Indians in US Congress: अमेरिका में बढ़ता भारतवंशियों का दबदबा
Indians in US Congress: अमेरिका के मध्यावधि चुनावी नतीजों में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिख रहा। रिपब्लिकन पार्टी के सामान्य प्रदर्शन ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को झटका दिया है, वहीं डेमोक्रेटिक उम्मीदवार अपने दम पर चुनाव जीते हैं। राष्ट्रपति जो बाइडेन के नाम से चमत्कार की उम्मीद लगाए कई उम्मीदवार चुनाव हार गए हैं।
दरअसल, यह चुनाव राष्ट्रपति जो बाइडेन और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। इसके परिणाम 2024 के राष्ट्रपति चुनाव को सीधे तौर पर प्रभावित करेंगे क्योंकि अमेरिका में लोगों के वोटों के आधार पर राष्ट्रपति की उम्मीदवारी तय की जाती है और फिर राष्ट्रपति चुना जाता है। फिलहाल जो बाइडेन की अमेरिकियों में लोकप्रियता माइनस 68 प्रतिशत है जबकि रिपब्लिकन पार्टी के 52 प्रतिशत से अधिक मतदाता ट्रम्प को बतौर नेता नहीं देखना चाहते।
इस परिस्थिति में अमेरिका में भारतवंशियों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। वे राजनीतिक रूप से अधिक मजबूत हुए हैं। लगभग 10 भारतवंशी उम्मीदवार अभी तक मध्यावधि चुनाव जीत चुके हैं और इनकी संख्या बढ़ सकती है।
अमेरिकियों की राजनीतिक आवाज बनते भारतवंशी
वैश्विक राजनीति में भारतवंशी जमकर अपनी छाप छोड़ रहे हैं। ब्रिटेन में भारतीय मूल के ऋषि सुनक प्रधानमंत्री बन चुके हैं। अमेरिका में पहले ही कमला हैरिस उपराष्ट्रपति चुनी जा चुकी हैं। अब भारतवंशी अरुणा मिलर मैरीलैंड में लैफ्टिनेंट गवर्नर का पद संभालने वालीं पहली भारतीय-अमरीकी राजनेता बन गई हैं। वहीं सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के चार भारतीय-अमेरिकी नेता अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के लिए निर्वाचित हुए और कई अन्य ने देशभर में मध्यावधि चुनाव में प्रांतीय विधानमंडलों के लिए जीत हासिल की।
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के लिए निर्वाचित भारतीय मूल के नेताओं में राजा कृष्णमूर्ति, रो खन्ना और प्रमिला जयपाल शामिल हैं। भारतीय-अमेरिकी उद्यमी से नेता बने डेमोक्रेटिक पार्टी के श्री थानेदार मिशिगन से कांग्रेस (संसद) का चुनाव जीतने वाले पहले भारतीय-अमेरिकी बने।
इलिनॉइस के आठवें कांग्रेस जिला में 49 वर्षीय राजा कृष्णमूर्ति लगातार चौथे कार्यकाल के लिए निर्वाचित हुए। सिलिकॉन वैली में भारतीय-अमेरिकी रो खन्ना ने कैलिफोर्निया के 17वें कांग्रेस जिला में रिपब्लिकन पार्टी उम्मीदवार रितेश टंडन को हराया। प्रतिनिधि सभा में एकमात्र भारतीय-अमेरिकी महिला सांसद, चेन्नई में जन्मी प्रमिला जयपाल ने वाशिंगटन प्रांत के 7वें कांग्रेस जिले में अपने प्रतिद्वंद्वी क्लिफ मून को हराया।
भारतीय-अमेरिकी नेताओं में सबसे वरिष्ठ अमी बेरा कैलिफोर्निया के 7वें कांग्रेस जिला से प्रतिनिधि सभा में छठे कार्यकाल के लिए चुने गए हैं। भारतीय-अमेरिकी उम्मीदवारों ने प्रांतीय विधानमंडलों में भी सीटों पर कब्जा जमाया है अर्थात अब ये सभी अमेरिकियों की आवाज को सदन में बुलंद करते दिखाई देंगे।
भारतीयों के प्रति सम्मान बढ़ा है अमेरिका में
