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इंडिया गेट से: तीस्ता सीतलवाड़: सेक्युलरवाद की आड़ में धन संग्रह और खतरनाक साजिशें

सात-आठ साल तक तीस्‍ता के साथ काम करने वाले रईस खान का कहना है कि वह सोशल एक्टिविस्ट नहीं बल्कि नफरत फैलाने का धंधा करती है।

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नई दिल्ली: तथाकथित सोशल एक्टिविस्‍ट तीस्‍ता सीतलवाड़ पर कानूनी शिकंजा कस गया है। मैंने तथाकथित इस लिए लिखा है, क्योंकि अंग्रेजीदां इलीट लोगों की एक लॉबी उसे सोशल एक्टिविस्ट कहती है, लेकिन सात-आठ साल तक तीस्‍ता के साथ काम करने वाले रईस खान का कहना है कि वह सोशल एक्टिविस्ट नहीं बल्कि नफरत फैलाने का धंधा करती है।

teesta setalvad

तीस्‍ता सीतलवाड़ को गुजरात के दंगों को राजनीतिक रंग देने की साजिश के तहत झूठे हल्फिया बयान और झूठी गवाहियां बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इस से पहले जब भी उसे गिरफ्तार किया गया, एक लॉबी इतनी सक्रिय हो जाती थी कि दुनिया भर में शोर मचता था और उस शोर में अदालत भी प्रभावित हो जाती थी। अब पहली बार सुप्रीमकोर्ट ने उसके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है, क्योंकि उसने झूठे हल्फिया बयान बनवा कर 20 साल तक क़ानून के साथ खिलवाड़ किया।

तीस्‍ता सीतलवाड़ के एक्टिविज्म की कहानी 2002 के दंगों से शुरू नहीं होती। बल्कि 1999 से शुरू होती है, जब सोनिया गांधी और जयललिता ने मिल कर वाजपेयी सरकार गिरा दी थी और लोकसभा के चुनाव होने वाले थे। तब तीस्‍ता सीतलवाड़ के पति जावेद आनन्द ने कम्बेट कम्युनलिज्म नाम से एक मैगज़ीन निकाली थी। यह मैगज़ीन भाजपा को सत्ता से दूर रखने के एक मात्र उद्देश्य से निकाली गई थी। कहते हैं कि इस मैगज़ीन के लिए कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों ने जावेद और तीस्‍ता सीतलवाड़ को डेढ़ करोड़ रुपया मुहैया करवाया था। फरवरी 2002 में जब गोधरा में 59 कार सेवकों को ज़िंदा जला दिया गया और उस की प्रतिक्रिया में गुजरात में दंगे शुरू हुए तो तीस्‍ता सीतलवाड़ ने दंगों की साजिश रचने के लिए मुख्यमंत्री नरेद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराने का बीड़ा उठाया। रईस खान ने खुलासा किया है कि जब दंगे चल रहे थे, तब सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहाकार अहमद पटेल अहमदाबाद आए थे। तीस्‍ता सीतलवाड़ और वह सर्किट हाउस में उन्हें मिलने गए, तब अहमद पटेल ने कहा कि उन्हें पैसे की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी, वह इस काम में जी जान से जुट जाएं। अहमद पटेल ने तुरंत अहमदाबाद की होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष को बुलाया और तीस्‍ता सीतलवाड़ को पांच लाख रूपए कैश दिलवाए।

बाद में तीस्‍ता सीतलवाड़ और रईस खान दिल्ली आए तो उन्हें वी.पी. हाउस में ठहराया गया और सोनिया गांधी से मुलाक़ात करवाई गई। सोनिया गांधी ने भी उन्हें आश्वासन दिया कि इस काम के लिए उन्हें पैसे की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। इस साजिश के सबूत कुछ तथ्यों से मिलते हैं। दंगों के बाद 2002 में ही कांग्रेस ने तीस्ता सीतलवाड़ को राजीव गांधी राष्‍ट्रीय सद्भावना पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया था। बाद में जब कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आ गई तो 2006 में उन्‍हें प्रतिष्ठित नानी पालखीवाला पुरस्‍कार और 2007 में पद्मश्री सम्‍मान से नवाजा गया।

