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Pakistan Crisis: पोलिटिकल गिरगिट बनाम फौज की डेमोक्रेसी

इमरान खान पोलिटिकल गिरगिट हैं। रंग बगलने में इतने माहिर कि रंगमंच का कलाकार भी पानी मांगने लगे। फिलहाल पाकिस्तान में फौज और इमरान खान आमने सामने हैं। देखना ये है कि कौन किसको पीछे धकेलकर आगे बढ़ता है।

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Pakistan Crisis imran khan politics vs Democracy of army

Pakistan Crisis: अगर किसी ने हॉलीवुड की 'रेसिडेन्ट ईविल' मूवी सीरीज की कोई भी मूवी देखी हो तो उसे समझते देर नहीं लगेगी कि फिल्म के पर्दे से बाहर पाकिस्तान वास्तविक अर्थों में जॉम्बीलैण्ड बन चुका है। वो क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं, उन्हें नहीं पता लेकिन कर रहे हैं। मानों पाकिस्तान में इस समय चारों ओर बिना सिर वाले धड़ घूम रहे हैं।

क्या किसी लोकतांत्रिक देश में ऐसा होता है कि सुप्रीम कोर्ट वहां के चुनाव आयोग को आदेश दे कि आप फलां जगह पर चुनाव करवाइये। वह भी स्वत: संज्ञान लेकर। कोई व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट नहीं गया कि हुजूर फलां राज्य में चुनाव करवाने के लिए सरकार को आदेश दीजिए। दुनिया के किसी देश में खुद ब खुद सुप्रीम कोर्ट ऐसी पहल नहीं किया करती। वो कानून की समीक्षक होती हैं, कानून की निर्माता नहीं। लेकिन अगर मामला पाकिस्तान जैसे जम्हूरी (जमूरा भी पढ सकते हैं) मुल्क का हो तो कुछ भी हो सकता है।

पाकिस्तान के चीफ जस्टिस उमर अता बांडियाल को चीफ जस्टिस इमरान खान की सरकार ने बनाया था। उनका परिवार इमरान खान की पार्टी में सक्रिय है। ऐसे में अगर इमरान खान पंजाब में चुनाव की मांग कर रहे थे तो सुप्रीम कोर्ट में बैठे बांडियाल ने अपना फर्ज समझा कि वो इमरान खान की मदद करें। अत: उन्होंने अपने मन से पाकिस्तानी चुनाव आयोग को आदेश दे दिया कि 15 मई तक पंजाब में चुनाव संपन्न करवायें और शरीफ सरकार से कहा कि पैसा जारी करें।

15 मई की तारीख करीब आती उससे पहले 9 मई आ गयी। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेन्ट (पीडीएम) एलांयस के तहत चलने वाली सरकार ने भ्रष्टाचार के मामले में इमरान की घेरेबंदी शुरु कर दी। 9 मई को जब इमरान खान जमानत के लिए इस्लाबाद हाईकोर्ट पहुंचे तो वहीं से पाकिस्तानी रेन्जर्स ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इमरान को इसका अंदेशा पहले से था इसलिए कोर्ट आने से पहले वीडियो मैसेज रिलीज करके आये थे कि अगर मुझे गिरफ्तार किया जाता है तो आपको सड़कों पर उतरना है।

9 मई को ही पंजाब और खैबर के इलाके में विरोध प्रदर्शन शुरु हो गये। तोड़फोड़, आगजनी, दंगे में ट्रेन्ड सच्चे मोमिन के लिए ये सब करना वैसे भी कौन सा बड़ा काम है? पाकिस्तान में आये दिन ये सब होता ही रहता है। लेकिन इस बार निशाने पर पाक फौज भी आ गयी। हालात को संभालने के लिए तत्काल 10 मई को फौज को उतारा गया। इधर इमरान खान की रहम पर पाकिस्तान के चीफ जस्टिस बने उमर अता बांडियाल ने एक बार फिर अपना एहसान चुकाते हुए इमरान खान की गिरफ्तारी को गैर कानूनी करार दे दिया।

