रीमेक और चोरी की कहानियों पर चलता बॉलीवुड
हाल में आई कई फिल्मों ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पर सवालिया निशान लगा दिए हैं कि क्या बॉलीवुड के पास अपनी कोई कहानी नहीं बची है जो वह चोरी की कहानियों और रीमेक पर निर्भर हो गया है? आमिर खान की 'लाल सिंह चड्ढा' और अक्षय कुमार की 'कठपुतली' के निर्माताओं ने माना कि ये हिन्दी रीमेक हैं, लेकिन रणबीर कपूर की 'ब्रह्मास्त्र' हो या प्रकाश झा की 'मट्टो की साइकिल', इनकी कहानियां भी नयी या ओरिजिनल नहीं हैं।
यहां तक कि आप 'रॉकेट्री' और 'रक्षा कवच ओम' देखेंगे तो पाएंगे कि मूल आइडिया वही है, एक साइंटिस्ट का प्रोजेक्ट रोकने के लिए उसको गद्दार साबित कर दिया जाना, क्लाइमेक्स जरूर अलग है। इतना ही नहीं अक्षय कुमार की 'कठपुतली' से पहले इसी साल इस तरह के सीरियल किलर पर दो और मूवीज आ चुकी हैं।
प्रकाश झा की "साइकिल" और व्यूटोरिया डी सिका की बाइसकिल थीव्स
पहले यह जानते हैं कि हाल में आई फिल्मों में आखिर दिक्कत क्या है? निर्देशक प्रकाश झा 16 सितम्बर को रिलीज हुई फिल्म "मट्टो की साइकिल" में हीरो बनकर आए हैं। जो लोग विश्व सिनेमा में दिलचस्पी रखते हैं, उनको इटालियन फिल्मकार व्यूटोरिया डी सिका की मूवी "बाइसकिल थीव्स" (1948) याद होगी। उसकी कहानी का मूल प्लॉट इस फिल्म से काफी मिलता जुलता है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद उन्हीं लोगों को जॉब मिल रही थी, जिनके पास साइकिल थी। लेकिन हीरो जिसने बमुश्किल साइकिल खरीदी थी, तब परेशान हो जाता है जब उसकी साइकिल चोरी चली जाती है, यानी साइकिल नहीं तो जॉब नहीं।
'मट्टो की साइकिल' की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। उसका घर चलाने में उसकी साइकिल का बड़ा हाथ है, चूंकि गांव काफी इंटीरियर में है, शहर से कई किलोमीटर दूर है, इसलिए मजदूरी के लिए शहर आने जाने में समय से पहुंचाने के लिए साइकिल के अलावा और कोई बेहतर साधन नहीं है। एक दिन अचानक मट्टो की साइकिल पर ट्रैक्टर चढ़ जाता है। मट्टो का दोस्त कल्लू मैकेनिक उसकी मदद करता है, कुछ पैसा ठेकेदार से और कुछ साहूकार से ब्याज पर लेकर नई साइकिल खरीदता है, पूरा परिवार बेहद खुश है। अचानक से रात के अंधेरे में कई नकाबपोश लड़के रास्ते में उससे साइकिल छीन लेते हैं।
तो क्या प्रकाश झा को "बाइसकिल थीव्स" के बारे में नहीं पता था, जबकि ये मूवी विश्व सिनेमा की धरोहर मानी जाती है। हालांकि क्लाइमेक्स अलग है, लेकिन मूल आइडिया वही है। हालांकि कम डायलॉग्स के साथ केवल हाव भाव के जरिए प्रकाश झा की एक कंस्ट्रक्शन मजदूर के रूप में एक्टिंग इतनी सहज है कि लगता ही नहीं ये प्रकाश झा जैसे नामी फिल्मकार हैं।
हॉलीवुड और बॉलीवुड का घिसा पिटा रीमेक ब्रह्मास्त्र
ब्रह्मास्त्र में शिवा (रणबीर कपूर) के पिता देव की शिष्या अंधेरे की रानी जुनून (मौनी रॉय) तीन टुकड़ों में बंटे ब्रह्मास्त्र के टुकड़े ढूंढ रही है। ब्रह्मास्त्र को बचाने के काम में जुटी है साइंटिस्ट्स की सीक्रेट सोसाइटी ब्रह्मांश, जिसके मुखिया हैं रघु गुरुदेव यानी अमिताभ बच्चन। जिनमें से 2 टुकड़े साइंटिस्ट मोहन भार्गव (शाहरुख खान) और आर्टिस्ट अनीश (नागार्जुन) के पास है।
ये सही है कि इस फिल्म में काफी उच्च स्तर के बेहतरीन स्पेशल इफैक्ट्स का इस्तेमाल हुआ है, ऐसे में लागत काफी बढ़ गई होगी, लेकिन मूल कहानी या आइडिया देखा जाए तो 'ब्रह्मास्त्र' का आइडिया भी नया नहीं है। हॉलीवुड की कई फिल्में ऐसी ही कहानियों पर बनी है। कुछ फिल्मों की सीरिज है। लेकिन हॉलीवुड से निकलकर बॉलीवुड में आयें तो अगर आपने 2006 में आई विवेक ओबेरॉय और सनी देओल की मूवी नक्शा देखी हो तो आपको कहानी कुछ कुछ उसी लाइन पर लगेगी। नक्शा में दोनों हीरो महाभारत कालीन योद्धा कर्ण के कवच और कुंडल ढूढने निकलते हैं। ज्यादा दूर नहीं जाएं तो इसी साल हिंदी मे भी रिलीज हुई तेलुगू मूवी 'कार्तिकेय 2' की कहानी बिलकुल ब्रह्मास्त्र से मिलती जुलती है।