तीस्ता सीतलवाड ने नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा करने के लिए 2002 में ही अपना एनजीओ बनाया था, जिसे बाद में कांग्रेस की यूपीए सरकार ने 1.4 करोड़ रुपये सरकारी फंड से दिए। तीस्‍ता सीतलवाड़ का काम मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दंगों के लिए जिम्मेदार ठहराने और भाजपा सरकार को मुस्लिम विरोधी साबित करने की कहानियाँ गढने का था। अहमद पटेल ने दिल्ली में तीस्‍ता सीतलवाड़ को उन पत्रकारों से भी मिलवाया था, जो इस काम में उसके साथ को-आर्डिनेट करने वाले थे। इनमें टीवी चेनलों के पत्रकार, प्रिंट मीडिया के पत्रकार और कुछ विदेशी मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकार भी थे। इस तरह एक लॉबी खडी की गई, जिस का काम न सिर्फ मोदी को टार्गेट करना था, बल्कि 2004 के लोकसभा चुनाव को भी टार्गेट करना था।

आपको याद होगा उस समय एक खबर बहुत चलाई गयी थी कि एक गर्भवती औरत के पेट में छुरा घोंप कर मार दिया गया। वह खबर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दुओं के खिलाफ प्रचार करने के लिए इस्तेमाल की गई थी, लेकिन वह खबर तीस्‍ता सीतलवाड़ व उसके सहयोगी पत्रकारों की गढी हुई झूठी खबर निकली। बाद में उस औरत का इलाज करने वाले डाक्टर ने इंडिया टुडे के पत्रकार उदय माहुरकर को बताया था कि वह औरत आग लगने से मरी थी।

इसी तरह अनेक महिलाओं के रेप की खबरें प्रचारित की गईं थी| एक महिला के रेप का हल्फिया बयान सुर्खियाँ बना था, लेकिन उस महिला ने कोर्ट में कहा कि उस के साथ कोई रेप नहीं हुआ। यह हल्फिया बयान तीस्‍ता सीतलवाड़ ने बनवाया था। उसे अंगरेजी नहीं आती, इस लिए उसने बिना पढ़े दस्तखत कर दिए थे। उस महिला ने बाद में तीस्‍ता सीतलवाड़ को फोन करके उसे फटकार लगाई थी कि उसने झूठा हल्फिया बयान क्यों बनवाया था, वह एक शादीशुदा महिला है। इसी तरह के दर्जनों हल्फिया बयान लोगों को अँधेरे में रख कर दस्तखत करवाए गए और अदालत में पेश किए गए।

आप को कतुबुद्दीन अंसारी का दंगाईयों से रहम की भीख मांगने वाला वह फोटो याद होगा। उस कतुबुद्दीन अंसारी को केन्द्रीय सुरक्षा बलों ने सुरक्षित बचाया था, लेकिन कांग्रेस ने हर चुनाव में उस के फोटो का इस्तेमाल किया। जब हाल ही के असम विधानसभा चुनाव में उस की तस्वीर फिर इस्तेमाल की गई, तो उसने कहा कि वह उस दिन मर ही क्यों नहीं गया। कांग्रेस उसे हर चुनाव में मारती है। इस तरह तीस्ता सीतलवाड़ और मीडिया की एक लॉबी ने कांग्रेस और कम्युनिस्टों के साथ मिल कर सोची समझी रणनीति के तहत मोदी, भाजपा, गुजरात और भारत को बदनाम करने की योजना पर काम किया। रईस खान ने खुलासा किया है कि तीस्ता सीतलवाड़ को अमेरिका, इंग्लैण्ड और अरब देशों से भी बहुत पैसा आया।

