Bollywood: अपना एजेंडा क्यों नहीं छोड़ रहे हिन्दू विरोधी फिल्मकार?
Bollywood: जब से केन्द्र में मोदी सरकार आई है, राजनीति और मीडिया समेत फिल्मी दुनिया में भी मानो कोहराम मचा हुआ है। कभी अनुराग कश्यप, कभी जावेद अख्तर, कभी नसीरुद्दीन शाह तो कभी शबाना आजमी, जैसे तमाम लोग किसी ना किसी मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरते आए हैं।
बात पहलाज निहलानी और गजेन्द्र चौहान को हटाने की मांग तक सीमित रहती तो भी मामला फिल्मी लगता, लेकिन तमाम राजनीतिक मुद्दों पर जब फिल्मी दुनिया के लोग सरकार के खिलाफ आने लगे तो फिर लगने लगा कि ये एजेंडा है।
ऐसे में सरकार की तरफ से भी लोगों की भृकुटियां तनीं, अनुपम खेर जैसे लोग फिल्म इंडस्ट्री में से सरकार के साथ खड़े हुए। तमाम ऑनलाइन बहिष्कार अभियान भी चले। सरकार विरोधी लोगों ने आरोप लगाया कि सरकार उनकी आवाज को दबा रही है, लेकिन आज भी फिल्मों में जो कुछ दिखाया जा रहा है, उससे तो फिल्मकारों की घृणित विचारधारा स्पष्ट हो रही है।
पिछले एक साल में भारत की सभी भाषाओं की फिल्में देखें तो आपको पता चलेगा कि सरकार का कोई फिल्म उद्योग पर कोई दवाब नहीं है और अगर जनता भी कोशिश कर रही है, तो उसमें कामयाब नहीं है।
आदिल हुसैन, मंदिरा बेदी आदि की एक मूवी 2022 की है, टाइटल है 'मैक्स, मिनी और मियोवाजाकी'। विदेश के कई फिल्म समारोहों में इसे ले जाया गया है। इसमें आदिल हुसैन का किरदार एक राइट विंगर का है, जो मद्रास आईआईटी पास आउट है, लेकिन दिन भर व्हाट्सएप पर हिंदुत्व वाले ग्रुप्स में व्यस्त रहता है। उसके पिता एक क्लासिकल सिंगर हैं, लेकिन रहते ओल्ड एज होम में हैं। अपने टी-टोटलर बेटे के बजाय उनकी साथ में बैठकर शराब पीने वाले नाती के साथ बनती है।
राइटविंगर का किरदार निभानेवाले आदिल की अपने बेटे से भी नहीं बनती, जो अपनी नानी के घर में एक मुस्लिम लड़की के साथ लिव इन में रहता है, ये बात राइविंगर बाप को पसंद नहीं। आदिल एक हीलर मंदिरा बेदी से अपने इलाज के लिए सिटिंग भी करता रहता है।
पूरी मूवी एक दक्षिणपंथी को मानसिक बीमार चित्रित करती है, जो बाद में खुद को बिल्कुल बदल देता है और व्हाट्स एप ग्रुप्स से भी बाहर हो जाता है।
ये मूवी आपको बताती है कि दक्षिणपंथियों को उनके घरवाले भी पसंद नहीं करते। उन्हें खुद को बदलना चाहिए। एक सीन में तो टिंडर ऐप वाली लड़की डेटिंग पर हिंदुत्व की बात करती है और लड़के का मूड खराब हो जाता है। एक अच्छी खासी मूवी में हिंदू विरोधी एजेंडा डालने की डायरेक्टर की मंशा एकदम स्पष्ट नजर आती है।
इसी तरह अक्टूबर 2021 में रिलीज हुई चिरंजीवी के भांजे साई तेज की तेलुगु फिल्म 'रिपब्लिक' में बार बार इस तरह के डायलॉग्स हैं, जो मोदी सरकार को निशाने पर रखते हैं। जैसे- 'आप तो मुझे अर्बन नक्सल बताकर, देशद्रोही साबित कर दोगे और जेल में डाल दोगे'।
कई सीन में राज्य सरकारों पर केन्द्र सरकार की कथित दादागिरी पर निशाना साधा गया है। यहां तक कि उन्नाव कांड के आरोपी विधायक सेंगर को लेकर योगी सरकार को भी निशाने पर लिया गया है। इस विधायक के ही रेप कांड पर एक पूरी फिल्म 'सिया' भी इसी साल बनकर तैयार हुई है।
सालों से भारतीय फिल्म और थिएटर की दुनिया में इप्टा के जरिए वामपंथी गैंग हावी रहा है। उत्पत्त दत्त से लेकर शबाना आज़मी तक, वो लगातार फिल्म जगत पर हावी रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री पर उनके खौफ की बानगी एक तथ्य से समझ सकते हैं।