निखिल सिद्धार्थ स्टारर 'कार्तिकेय टू' का लीड किरदार भी अनोखी शक्तियों वाला है। जैसे रणबीर कपूर पर आग असर नहीं करती, वैसे ही कार्तिकेय सांपों को सम्मोहन मे बांध सकता है। कार्तिकेय 2 में भी ब्रह्मास्त्र की तरह वह भगवान श्रीकृष्ण का एक कड़ा ढूंढने निकलता है, जो पहाड़ों में कही छुपा है। यानी कोई कर्ण के कवच कुंडल ढूंढ रहा है, कोई श्रीकृष्ण का कड़ा तो कोई ब्रह्मास्त्र के टुकड़े। कहानी में थोड़ा बहुत फेरबदल करके नई फिल्म बन जाती है।
नकल वाली कठपुतली
अक्षय कुमार की 'कठपुतली' सीरियर किलर थीम पर बनी है। इसी साल रिलीज 'फॉरेंसिंक' और 'हिट: द फर्स्ट केस' जिसने देखी होगी, उसे लगेगा एक ही कहानी के अलग अलग संस्करण देख रहा है। इनमें से फॉरेंसिंक तो बिलकुल ही अक्षय कुमार की मूवी 'कठपुतली' से मिलती जुलती है।
हालांकि फॉरेंसिक के बारे में दावा किया गया था कि इसी नाम से 2020 में मलयालम में बनी फिल्म का रीमेक है और कठपुतली को 2018 की तमिल मूवी 'रत्सासन' का रीमेक बताया गया था। ये बिल्कुल मुमकिन है कि रत्सासन से पहले मलयालम में फॉरेंसिक बनी हो, फिर हिंदी में फॉरेंसिक और फिर अब कठपुतली बनी है। अक्षय को शायद ये बात बाद में पता चली हो, तभी चुपचाप बिना ज्यादा प्रमोशन के कठपुतली को ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी हॉट स्टार पर रिलीज कर दिया गया।
बॉलीवुड में समस्या कहां है?
ऐसे में सवाल उठता है कि रिमेक और चोरी की कहानियों से चलते बॉलीवुड में समस्या कहां है? दिक्कत है लेखकों का हक मारने वाली हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पुरोधाओं की आदत। स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन (SWA) जैसी संस्थाओं के जरिए लेखकों के अधिकार सुरक्षित रखने की कोशिशें शुरू हुई हैं, लेकिन फिर भी हरकतें रुकी नहीं है। चेतन भगत का विधु विनोद चोपड़ा कैम्प से तनातनी होना, नेताजी बोस पर बनी वेब सीरीज को लेकर एकता कपूर कैम्प से मशहूर लेखक अनुज धर की अंदरखाने नाराजगी लगातार चर्चा में रही है।
एक वजह ये भी है कि फिल्मी घरानों के स्थापित लोगों को खुद पर लेखक का ठप्पा लगवाने में काफी गर्व की अनुभूति होती है। विदेशी इंस्टीट्यूट्स से फिल्म निर्माण में कोर्स कर आए ये लोग किसी भी आइडिया में कई तरह के मसाले डालकर फिल्में बनाते हैं, और लोगों का मानना है कि बिना व्यवहारिक अनुभव के, बिना भारतीय समाज के अध्ययन के कहानी लिखना और उसे फॉर्मूले डालकर फिल्म बनाना ही वो वजह है कि दक्षिण भारत के फिल्मकार आगे निकलते जा रहे हैं। आप किसी भी फिल्मी खानदान के निर्देशक के बारे में पढ़ लीजिए, कई फिल्मों के लेखक के तौर पर उसका ही नाम होगा।
कई बार प्रयोग की हद तक जाने से भी फिल्में फ्लॉप होती है, जैसे आजादी की लड़ाई पर बनी दो फिल्मों को ले लीजिए जो यशराज फिल्म्स ने बनाया थी। आमिर-अमिताभ की "ठग्स ऑफ हिंदोस्तान" और रणबीर कपूर की "शमशेरा"। दोनों ही फिल्मों में क्रांति फिल्म की तरह ना भारत माता की भक्ति थी और ना देशभक्ति का कोई गीत। जाहिर है दर्शकों को ये फिल्में पसंद नहीं आई और दोनों ही फिल्में बुरी तरह पिट गयीं। लेकिन अब कॉपीराइट मामलों को लेकर अदालतें सख्त हो रही हैं, ऐसे में उम्मीद करनी चाहिए बॉलीवुड को चोरी की कहानियों और रिमेक से बाहर आने की जरूरत महसूस होगी। लेकिन इतने से ही बात नहीं बनेगी।
बॉलीवुड को भारतीय जन मानस से जुड़ना होगा जो कि अभी पूरी तरह से टूट गया है। इसी साल रांची कोर्ट ने करण जौहर की जुग जुग जियो की स्क्रीनिंग देखकर ही माना कि कॉपी करने का आरोप गलत है, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने विक्रमजीत सिंह भुल्लर की याचिका पर यशराज फिल्म्स से कहा कि ओटीटी पर रिलीज से पहले 1 करोड़ रुपए जमा करें, क्योंकि भुल्लर की साहित्यिक रचना 'कभी ना छड्डें खेत' से 'शमशेरा' की कहानी को कॉपी करने का आरोप था।
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