क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

उद्धव या एकनाथ: कौन होगा शिवसेना का नया नाथ?

Google Oneindia News

सुप्रीम कोर्ट ने असली शिवसेना का फैसला करने के लिए एक संवैधानिक पीठ का गठन कर दिया है। 23 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना ने इस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच जजों वाली एक संवैधानिक पीठ के गठन का ऐलान किया। 25 अगस्त को यह संवैधानिक पीठ असली शिवसेना की पहचान करेगी। अगर एक ही सुनवाई में वो किसी नतीजे तक पहुंच जाती है तो हो सकता है 25 अगस्त को ही शिवसेना को नया नाथ मिल जाए। अगर फैसला नहीं होता है तो यह पीठ आगे भी सुनवाई जारी रखेगी। तब तक चुनाव आयोग भी शिवसेना के चुनाव चिन्ह तीर कमान पर कोई आखिरी फैसला नहीं लेगा।

Supreme Court to decide future of Shiv Sena leadership

सत्ता की लड़ाई में एकनाथ शिंदे से हारने और शिवसेना के एकाधिकार पर मिल रही कठिन चुनौती के बाद उद्धव ठाकरे के लिए दिवंगत पिता से मिली पार्टी को बचाना सबसे बड़ी चुनौती बन गयी है। 30 जून को महाराष्ट्र की कुर्सी गंवाने के बाद से उद्धव ठाकरे दादर स्थित शिवसेना भवन में लगातार बैठक कर रहे हैं और अपने पैरों के नीचे जो भी जमीन बची है उसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

विधानसभा में शिवसेना के 55 में से 40 विधायकों और 12 सांसदों को लेकर पार्टी विभाजित करने में सफल होने के बाद पार्टी पर भी शिंदे का कब्जा कर लेने के बाद शिंदे ने शिवसेना पर ही दावा कर दिया है। अत: शिवसेना को अपने पास रखने के लिए इस समय उद्धव ठाकरे ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है। हालांकि वैधानिक रूप से शिंदे गुट को अभी भी शिवसेना का चुनाव चिन्ह नहीं मिला है, लेकिन सत्ता में होने के कारण मिल रहे सभी लाभों और मनोवैज्ञानिक बढ़त के कारण वह बढ़त बनाए हुए है। फिलहाल उद्धव ठाकरे की एकमात्र उम्मीद सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वह याचिका है जिसमें शिंदे और 15 अन्य को पार्टी का आदेश न मानने के कारण अयोग्य घोषित करने की मांग की गई है।

11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह याचिका पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन करेगा। अब 23 अगस्त को अपनी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एक पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ का गठन भी कर दिया है जो 25 अगस्त को इस मामले पर सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या आता है यह देखना होगा लेकिन उद्धव ठाकरे के लिए उम्मीद की डोर अभी भी बहुत कमजोर नहीं है। पार्टी और कैडर के बहुसंख्यक नेताओं का उन पर अभी भी भरोसा बरकरार है। शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 256 सदस्यों में से 249 सदस्यों ने उद्धव ठाकरे पर भरोसा जताया है। उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दोनों के अपने अपने दावे हैं और दोनों शिवसेना पर दावे ठोक रहे हैं। लेकिन दोनों के दावों में कितना दम है अब इसका फैसला 25 अगस्त को सुप्रीम सुनवाई से ही होगा।

जहां तक चुनाव चिन्ह की बात है तो चुनाव चिन्ह आरक्षण और आवंटन आदेश 1968 के तहत संख्या के आधार पर किसी भी गुट को मूल पार्टी के वैध उत्तराधिकारी की मान्यता देने का अधिकार चुनाव आयोग के पास सुरक्षित है। आयोग की कसौटी पर खरा न उतरने वाला गुट एक अलग चुनाव चिन्ह के साथ नई पार्टी के रूप में पंजीकृत हो सकता है। आयोग के पास मूल चुनाव चिन्ह जब्त कर संघर्षरत गुटों को अलग अलग चिन्ह आवंटित करने का भी अधिकार है। 1968 का यह आदेश कानून नहीं है लेकिन अदालतों ने समय समय पर इसे वैध माना है।