दंगों में मारे गए मुसलमानों की तरफ से नरेंद्र मोदी के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करवाने की साजिश में भी तीस्ता सीतलवाड शामिल थी। लेकिन इस साजिश में दो आईपीएस पुलिस अफसर भी सहयोगी थे, उनमें से एक संजीव भट्ट एक अन्य मामले में पहले से जेल में हैं और दूसरे आईपीएस अफसर आर बी श्रीकुमार को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। असल में इन दोनों की गिरफ्तारी का रास्ता सुप्रीमकोर्ट के उस फैसले से खुला, जिसमें नरेंद्र मोदी पर आरोप ख़ारिज करते हुए उन्हें झूठे मुकद्दमों में फंसाने वालों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की बात कही गई है।

ये तीनों गुजरात के कांग्रेस नेताओं गुजरात विधानसभा में तत्‍कालीन विपक्ष के नेता शक्ति सिंह गोहिल और प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष अर्जुन मोढ़वाडिया के संपर्क में थे। संजीव भट्ट लगातार कोशिश कर रहे थे कि तमाम एनजीओ के जरिये मामले को प्रभावित करने के लिए मीडिया कार्ड खेला जाए। तीस्‍ता सीतलवाड़ संजीव भट्ट के लगातार संपर्क में थी। तीस्‍ता ने ही एडवोकेट एमएम तिरमिजी के साथ झूठे हलफनामे तैयार कराए थे। फिर पहले से टाइप किए गए हलफनामों पर जाकिया जाफरी और अन्यों के हस्ताक्षर लिए गए। सीतलवाड़ ने कई तरीकों से गवाहों को प्रभावित भी किया।

इन तीनों ने पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी को मोदी के खिलाफ केस लड़ने के लिए भडकाया और केस लड़ने की पूरी जिम्मेदारी खुद ली। जाकिया जाफरी ने 2006 में नरेंद्र मोदी और 62 अन्य को दंगों का आरोपी बनाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई थी। उस समय एक झूठी खबर यह प्रसारित की गई थी कि पूर्व सांसद एहसान जाफरी ने दंगाईयों से बचाने के लिए नरेंद्र मोदी को फोन किया था, लेकिन मोदी ने उन्हें बचाने के लिए पुलिस भेजने की बजाए एहसान जाफरी को गालियाँ निकाली। जबकि एहसान जाफरी ने नरेंद्र मोदी को कोई फोन किया था, इस का रिकार्ड कहीं नहीं मिला।

एसआईटी ने नरेंद्र मोदी को पहले ही क्लीन चिट दे दी थी। लेकिन तीस्ता सीतलवाड़ ने अपनी आख़िरी मुहिम को जारी रखते हुए जाकिया जाफरी से एसआईटी के फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दिलवाई। वही चुनौती अब तीस्ता सीतलवाड़ के लिए मुसीबत बन गई है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में न सिर्फ एसआईटी की ओर से मोदी को दी गई क्‍लीन चिट को बरकरार रखा, बल्कि एसआईटी के काम की तारीफ भी की है। कोर्ट ने कहा कि राज्य प्रशासन के कुछ अधिकारियों की लापरवाही का मतलब यह नहीं है कि दंगों के पीछे राज्य प्रशासन की साजिश थी। कोर्ट ने मोदी और अन्‍य को फंसाने के लिए झूठी गवाही देने वाले आईपीएस अधिकारियों- आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट को भी फटकारा। कोर्ट ने कहा कि उन आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं हैं कि गोधरा कांड के बाद हुई हिंसा सुनियोजित साजिश का नतीजा थी। लेकिन तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोगों ने लगातार इसे सुनियोजित साबित करने की साजिश रची और अब सुप्रीम कोर्ट ने ही उनकी साजिश का पर्दाफाश कर दिया है।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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English summary
Teesta Setalvad: Money Collection And Dangerous Conspiracy Under Guise Of Secularism
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