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Secular Obsession with Beef: गौपूजक ऋषि सुनक को गौभक्षक बताने की सेकुलर साजिश

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Secular Obsession with Beef: ब्रिटिश लोकतंत्र में भारतीय मूल के हिंदू ऋषि सुनक की ताजपोशी के बाद हिंदुत्ववादी ताकतों को नीचा दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर एक सूचना तत्काल डाल दी गई कि ऋषि सुनक बीफ यानी गौमांस भी खाते हैं।

सनातन दर्शन में गाय को पूजनीय माना जाता है। उसे साक्षात् लक्ष्मी का अवतार समझा जाता है। इसलिए गौमांस का भक्षण महापाप की श्रेणी का माना जाता है। शायद यही वजह है कि हिंदुत्व की वैचारिकी को नीचा दिखाने के लिए अक्सर गौमांस का सवाल उठाया जाता है।

Secular obsession with beef conspiracy to call UK PM Rishi Sunak

कुछ समय पहले केरल में कांग्रेस के पदाधिकारी तक खुलेआम गौमांस खाने का प्रदर्शन तक करते थे। दरअसल ऋषि सुनक का नाम जैसे ही ब्रिटिश सत्ता के लिए सामने आया, दुनियाभर के सनातनधर्मी इसे हिंदुत्व की विजय के तौर पर दिखाने लगे। सनातन विचारधारा में इसे हिंदुत्व की वैश्विक स्थापना के महान उदाहरण के तौर पर दिखाया जाने लगा।

ब्रिटेन को सेकुलर और बहुलवादी संस्कृति को बढ़ावा देने वाले देश के रूप में ब्रिटिश प्रगतिवादियों की बजाय भारतीय प्रगतिवादी कहीं ज्यादा प्रचारित कर रहे हैं। ब्रिटेन बहुलवादी संस्कृति का देश भले ही हो, लेकिन यह भी सच है कि वहां के बहुलतावादी दर्शन में बाइबिल यानी ईसाइयत को प्रमुखता दी जाती है।

यह ठीक है कि ऋषि सुनक और प्रीति पटेल जैसे कुछ लोग संसद की सदस्यता के लिए गीता को हाथ में लेकर शपथ ले लेते हैं। लेकिन वहां की वैचारिकी और परंपराओं में ईसाइयत को ही प्रमुखता है।

ब्रिटिश राज व्यवस्था के संवैधानिक प्रमुख तक की ताजपोशी वहां के चर्च के प्रमुख पादरी द्वारा संपन्न की जाती है। साफ है कि बहुलतावादी संस्कृति का प्रमुख बुनियादी स्तंभ ईसाइयत ही है। ऐसे देश में पूरी आस्था के साथ मंदिर में सेवा करने वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचता है तो यह सनातन वैचारिकी के लिए गर्व का क्षण होगा ही।

भारत में आजादी के आंदोलन के दौरान ही कांग्रेस के कतिपय बड़े नेताओं ने सेकुलरवाद का जो बीज बोया, अब वह इतना बड़ा पेड़ हो गया है कि बाइबिल, कुरान की कसमें उसे सेकुलर लगती हैं, जबकि गीता की शपथ सांप्रदायिकता का प्रतीक हो जाती है। इस सोच का ही असर है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति द्वारा मस्जिद, गिरिजाघर या गुरूद्वारा जाना जहां सेकुलरवाद और प्रगतिवादी सोच का प्रतीक माना जाता है, वहीं मंदिर की आस्थावान यात्रा ढकोसलापंथ और सांप्रदायिकता का विस्तार लगती है।

यह सोच पिछले कुछ सालों में खुरच गई है। इसके बावजूद सेकुलरवाद से प्रेरित-पुष्पित राजनीति का एक खास वर्ग इसकी खिल्ली उड़ाने की कोशिश करने लगता है। ऋषि सुनक के गौमांस भक्षण के कथित तथ्य को सामने लाने के पीछे उसी वर्ग का दिमाग है, जिसे ऋषि सुनक के गौ पूजा से भी तकलीफ थी। ऋषि सुनक ने इस्कॉन मंदिर में जाकर गाय की पूजा की तब भी उसे तकलीफ थी और अब वह इस बात की अफवाह फैलाकर ऋषि सुनक के बहाने भारतीय गर्वबोध को खंडित करने का प्रयास कर रहा है कि वो गौमांसभक्षी हैं।

दुर्भाग्यवश भारतीय पत्रकारिता और बौद्धिकता का एक वर्ग भी सोशल मीडिया की इस ताकत और उसके ऐसे प्रयोगों को जानते हुए भी उसके जाल में फंसने का अभ्यस्त हो चुका है। इसलिए बड़े-बड़े गांधीवादी हों या सेकुलरवादी, सोशल मीडिया पर भारतीयता के गर्वबोध का उपहास उड़ाने में जुट जाते हैं।