ऐसा ही एक मामला 2017 में समाजवादी पार्टी पर कब्जे को लेकर आयोग के सामने आया था। उस समय चुनाव आयोग ने मुलायम सिंह यादव के दावों को खारिज कर उनके बेटे अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले समूह को मूल समाजवादी माना था। कुल 228 मे से 205 विधायकों, 68 मे से 56 एमएलसी और 24 मे से 15 सांसदों के अलावा राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्यों और राष्ट्रीय सम्मेलन के प्रतिनिधियों के बहुमत का समर्थन होने के अखिलेश के दावे को स्वीकार करते हुए आयोग ने उन्हे पार्टी का नाम और उसके प्रतीक चिन्ह साइकिल का उपयोग करने की अनुमति दी थी।

ऐसा ही एक मामला 2020 में राम विलास पासवान पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी के दो फाड़ होने का था। इस मामले मे चुनाव आयोग ने चुनाव चिन्ह झोपड़ी जब्त कर लिया था क्योकि दोनों दावेदारों चिराग पासवान और और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच विजेता तय नही हो सका था।

शिवसेना के मामले में उसके निर्वाचित प्रतिनिधियों मे से अधिकांश (55 में से 40 विधायक और 22 में से 12 सांसद) शिंदे के पक्ष मे हैं। हालांकि विधान परिषद के 10 सदस्यों में से एक ही शिंदे के साथ है। जबकि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी उद्धव के साथ है। संगठन के अधिकांश पदाधिकारी भी उद्धव ठाकरे के साथ मजबूती से खड़े हैं।

एक तकनीकी लड़ाई मे शिंदे ने 18 जुलाई को उद्धव समर्थक राष्ट्रीय कार्यकारिणी को खारिज करते हुए अपने समर्थकों की एक नई कार्यकारिणी बनाई थी। शिंदे की टीम ने चीफ लीडर का पद सृजित कर उस पर एकनाथ शिंदे को स्थापित कर दिया। इस कार्रवाई को चुनाव आयोग का समर्थन मिल भी सकता है और नहीं भी।

फिलहाल चुनाव आयोग ने इस पर फैसला नहीं लिया है और अब सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाने तक कोई फैसला लेने से रोक भी दिया है। लेकिन इस घटनाक्रम में एक दिलचस्प बात यह भी है कि उद्धव और शिंदे ने एक दूसरे को पार्टी से नहीं निकाला है। दोनों पार्टी के भीतर रहकर पार्टी में वर्चस्व की जंग लड़ रहे है।

इसी नवंबर में महाराष्ट्र में 15 नगर निगमों और 200 नगरपालिका परिषदों के चुनाव होने हैं। इन चुनावों में चुनाव आयोग किसे धनुष बाण सौपता है या दोनों गुटों का नया चुनाव चिन्ह आवंटित करता है, इसका फैसला भी सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ की सुनवाई के बाद ही हो सकेगा। हालांकि उद्धव ठाकरे के लिए शिवसेना बचाना आसान नहीं है। फिर भी महाराष्ट्र के मराठियों के रगों में बहने वाली शिवसेना मातोश्री में रहती है या उसका नया ठिकाना ठाणे होगा अब इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है।

बहरहाल, लहूलहान कर देने वाली वजूद की इस लड़ाई में अपनों के द्वारा दिए जख्मों को गिनने का भी वक्त उद्धव ठाकरे के पास नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला चाहे जो आये लेकिन उद्धव को अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए मातोश्री से बाहर निकलना होगा क्योंकि शिवसेना ऐसी पार्टी है जिसके कार्यकर्ताओं का उल्लास और जीवतंता ही उसकी जीवनशक्ति है। लेकिन उद्धव ऐसे शख्स रहे हैं जिनकी फितरत उस वक्त भी अपने खोल में दुबक जाने की है, जब जमीन के साथ जुड़ाव की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

यह भी पढ़ेंः इंडिया गेट से: सावरकर विरोधी कांग्रेसी और कम्युनिस्ट अपने नेताओं के माफीनामे पर चुप क्यों?

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

Comments
English summary
Supreme Court to decide future of Shiv Sena leadership
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X