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अमरीश पुरी जैसा महान अभिनेता भी रिटायरमेंट की उम्र पर आकर वाजपेयी सरकार आने पर ये हिम्मत जुटाकर बता पाता है कि वो अपनी युवावस्था में दिल्ली में आरएसएस की एक शाखा में मुख्य शिक्षक रहे थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र किया है। ये भी लिखा है कि संघ की वजह से ही सारी जिंदगी मैं अनुशासित रहा और कभी सेट पर देरी से नहीं गया। अनुपम खेर, मधुर भंडारकर जैसे लोग तो अब सामने आए हैं।
बांग्ला भाषा की फिल्मों में तो वामपंथी होना एक आदत की तरह है। उनकी हर दूसरी फिल्म में आप मूवी के किसी ना किसी पात्र को ये कहते सुन सकते हैं कि मुझसे मत उलझना पार्टी का आदमी हूं, या परसों पार्टी दफ्तर गया था, लेकिन दादा नहीं मिले। इस साल भी प्रसेनजीत की एक मूवी 'शेषपता' में एक व्यक्ति सोसायटी में यही कहकर धमकाता है कि 'पार्टी का आदमी हूं।'
एक और बंगाली फिल्म इस साल आई है 'आकाश ओंगशोतो मेघला'। इस मूवी का हीरो लेनिन का भक्त है। लेफ्ट पार्टी का सदस्य है। जिस फैक्ट्री में काम करता है, उसमें लॉकआउट होने के बाद पार्टी के दफ्तर के सामने ही चाय पकौड़े की दुकान लगा लेता है। बंगाली में ही महाश्वेता देवी की जिंदगी पर मूवी रिलीज हुई है 'महानंदा'। चूंकि महाश्वेता देवी ने शुरूआत में लेफ्ट का ही लाल झंडा उठा रखा था, बाद में उससे दूरी बनाई, सो वो सब इस मूवी में दिखाया गया है।
हालांकि 'विक्रम वेधा' के हिंदी संस्करण में जिस तरह मुख्य खलनायक का नाम परशुराम दिखाया गया था, उसी तरह तेलुगु मूवी 'मिशन इम्पॉसिबल' में तो मुख्य खलनायक का नाम सीधे राम ही रख दिया गया है। पूरा नाम है राम शेट्टी।
माधुरी दीक्षित प्रोडक्शंस की मराठी मूवी 'पंचक' को आमिर खान की 'पीके' की तर्ज पर बनाया गया है। इस मूवी में घुमा फिराकर एक तरह से भारतीय काल गणना और पंचांग व्यवस्था का ही मजाक बनाया गया है।
रंजीत की एक तमिल मूवी इसी साल अगस्त में रिलीज हुई है, 'नाटचतिरम नगरगिराधु'। ये मूवी एक थिएटर ग्रुप को लेकर बनी है और मोहब्बत, जातिवाद और ऑनर किलिंग के ऊपर फोकस करती है। अच्छी खासी मूवी में क्लाइमेक्स एक ऐसे व्यक्ति को लेकर डिजाइन किया गया है, जिसमें वो एक गदा लेकर उनके पूरे शो को तहस नहस कर देता है।
ऐसा ही एक सीन रजनीकांत की मूवी 'काला' में भी था, जिसमें एक गुंडा गदा लेकर बस्ती में आग लगा देता है। जान पड़ता है कि फिल्मों में ऐसे सीन जानबूझकर डाले जाते हैं ताकि देखनेवाले के मन में गदा धारण करने वाला उत्पाती नजर आये। मानों लंका में हनुमान ने जो कुछ किया वो उत्पात ही था।
ये सब अतीत की फिल्में नहीं हैं बल्कि मोदी सरकार में बन रही हैं। हालांकि ये तो गिनती के उदाहरण हैं, तमाम मूवी में जिसको जो दिखाना है, दिखा रहा है। तभी तो 'विक्रम वेधा' जैसी मूवी का एक सीन आया तो लोग चौंक गए, जिसमें ऋतिक रोशन अपने एक गुंडे से कह रहे हैं कि तुझे पता है शंकर भगवान के गले का सांप उन्हें छोड़कर चला जाए तो उनका कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि उनके किसी काम का नहीं है, लेकिन उस सांप को अकेला देखकर चील या बाज उठा ले जाएगा।
इस मूवी के लेखक को शायद ये पता नहीं होगा महादेव के गले में कोई आम सांप नहीं बल्कि नागराज वासुकी हैं, जिनको लेकर अमृत मंथन किया गया था। कृष्ण को लेकर जब बाढ़ में उफनती यमुना को वासुदेव पार कर रहे थे, तो भारी बारिश में उन्हीं वासुकी ने अपने फन से छाते का काम किया था।
लगातार ऐसी धर्म विरोधी फिल्मों के बनने के बाद भी सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा निकालने के अलावा हिंदुओं के पास कोई और विकल्प नहीं है जबकि मोदी सरकार में भी हिन्दू विरोधी फिल्मकार धड़ल्ले से अपना एजेंडा चला रहे हैं।
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