कर्नाटक में वीर सावरकर बनाम टीपू सुल्तान
2024 के आम चुनावों में दक्षिण भारत भारतीय जनता पार्टी के लिये महत्वपूर्ण होने जा रहा है। दक्षिण के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक में वर्तमान में भाजपा की सरकार है और हिंदुत्व की यह 'प्रयोगशाला' तेलंगाना से लेकर आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में मुद्दों के आधार पर असर डालती है।
मसलन, हिजाब विवाद कर्नाटक से उठा और केरल तक इसका असर दिखा। अब कर्नाटक में मैसूर के टाइगर कहे जाने वाले टीपू सुल्तान और वीर सावरकर को लेकर दो पक्ष ही नहीं, बल्कि दो विचारधाराएं भी आपस में टकराती दिख रही हैं। 15 अगस्त को शिवमोगा में वीर सावरकर और टीपू सुल्तान की पोस्टर रैली में दो समुदायों में बीच झड़प हुई और जबीउल्ला नाम के एक मुस्लिम युवक ने पुलिसकर्मी पर चाकू से हमला कर दिया, जिसके बाद यह विवाद अब बढ़ता ही जा रहा है।
हिंदूवादी संगठनों के साथ ही बेंगलुरु महानगर गणेशोत्सव समिति ने सभी गणेश पंडालों में वीर सावरकर की तस्वीर लगाने की बात की है। बीबीएमपी चीफ कमिश्नर तुषार गिरिनाथ ने भी इस बात की पुष्टि की है कि गणेश पंडालों में सावरकर की तस्वीर लगाई जा रही है। वहीं टीपू सुल्तान को मुस्लिम समुदाय ने अपना हीरो बना लिया है। कुल मिलाकर हिन्दुओं के वीर सावरकर और मुसलमानों के टीपू सुल्तान के बीच कर्नाटक बंट गया है।
जितना
विरोधाभास
सावरकर
को
लेकर
समाज
में
है
उससे
कहीं
अधिक
टीपू
सुल्तान
को
लेकर
पिछले
दो
दशकों
में
उभरकर
आया
है।
हिंदूवादी
संगठन
टीपू
को
बड़े
पैमाने
पर
हिन्दू
धर्मान्तरण
करने,
मंदिरों
को
तोड़ने
तथा
हिन्दुओं
के
प्रति
क्रूर
शासक
के
रूप
में
प्रस्तुत
कर
रहे
हैं।
हालांकि
इतिहास
भी
इस
मामले
में
बंटा
हुआ
नजर
आता
है।
चूँकि
टीपू
ने
18वीं
शताब्दी
में
अंग्रेजों
के
विरुद्ध
युद्ध
किये
और
युद्ध
में
मारे
गए
तो
अंग्रेजों
ने
उनसे
जुड़ा
इतिहास
कमोवेश
मिटा
दिया।
हैदराबाद
के
निजाम
ने
टीपू
के
विरुद्ध
अंग्रेजों
और
मराठाओं
से
संधि
कर
युद्ध
किया
था,
यह
इतिहास
में
दर्ज
है।
कभी
'भारत
भारती'
पुस्तक
में
टीपू
सुल्तान
को
महान
शासक
बताया
गया
था
किन्तु
अब
ऐसा
प्रतीत
होता
कि
उनके
बहाने
दक्षिण
में
ध्रुवीकरण
का
प्रयास
किया
जा
रहा
है
और
इसमें
दोनों
पक्ष
शामिल
हैं।
भारतीय
संविधान
के
16वें
भाग
में
संविधान
निर्माताओं
ने
जिन
चित्रों
का
प्रयोग
किया
उनमें
भारत
के
मात्र
दो
शासकों
टीपू
सुल्तान
और
झाँसी
की
रानी
लक्ष्मीबाई
के
चित्र
हैं।
'हमारा संविधान: भाव व लेखांकन' के लेखक लक्ष्मीनारायण भाला अपनी पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 67 पर लिखते हैं, 'कुछ मंदिरों को बर्तन एवं आर्थिक दान देकर हिन्दुओं को संतुष्ट करना एवं अपनी सेना तथा राजनैतिक दांव-पेंच से अंग्रेजों की कंपनी को व्यापार न करने देना यही टीपू की रणनीति थी। स्थान-स्थान पर मुस्लिम अधिकारियों की नियुक्ति कर उन्हें यह निर्देश दिये गए थे कि सभी हिन्दुओं को इस्लामी दीक्षा दो। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि टीपू सुल्तान ने अपने राज्य में 5 लाख हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया। मालाबार को हिन्दू विहीन करने में टीपू की महती भूमिका रही है। उपरोक्त नकारात्मक क्रियाकलापों से भरा टीपू का कार्यकाल संविधान निर्माताओं की नजरों में केवल एक ही कारण से सकारात्मक बन गया कि उसने अंग्रेजों का डटकर विरोध किया था।'