भारत में जब इस उपहासकर्म के जरिए सनातन सोच को नीचा दिखाने की कोशिश हो रही थी, ब्रिटेन के मशहूर अखबार द टेलीग्राफ ने सुनक के बारे में एक खबर प्रकाशित की है। इस खबर की पहली ही लाइन में लिखा गया है कि सुनक गौमांसभक्षी नहीं हैं। उस खबर में लिखा गया है कि भले ही सुनक गौमांस न खाते हों, लेकिन वे गौमांस का व्यापार करने वालों के खिलाफ ब्रिटेन में कुछ नहीं कहेंगे।

यह भी पढ़ें: Hindutva vs Secularism: 21वीं सदी में हिंदू आस्था के प्रति बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता

हो सकता है कि हिंदुत्व का मजाक उड़ाने और नीचा दिखाने की ताक में बैठी ताकतों को इसमें भी मजा आए। तब वे कह सकते हैं कि देखो तुम्हारे हिंदुत्व का गर्वीला प्रहरी गौमांस पर प्रतिबंध नहीं लगाने जा रहा है। तब वे बड़ी चतुराई से इस तथ्य को छुपाने की कोशिश करेंगे कि ऋषि सुनक जिस सरजमीं के प्रधानमंत्री हैं, वहां बीफ खाने की परंपरा है। वह समाज मांसाहारी है।

ऋषि सुनक के बहाने देश की मौजूदा सरकार और उसके वैचारिक आधार को भी सवालों के घेरे में खड़ा किया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर की हिजाबधारी मुख्यमंत्री रही महबूबा मुफ्ती हों या फिर सदा इस्लाम की बात करने वाले एमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, दोनों सुनक की ताजपोशी को ब्रिटिश बहुलतावादी संस्कृति और लोकतंत्र की बलैया ले रहे हैं।

इसके साथ ही वे खुलकर कह रहे हैं कि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री के पद पर कोई अल्पसंख्यक पहुंच सके। दिलचस्प यह है कि सनातन धर्म को सवालों के घेरे में खड़ा करने वाली राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक ताकतें भी इन बयानों को खूब महत्व दे रही हैं।

ऐसा करते वक्त वे भूल जाती हैं कि इस देश का भले ही अब तक कोई मुस्लिम प्रधानमंत्री न बन पाया हो, लेकिन देश ने तीन-तीन ऐसे व्यक्तियों को राष्ट्रपति बनाया है, जो मुस्लिम थे। इस सूची में पहला नाम जहां डॉक्टर जाकिर हुसैन का है, वहीं दूसरा नाम फखरूद्दीन अली अहमद का है। तीसरा नाम डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का है। इसी तरह एम हिदायतुल्ला और हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति रह चुके हैं।

वैसे हिंदू समाज तो सिख पंथ को अपने से अलग या अल्पसंख्यक नहीं मानता, लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के तहत यह समाज भी अल्पसंख्यक है। ब्रिटिश बहुलतावाद की बलैया लेने वाले भूल गए हैं कि देश के दस साल तक प्रधानमंत्री रहे डॉक्टर मनमोहन सिंह भी अल्पसंख्यक समुदाय के थे।

एम हिदायतुल्ला सर्वोच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश भी रहे। इसके बाद एम हमीदुल्ला बेग और अज़ीज़ मुशब्बर अहमदी भी देश के मुख्य न्यायाधीश रहे। कितने ही राज्यों के मुस्लिम मुख्यमंत्री रहे, जिनमें राजस्थान के बरकतुल्लाह खान, महाराष्ट्र के ए आर अंतुले, बिहार के अबूल गफूर बेहद मशहूर रहे हैं।

सेकुलरिज्म और बहुलतावाद की आड़ में ऋषि सुनक के बहाने सनातन सोच और भारतीय गर्वबोध पर सवाल उठाने वाले सोशल मीडिया के सहारे भले ही कुछ वक्त के लिए वैचारिक आसमान में कुहासा भर दें, लेकिन सोशल मीडिया के सहारे सही सूचनाएं भी अब आम लोगों तक पहुंच रही हैं, जो अंतत: इस वैचारिक कुहासे को साफ कर रही हैं। जैसे ऋषि सुनक के बारे में गोमांस भक्षण करनेवाली अफवाह थोड़े ही समय में सोशल मीडिया पर ढेर हो गयी।

यह भी पढ़ें: Rishi Sunak: ब्रिटेन को आर्थिक संकट से उबारने की उम्मीद हैं ऋषि सुनक

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
Secular obsession with beef conspiracy to call UK PM Rishi Sunak
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