
अभिव्यक्ति की आजादी के दोहरे मापदंड क्यों?
नई दिल्ली: भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मापदंड विचित्र हैं। एक तरफ सबा नकवी, मोहम्मद जुबैर या फिर प्रशांत कनौजिया करोड़ों लोगों के धर्म और आस्था पर चोट करके अभिव्यक्ति की आजादी के हीरो बन जाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ केतकी चिताले एक राजनीतिक व्यक्ति पर गैर राजनीतिक टिप्पणी करने के बाद जेल भेज दी जाती हैं। एक ही देश में अभिव्यक्ति की आजादी के ये दोहरे मापदंड क्यों स्थापित हो गये हैं?

जो विचारधारा भारतीय जनता पार्टी से राजनीतिक संघर्ष करना चाहती है, वह भाजपा सरकार पर सीधे आक्रमण न करके हिन्दू धर्म की आस्था पर आक्रमण करती है और उसे ही अपनी क्रान्ति बताती है। ऐसी क्रांति करनेवालों की मीडिया और सोशल मीडिया में एक लम्बी ब्रिगेड है। इनके लिए संभवत: भाजपा और भारत एक ही है। इनके लिए भाजपा और हिन्दू धर्म एक ही हैं। इसलिए ये लोग हमला तो भाजपा पर करते हैं लेकिन निशाने पर भारत और हिन्दुओं को रखते हैं। सवाल यह है कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं?
ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग पाए जाने की खबर आते ही एकदम महादेव के प्रति अपमानजक ट्वीट्स की झड़ी लग गयी थी और उनमें वे लोग सबसे आगे थे जो कथित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सौदागर हैं। सौदागर इसलिए क्योंकि इनके लिए केतकी चिताले, कमलेश तिवारी, नुपुर शर्मा जैसे लोग मायने नहीं रखते हैं। ये लोग कतई भी उन लोगों के खिलाफ मुंह नहीं खोलते हैं, जो इनके राजनीतिक आका होते हैं।
जैसे ही सबा नकवी के ऊपर महादेव पर अपमानजनक टिप्पणी करने के कारण एफआईआर दर्ज हुई, वैसे ही दिल्ली का आईडब्ल्यूपीसी सक्रिय हुआ और उसने कहा कि सबा नकवी उनके क्लब की सदस्य है और वह उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने का विरोध करता है। वह बात दूसरी है कि इस बार क्लब की शेष सदस्य ही ऑर्गनाइज़िन्ग बोर्ड के खिलाफ खुलकर आईं और कहा कि वे सबा के उस आपत्तिजनक ट्वीट के खिलाफ हैं।
ऐसे ही जब से आल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को हिरासत में लिया गया है, तब से उसकी कथित निष्पक्ष पत्रकारिता के कसीदे कसे जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि क्या सरकार के खिलाफ फैक्ट चेक करना अपराध है? अब प्रश्न उठता है कि क्या एफआईआर किसी फैक्ट चेक करने पर हुई है? क्या सबा नकवी पर एफआईआर भारतीय जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ किसी रिपोर्ट का विश्लेषण करने पर हुई थी?
नहीं! इन दोनों पर ही एफआईआर इनके पेशेवर काम से इतर जाकर उस नफरत पर दर्ज की गयी है, जो इन्होनें अपनी संकुचित और कट्टर मजहबी सोच के चलते प्रदर्शित की है! क्या भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने के लिए महादेव या हनुमान जी का अपमान करना एक अनिवार्य योग्यता है? जानबूझकर किए गए अपराध को क्या इस आधार पर क्षमा किया जाएगा कि आप सरकार के खिलाफ कथित फैक्ट चेक करते हैं?
ऐसा नहीं है! अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के यह सौदागर आफरीन के साथ जाकर खड़े हो जाते हैं, क्योंकि उसे संविधान, न्यायालय आदि सभी के विरुद्ध बोलने की आजादी है। उसे अपनी मुस्लिम पहचान बताने की भी खुलकर आजादी है, और उसके अब्बा को भी भड़काऊ बोलने की आजादी है। परन्तु सरकार को यह अधिकार भी इनके अनुसार नहीं है कि वह इस मजहबी कट्टरता के खिलाफ कदम उठाएं!
नुपुर शर्मा की बात भूल भी जाएं, फिर भी यह बात नहीं भूली जा सकती है कि एक मराठी अभिनेत्री केतकी चिताले को मात्र एक पोस्ट साझा करने के आधार पर चालीस दिनों तक जेल में रहना पड़ा? और वह कविता किसी व्यक्ति विशेष के विरोध में नहीं थी, वह किसी मजहब के विरोध में नहीं थी, हाँ, उसमें कथित रूप से शरद पवार पर निशाना साधा गया था, परन्तु उसमें किसी का नाम नहीं था। बस चेहरे पर टिप्पणी थी, और मात्र इस आधार पर उस अभिनेत्री पर एक नहीं, दो नहीं, बल्कि पूरी 21 एफआईआर दर्ज की गईं!
जब 15 मई को उसे हिरासत में लिया गया था, तब अभिव्यक्ति की आजादी के ये सौदागर एक भी शब्द मुंह से नहीं निकाल पाए थे। सवाल उठता है क्यों? जवाब मिलता है क्योंकि उनकी अभिव्यक्ति की सारी स्वतंत्रता सबा नकवी के अपमानजनक ट्वीट करने, या फिर मोहम्मद जुबैर के भद्दे सांप्रदायिक ट्वीट या पोस्ट की रक्षा करने तक सीमित है।
यदि कोई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बोल सकता है वह इस समय मात्र केतकी चिताले है क्योंकि उसे कल ही न्यायालय ने उन सभी 21 लम्बित एफआईआर में आतंरिक राहत प्रदान की हैं, जो उस पर महाराष्ट्र पुलिस ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार के विरुद्ध उसकी कथित पोस्ट के आधार पर दर्ज की गयी थी। उच्च न्यायालय ने पुलिस से कहा है कि वह केतकी के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएंगे!
लेकिन भारत का दुर्भाग्य देखिए कि संविधान की दुहाई देनेवाली अभिव्यक्ति की आजादी गैंग केतकी चिताले के लिए एक शब्द नहीं बोलती और केतकी चिताले को अपनी आजादी की रक्षा न्यायालय से सुनिश्चित करनी पड़ती है। लेकिन महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश एवं केरल तक के गैर भाजपाई नेता भाजपा का विरोध कर रहे हिन्दू-घृणा से भरे कथित एक्टिविस्ट या पत्रकारों की नफरती बातों के आधार पर दर्ज एफआईआर को ही अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताने लगते हैं। भारत में अभिव्यक्ति का यह दोहरा मापदंड क्यों है?
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
ये
भी
पढ़ें-
इंडिया
गेट
से:
तीस्ता
सीतलवाड़:
सेक्युलरवाद
की
आड़
में
धन
संग्रह
और
खतरनाक
साजिशें