अमेरिका की करीब 34 करोड़ की आबादी में प्रवासी भारतीयों की संख्या 44 लाख से अधिक हो चुकी है और इसमें लगातार इजाफा होता जा रहा है। अमेरिका में चीनियों के बाद भारतीय दूसरा सबसे बड़ा प्रवासी समूह है। भारतीयों की मेधाशक्ति व कार्मिकता ने अमेरिका को बड़ा प्रभावित किया है और यही कारण है कि वहां भारतीयों के लिए फायदे के आधा दर्जन से अधिक कानून तथा प्रावधान हैं जिनसे उनकी जीवनशैली में परिवर्तन हुआ है और वे खुलकर अमेरिकियों का साथ दे रहे हैं।
अमेरिका के स्कूलों में भारतीयों के योगदान को पढ़ाया जा रहा है ताकि अतीत में भारतीय-अमेरिकियों पर हुए हमलों से आने वाली पीढ़ी सीख ले और उनके योगदान को कमतर न आंके। बाइडेन प्रशासन ने भारतीय-अमेरिकियों के इतिहास और संस्कृति को मान्यता देने के उद्देश्य से नेशनल म्यूजियम ऑफ एशियन एंड पैसिफिक अमेरिकन हिस्ट्री एंड कल्चर बनाने की सम्भावना हेतु कानून बनाया है।
इसके अलावा भारतीय-अमेरिकियों में हृदय रोगों की उच्च आशंका के मद्देनजर साउथ एशियन हार्ट हेल्थ अवेयरनेस एंड रिसर्च एक्ट पारित किया है जो भारतीय-अमेरिकियों के हृदय रोगों पर न सिर्फ शोध करेगा बल्कि इनसे बचाव हेतु जागरूकता कार्यक्रम भी चलायेगा।
उच्च शिक्षित व आर्थिक रूप से संपन्न हैं भारतीय-अमेरिकी
भारतीय प्रवासियों ने अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त कर स्वयं को साबित किया है। एक आम अमेरिकी के 25 साल की उम्र तक बैचलर्स डिग्री पूरा करने वाले 31 प्रतिशत लोगों की तुलना में 79 प्रतिशत से अधिक भारतीय प्रवासी 25 साल की उम्र तक बैचलर्स डिग्री पूरा करते हैं। इसके अलावा, 25 और उससे अधिक आयु वर्ग में अमेरिका की मात्र 11 प्रतिशत सामान्य जनता की तुलना में 44 प्रतिशत भारतीय प्रवासी मास्टर्स डिग्री, पी.एच.डी या उन्नत पेशेवर डिग्री अर्जित कर चुके हैं।
भारतीय-अमेरिकी मुख्य रूप से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में काम करके अन्य नागरिकों को पछाड़ते हैं। वहीं भारतीय प्रवासी अमेरिका में सबसे अमीर समुदायों में से एक है। सभी भारतीय-अमेरिकियों की औसत वार्षिक आय लगभग 89,000 डॉलर है जो अमेरिकी नागरिकों की औसत वार्षिक आय 50,000 डॉलर से अधिक है। भारतीय प्रवासी अमेरिका में 50 प्रतिशत किफायती लॉज और 35 प्रतिशत होटलों के मालिक हैं जिसका बाजार मूल्य लगभग 40 बिलियन डॉलर है।
हमारे लिए आत्ममंथन का समय
भारतवंशी अमेरिका में समृद्ध व शक्तिशाली समूह बनकर उभरे हैं और हर भारतवासी को इस पर गर्व होना स्वाभाविक है किन्तु क्या ऐसा होना हमारे लिए आत्ममंथन का समय नहीं है? यदि सत्य नडेला, इंदिरा नूयी, विनोद खोसला, सुंदर पिचाई, विनोद दाहम, शांतनु नारायण, अजयपाल सिंह बंगा, सबीर भाटिया, कमला हैरिस जैसे व्यक्तित्व भारत में ही रहते, यहीं उन्हें उत्कृष्ट अवसर मिलते तो क्या हम माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, हॉट मेल, पेप्सिको, एडोब जैसी संस्थायें नहीं खड़ी कर सकते थे?
भारत की मेधा और प्रतिभा दुनिया को रास्ता दिखा रही है किन्तु दूसरे देश में जाकर, यह हमारे सिस्टम की असफलता है। हमें देश में ही सबके लिए समान अवसर सुलभ करवाने होंगे ताकि जितनी शान से हम प्रवासी भारतीयों का गुणगान करते हैं, भारत की मेधा का भी करें।
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