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People of Indian Origin: सनातन संस्कृति और मूल्यों में छिपी हैं विदेश में बसे भारतवंशियों की सफलता

By Pranay Kumar
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People of Indian Origin: हिंदू आस्था, परंपरा, जीवन-मूल्यों एवं संस्कारों से गहरे जुड़े ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने की आधिकारिक घोषणा के बाद भारत वर्ष में अपार खुशी की लहर देखने को मिली। यह स्वाभाविक भी था। न केवल भारतवर्ष में अपितु दुनिया के अन्य अनेक देशों में भी इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने और सुनने को मिली। कारण - सनातन मानस का वह वैशिष्ट्य है जो जुड़ने व जोड़ने में विश्वास रखता है, जो जिस देश में बसता है, पूर्ण रूपेण उसी का होकर रहता है।

People of Indian Origin Success in Abroad Indians success story

भारतवंशियों ने मन-वचन-कर्म से उस देश की मिट्टी-हवा-पानी को अपनाया है, जहाँ-जहाँ वे गए और बसे हैं। उनकी राष्ट्र-निष्ठा असंदिग्ध रही है। उस पर उंगली उठाने का साहस उनके धुर विरोधी भी कभी नहीं कर सके हैं। उन्होंने अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं को अक्षुण्ण रखते हुए भी वहाँ की संस्कृति को बाधित-अपमानित करने का अपराध भूलकर भी नहीं किया। अपितु उन्होंने अपनी परंपरागत विशेषताओं को स्थानीय सांस्कृतिक धारा में सम्मिश्रित कर उसे समृद्ध ही किया। सबमें एक और एक में सबको देखने की सनातन दृष्टि सभी प्रकार के भेद भाव को सहज ही दूर करती है और भिन्न देश-परिवेश को भी सहजता से स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करती है।

भिन्न-भिन्न पूजा-पद्धत्ति, रीति-नीति-शैली-परंपरा के साथ समरस होने की कला व साधना सनातन की नित्य की जीवनचर्या है। उसके लिए उसे किसी अतिरिक्त प्रशिक्षण या अनुसरण की आवश्यकता नहीं। कदाचित यही कारण है कि सनातनियों को किसी के साथ घुलने-मिलने में देर नहीं लगती। कोई भी संस्कृति उन्हें पराई नहीं लगती। सबके मन व मर्म को छूने का हुनर उन्हें मालूम है।

अपने परिश्रम, पुरुषार्थ, योग्यता एवं कार्यकुशलता के बल पर विदेश में भी वे शीर्ष पदों तक पहुँचते रहे हैं और वहाँ के राष्ट्रीय एवं सामाजिक जीवन में उल्लेखनीय योगदान भी देते रहे हैं। यहाँ तक कि औपनिवेशिक काल में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से जहाज में भर-भरकर ज़बरन ले जाए गए मजदूरों ने भी अपने ख़ून-पसीने से मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद-टोबैगो आदि देशों-द्वीपों को सजाने-सँवारने का काम किया तथा वहाँ की तस्वीर और तक़दीर बदली।

संपूर्ण विश्व पर यदि दृष्टि डालें तो भारतीय प्रतिभा का डंका चहुँ ओर बजता दिखाई देता है। विश्व के 25 देशों में भारतीय मूल के लगभग 313 राजनेताओं ने कोई-न-कोई पद संभाला है। इनमें अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश भी सम्मिलित हैं। बल्कि कहा तो यहाँ तक जाता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन की तुलना में वहाँ की उपराष्ट्रपति और भारतीय मूल की नेत्री कमला हैरिस शासन-प्रशासन के तमाम मोर्चों पर अधिक सक्रिय व चुस्त-दुरुस्त नज़र आती हैं।

भारतीय मूल के लोगों ने 10 देशों में 31 बार प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के रूप में सत्ता संभाली है। भारत के पड़ोस में स्थित मॉरीशस में 10 बार, सूरीनाम में 5, गयाना में 4, सिंगापुर, त्रिनिदाद और टोबैगो में 3-3 बार, पुर्तगाल में 2 तथा फिजी, आयरलैंड और सेशेल्स में 1-1 बार भारतीय मूल के नेता प्रधानमंत्री रहे हैं। कनाडा में भारतीय मूल के 19 प्रमुख नेता रहे हैं, जिनमें 8 सरकार में शामिल हैं।

