करनेवाले निर्णय लेने का श्रेय इसी वर्किंग कमेटी वाली किचन कैबिनेट को ही जाता है।
कांग्रेस का आलाकमान
आमतौर पर कांग्रेस की राजनीतिक शब्दावली में आलाकमान या हाईकमान शब्दों का खूब प्रयोग किया जाता है। लोगों को भी लगता है कि आलाकमान या हाईकमान से आशय दस जनपथ पर रहनेवाले सोनिया परिवार से है। लेकिन ऐसा नहीं है। आलाकमान या हाईकमान का असली दर्जा इसी किचन कैबिनेट वाली वर्किंग कमेटी के पास था। कांग्रेस की सर्वोच्च निर्णायक ईकाई सीडब्लूसी ही होती थी और जब तक इसके अध्यक्ष पद पर नेहरु परिवार का स्थाई अधिकार नहीं हो गया, इसका अध्यक्ष कांग्रेस अध्यक्ष से अधिक सक्रिय रहता था। इसलिए कांग्रेस की भाषा में सीडब्लूसी को ही हाईकमान या आला कमान कहा जाता था।
कांग्रेस की राजनीति को लंबे समय से जाननेवाले खड़गे इस बात को समझते थे इसलिए उन्होंने पहला निर्णय नेहरु वंश के चाटुकारों की किचन कैबिनेट बन चुकी इस वर्किंग कमेटी को भंग करने का ही किया। इसकी जगह उन्होंने 47 सदस्यों वाली स्टियरिंग कमेटी (संचालन समिति) का गठन किया है जिसमें वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य मौजूद हैं। अब कांग्रेस की कमान इसी 47 सदस्यों वाली समिति के पास रहेगी। इस संचालन समिति में सोनिया, राहुल और प्रियंका तीनों हैं। हां, शशि थरूर को जरूर जगह नहीं दी गयी है जिन्होंने खड़गे के खिलाफ अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था।
हालांकि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी को स्थाई रूप से खत्म कर दिया गया है या फिर संचालन समिति को एक खास समय के लिए गठित किया गया है। कांग्रेस की ओर से जारी बयान में इतना ही कहा गया है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की जगह अब यही संचालन समिति कार्य करेगी। कब तक करेगी, इसे लेकर कुछ स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है। फिर भी समय समय पर बागी नेताओं की आलोचना का कारण बनने वाली वर्किंग कमेटी को भंग करने से नेताओं में एक संदेश तो गया ही है कि कांग्रेस में अब किचन कैबिनेट का जमाना लद गया है। तब तक, जब तक फिर से नेहरु वंश का कोई वारिस कांग्रेस की कमान नहीं संभाल लेता।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)