हालांकि एक वर्ग ऐसा भी है जो टीपू सुल्तान को जनहितैषी शासक बताता है। माइकल सोराक के अनुसार टीपू की वर्तमान छवि ठीक वैसी ही बनाने का प्रयास हो रहा है जैसा अपने जमाने में अंग्रेज किया करते थे। चूँकि टीपू की हिन्दू विरोधी छवि से राजनीतिक गोलबंदी होती है और इसका असर दक्षिण भारत के राज्यों पर अधिक होता है अतः टीपू के बहाने वोटों के ध्रुवीकरण का प्रयास किया जा रहा है। मुस्लिम वर्ग टीपू के बहाने स्वयं को शोषित व षड्यंत्रों का शिकार मानने लगा है लिहाजा सेक्युलर राजनीतिक दल टीपू सुल्तान की जयंती मनाकर एकमुश्त वोट का जुगाड़ करते हैं।
ठीक यही हाल वीर सावरकर का है। हिंदूवादी दल टीपू के समकक्ष सावरकर को खड़ा कर हिन्दू वोटों की गोलबंदी कर रहे हैं। हाल ही में कर्नाटक की विद्यालय शिक्षा की एक पुस्तक में सावरकर को लेकर जिस प्रकार की भ्रांतियां फैलाई गईं, वे भविष्य की दृष्टि से उचित नहीं हैं। 'बुलबुल के पंखों पर बैठकर उड़ते सावरकर' ने हर पढ़े-लिखे भारतवासी को लज्जित कर दिया है। राजनीति हमारे इतिहास पुरुषों को विचारधाराओं में बाँट सकती है किन्तु इतिहास तो उन्हें उसी रूप में याद रखेगा जैसे वे थे। सावरकर वीर थे, तो थे। उनके नाम की कविता में बुलबुल का क्या काम?
2023 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हैं। भाजपा चूँकि तेलंगाना सहित अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में अपनी मजबूत पैठ बनाना चाहती है लिहाजा विकास के मॉडल के साथ राष्ट्रवाद का तड़का उसके लिये लाभदायी होगा और यही कारण है कि सावरकर से लेकर टीपू सुल्तान तक विवादों की एक लम्बी फेहरिस्त बढ़ती जा रही है। इसमें मुस्लिम समुदाय का भी बड़ा योगदान है क्योंकि शुरुआत उन्हीं की ओर से होती है और क्रिया की प्रतिक्रिया में विवाद बढ़ जाता है। ताजा उदाहरण ईदगाह मैदान में गणेश स्थापना से जुड़ा है जहाँ मुस्लिम समुदाय ने मैदान को वक्फ की जमीन बताते हुये उस पर गणेश पंडाल लगाने से इनकार कर दिया और बाद में उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से वहां गणेश पंडाल लगा।
ऐसे कृत्य इस्लाम और मुसलमान दोनों को कटघरे में रखते हैं। यदि मुस्लिम समुदाय ईदगाह मैदान में गणेश पंडाल लगाने देता तो इससे समाज में सकारात्मक सन्देश जाता और राजनीतिक दल धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं कर पाते किन्तु अब ध्रुवीकरण हो चुका है। हिजाब, टीपू सुल्तान, सावरकर, ईदगाह मैदान के बाद कर्नाटक में कौन सा नया विवाद खड़ा होता है यह राजनीतिक दलों के गुणा- भाग पर निर्भर करेगा। फिलहाल तो कर्नाटक पर सभी की नजरें हैं क्योंकि यही वह राज्य है जिसने इंदिरा गाँधी के समय में कांग्रेस को तब संजीवनी दी जब आपातकाल के बाद कांग्रेस का नामलेवा नहीं बचा था। यही कर्नाटक अब भी कांग्रेस को संजीवनी दे सकता है, बशर्ते वह तुष्टिकरण के बजाय समभाव रखे और जनता के बीच उतरे।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)