सर्जिकल स्ट्राइक वर्जन 2 : क्या बीजेपी को होगा चुनावी फायदा?
नई दिल्ली। भारत ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के शिविरों को नष्ट किया है, सेना ने एयर स्ट्राइक किए हैं इसकी आधिकारिक पुष्टि सबसे पहले केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के ट्वीट से हुई। इस ट्वीट में मिराज 2000 से मिसाइल छोड़ी जाती हुई तस्वीर भी थी। लिखा था, "ये मोदी का हिन्दुस्तान है, घर में घुसेगा भी और मारेगा भी.......एक-एक क़तरा ख़ून का हिसाब होगा। ये तो एक शुरुआत है....ये देश नहीं झुके दूंगा।" 26 फरवरी की सुबह 9 बजकर 32 मिनट पर इस आधिकारिक ट्वीट के आने से पहले ही टीवी चैनल और ऑनलाइन न्यूज़ माध्यमों से यह ख़बर जंगल में आग की तरह फैल चुकी थी। राहुल गांधी, अरविन्द केजरीवाल, ममता बनर्जी सबके ट्वीट्स धड़ाधड़ आने लगे। सबके सब सेना को सलाम कर रहे थे।
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एहतियात बरत रहे हैं विपक्ष के नेता
कोई गलती न हो जाए पिछली बार की तरह। पहले सर्जिकल स्ट्राइक के बाद वाली गलती कहीं दोहरा न दी जाए, इसका पूरा ख्याल रखा गया। ऐसा संदेश देने की कोशिश हुई मानो समूचा देश पाकिस्तान को जवाब देने में या आतंकियों का मुकाबला करने में एक है। मगर, सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होगी? राजनीति तो पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया से ही शुरू हो गयी। आने वाले चुनाव में यही नारा गूंजने वाला है जो गजेंद्र सिंह शेखावत के ट्वीट में उभरकर आया है, मसलन- ‘ये मोदी का हिन्दुस्तान है', ‘घर में घुसेगा भी और मारेगा भी', ‘एक-एक क़तरा ख़ून का हिसाब होगा', ‘ये तो एक शुरुआत है', ‘ये देश नहीं झुकने दूंगा'।
दूसरों को राजनीतिक लाभ की चिन्ता से होती है राजनीति
जब आतंकवादी हमले होते हैं तब उसे सरकार की विफलता से जोड़ने की कोशिश राजनीति का हिस्सा बन जाती है। तब सत्ता पक्ष बेचैन हो जाता है। उसे राजनीति बुरी लगने लगती है। जब शहीद का अंतिम संस्कार होता है। वहां राजनीतिक शख्सियत पहुंचती हैं। तब भी एक बेचैनी उन लोगों मे होने लगती है जिन्हें इसका राजनीतिक फायदा नहीं या कम मिल रहा होता है। या फिर कहें कि उनसे ईर्ष्या होने लगती है जब इसका राजनीतिक फायदा किसी और को मिल रहा होता है। जब सेना की ओर से कार्रवाई होती है, तो सत्ताधारी दल अक्सर उस कार्रवाई को अपनी बताकर उसका राजनीतिक श्रेय लेते हैं। इससे विपक्ष को बेचैनी होने लगती है और वह स्पर्धा करने लग जाता है।
दिखावे के लिए ही सरकार के साथ होता है विपक्ष
सर्जिकल स्ट्राइक वन और सर्जिकल स्ट्राइक टू में सबसे बड़ा फर्क यही है कि पहला पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हुआ था और दूसरा पाकिस्तान में हुआ है। तब सर्जिकल स्ट्राइक हुए, नहीं हुए या सबूत मांगने और देने को लेकर राजनीति चर्चित रही थी। देशभक्त और देश विरोधी या पाकिस्तान परस्त राजनीति पर भी चर्चा हुई थी। मगर, इस बार सर्जिकल स्ट्राइक टू के बाद स्थिति जुदा है। कोई संदेह या शुबहा नहीं है। सब सेना की कार्रवाई के साथ हैं। मगर, क्या सरकार के साथ हैं? हैं, मगर तब तक जब तक कि श्रेय लेने की कोशिश सत्ता पक्ष नहीं करता और इस वजह से विपक्ष में ईर्ष्या का भाव पैदा नहीं होता।
राजनीतिक लाभ लेने की शुरुआत
चूंकि राजनीतिक लाभ लेने की शुरुआत हो चुकी है। इसलिए इसकी आलोचना भी होगी और यह राजनीति परवान भी चढ़ेगी। सत्ता पक्ष निश्चित रूप से सैन्य कार्रवाई के लिए सत्ताधारी दल और देश के नेतृत्व को श्रेय देगा। ऐसी शब्दावलियां सामने आएंगी जिससे यह श्रेय और खुलकर मिल सके। हमले और भी होंगे, आक्रामकता के साथ हमले होंगे, मुंहतोड़ जवाब, ईंट का जवाब पत्थर, पहले वाला हिन्दुस्तान नहीं, मोदी का है हिन्दुस्तान जैसे नारे सामने आने वाले हैं।
जब-जब कश्मीर और कश्मीर होते हुए आतंकवाद व पाकिस्तान का जिक्र आता है तो बीजेपी को हमेशा ध्रुवीकरण की सियासत का अवसर मिलता है जो उसकी राजनीति के मुफीद हुआ करती है। ध्रुवीकरण से जिनको फायदा है वे दोनों पक्ष इस अवसर को भुनाने लग जाते हैं। पड़ोसी देशों के साथ सद्भावना और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की वकालत करने वाले संदिग्ध हो जाते हैं। उन्हें देश के दुश्मन करार दिए जाने का ख़तरा हो आता है।
‘राष्ट्रवाद’ शोर से फायदा बीजेपी को, नुकसान कांग्रेस को
चुनाव वर्ष में राष्ट्रवाद से किसे फायदा होगा? भारत-पाकिस्तान में युद्ध का माहौल बनने से राजनीतिक लाभ किसे मिलेगा? निश्चित रूप से इसका जवाब ध्रुवीकरण है। यह ध्रुवीकरण देशभक्ति के नाम पर होगा, यह तो दिखावे वाली बात हो गयी। चूकि देश में जो विगत वर्षों का माहौल है उससे जो देशभक्ति को लेकर खेमेबंदी हुई है उसे देखते हुए कोई नयी खेमेबंदी नहीं होगी। ध्रुवीकरण का स्वरूप हिन्दू-मुसलमान ही होगा। चाहे राम मंदिर मुद्दा ले लीजिए या कश्मीर, गो हत्या ले लीजिए या फिर मॉब लिंचिंग। हर मामले में ध्रुवीकरण का जो आधार रहा है वह सीमा पर तनाव के समय बदल तो नहीं सकता।
चुनाव वर्ष में राष्ट्रवाद का उग्र रूप उभरना सत्ताधारी बीजेपी के लिए फायदेमंद है क्योंकि यह उसके हित में ध्रुवीककरण की सियासत के अनुरूप है। वहीं, इससे सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होना तय है क्योंकि वही बीजेपी के मुकाबले राष्ट्रीय पार्टी है। क्षेत्रीय दल तो अपने क्षेत्रीय स्वभाव के कारण अपनी स्थिति बचा ले जाएंगे, मगर राष्ट्रीय दल कांग्रेस को बीजेपी से निपटने के लिए इस ध्रुवीकरण का जवाब ढूंढ़ना होगा। राजनीति शुरू हो चुकी है। इसे रोका जाना मुश्किल है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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