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राजनीतिक क्षेत्रों से इतर यदि हम शिक्षा, चिकित्सा, ज्ञान-विज्ञान, प्रबंधन, तकनीक एवं प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों पर दृष्टि डालें तो वहाँ भी नेतृत्व भारतवंशियों के हाथों में ही नज़र आता है। इनमें गूगल के , आईबीएम के अरविंद कृष्णा, एडोबी के शांतनु नारायण, वीएम वेयर के रघु रघुराम, मास्टर कार्ड के अजय पाल बंगा, अरिस्टा नेटवर्क की जयश्री उलाल, नोकिया के राजीव सूरी, ग्लोबल फाउंड्रीज के संजय झा, स्टारबक्स के लक्ष्मण नरसिंहन आदि के नाम द्रष्टव्य हैं। अभी कुछ दिनों पूर्व ट्वीटर के सीईओ पराग अग्रवाल को हटाए जाने से पूर्व उनका नाम भी इसी सूची में था।

भारत से बाहर गए भारतीयों या भारतवंशियों ने सनातन आस्था की डोर निश्चित थामे रखी, पर जिस देश में वे रहे, वह उनकी प्राथमिकता-बिंदु में सर्वोच्च क्रम पर रहा। उसके प्रति कर्त्तव्य-पालन को उन्होंने सर्वोपरि रखा। वैसे भी सनातन संस्कृति में धर्म का अभिप्राय कर्त्तव्य-बोध या कर्त्तव्य-पालन से ही है। कुछ लोग जान-बूझकर और कुछ अनजाने में धर्म को पंथ, मज़हब, रिलीज़न आदि का पर्याय समझने की भूल कर बैठते हैं।

आज ऋषि सुनक जिस ऊँचाई पर पहुँचे हैं, उसके पीछे भी उनकी योग्यता, दक्षता, कार्यकुशलता एवं कर्त्तव्य-पालन की भावना ही है, न कि उनका किसी जाति, नस्ल या समुदाय-विशेष का होना। वे जन्मना ब्रितानी हैं। वे वहीं साउथम्प्टन शहर में जन्मे, पले और बढ़े हैं। उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता ब्रिटेन को आर्थिक संकटों से उबारना है। वहाँ की जनता ने अभी उन्हें नहीं चुना है, बल्कि एक परिस्थिति विशेष ने उन्हें इस सर्वोच्च पद तक पहुँचाया है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि एक प्रधानमंत्री के रूप में वे भारत के साथ कैसा रिश्ता रखते व आगे बढ़ाते हैं? हाँ, भारत और भारतीयों के संदर्भ में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टल चर्चिल की निम्नलिखित टिप्पणी के आलोक में ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री बनना भारतीयों के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय अवश्य हो जाता है। चर्चिल ने कहा था - ''वे जानवर जैसे लोग हैं और उनका धर्म भी पशुओं जैसा है।....भारत न एक देश या राष्ट्र है, यह एक महाद्वीप है, जिसमें कई देश बसे हुए हैं।'' किसे पता था कि कालचक्र ऐसे घूमेगा कि आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे ब्रिटेन को अपने खेवनहार के रूप में भारतीय रक्त एवं प्रतिभा पर ही विश्वास करना पड़ेगा और उसे प्रधानमंत्री बनाना पड़ेगा!

लेकिन इस अवसर पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चर्चिल और उनके अनुयायियों को आईना दिखाने की घड़ी में भी भारतवर्ष के कथित उदार एवं पंथनिरपेक्ष धड़े ने मातम मनाया, मर्सिया पढ़ा। यह वही धड़ा है जो राजनीतिक विरोध के नाम पर भारतीय संस्कृति और भारत विरोध की सीमा तक जा पहुँचा है। वह भारत को बदनाम करने का एक भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता। कई बार तो वह भारत को बदनाम करने वाले टूलकिट की तरह व्यवहार करता है। भारत से बाहर भारतवंशियों की सफलता भी उन्हें इतनी ईर्ष्या से भर देता है कि वो सफलता के ऐसे अवसरों पर भी रुदाली गाने से नहीं चूकते हैं।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।

English summary
People of Indian Origin Success in Abroad Indians success story
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