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इस तरह इमरान बनाम फौज का जो खेल अभी शुरु ही हुआ था, उसमें इमरान खान ने बांडियाल की मदद से 1-0 से बढ़त ले ली। लेकिन बाकी पाकिस्तान भी इतनी जल्दी हार तो नहीं माननेवाला था। फौज और पीडीएम इस समय एक पलड़े पर हैं। वही फौज जिसके ऊपर पांच छह साल पहले आरोप था कि उसने चुनाव में धांधली करके इमरान खान को प्रधानमंत्री बनवा दिया था, अब इमरान खान के ही खिलाफ है। तमाशा तो ये कि जो फजलुर्रहमान अपनी मजहबी फौज लेकर बीते चार पांच साल से असली फौज के खिलाफ रैलियां कर रहे थे, आज पाकिस्तानी फौज के साथ खड़े हैं। इमरान खान को हटाने के लिए फौज की मदद से जिस पीडीएम का गठन किया गया उसके चेयरमैन यही मौलाना फजलुर्रहमान ही हैं।

वैसे तो फजलुर्रहमान की सियासी हैसियत बहुत बड़ी नहीं है और नेशनल असेम्बली में उनके 14 मेम्बर ही हैं लेकिन उनके पास इतनी बड़ी ट्रेन्ड मजहबी फौज जरूर है जो एक आदेश पर काला सफेद झंडा लेकर कहीं भी सड़क जाम कर सकती है। जब बांडियाल ने इमरान खान को रिहा कर दिया तो इन्हीं की मजहबी फौज 15 मई को सुप्रीम कोर्ट का घेराव करने पहुंच गयी थी। फिलहाल वो पॉलिटिक्स में फौज के दखल वाली बात भूल गये हैं और अपने इकलौते राजनीतिक दुश्मन इमरान खान को निपटाने के लिए किसी के साथ भी जाने को तैयार हैं।

फौज जिसके ऊपर 9 मई को रावलपिंडी से लेकर लाहौर तक इमरान खान के पीटीआई कार्यकर्ताओं ने 'हमला' कर दिया था, अब बदला लेने का वक्त उसका था। पीटीआई वर्करों ने फौजी कमांडरों के घरों पर तोड़फोड़ ही नहीं की बल्कि उनके फ्रीज में रखे पिज्जा, कोका कोला, कीमा गोश्त तक चुरा ले गये थे। पाकिस्तानी फौज के लिए ये अल कादिर ट्रस्ट के जरिए 50 अरब रूपये के गबन से भी बड़ा अपराध था जिसकी सजा फौज को सुनानी ही थी।

फौज ने अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए 16 मई से पीटीआई वर्करों पर क्रैकडाउन शुरु कर दिया। पाकिस्तानी फौज के पास अपना कानून है और अपनी कचहरी भी। उनके विशेष कानूनों में एक कानून ये भी है कि वो आम नागरिक पर भी अपनी ओर से केस दर्ज कर सकती है। कहा ये जाता है कि इस कानून को 2019 में खत्म कर दिया गया है लेकिन इस समय पाकिस्तान में कानून को पूछ कौन रहा है? यहां भी फौज ने उसी 'विशेषाधिकार' का प्रयोग कर अपने ऊपर हुए हमले के खिलाफ खुद ही एफआईआर लिखी और खुद ही कार्रवाई शुरु कर दी। मतलब अब एक बार फिर इमरान खान और उनके दंगाई समर्थकों की गिरफ्तारी की जा सकती है, और इस बार सुप्रीम कोर्ट भी कहीं आड़े नहीं आयेगा।

17 मई की रात इमरान खान और उनके समर्थकों को 24 घण्टे का अल्टीमेटम दिया गया कि या तो वह अपने आपको फौज के हवाले कर दे या फिर नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहें। अब क्योंकि सैन्य कार्रवाई के लिए पर्याप्त कारण होने चाहिए इसलिए फौज की ओर से ये दावा भी किया गया कि लाहौर के जमान पार्क वाले घर में इमरान खान ने 30 से 40 आकंकवादी छिपा रखे हैं। हालांकि 24 घण्टे की समयसीमा बीत जाने के बाद भी इमरान खान के जमान पार्क वाले घर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई लेकिन आगे भी नहीं होगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

यहां हम सबको यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान की असली मालिक फौज इसलिए नहीं है कि फौज बहुत ताकतवर है। बल्कि फौज पाकिस्तान की असली मालिक इसलिए है क्योंकि वहां के लोगों की आस्था जितनी अल्लाह में है उससे कम फौज में नहीं है। वो किसी देश के सैनिक भर नहीं है जो बैरकों में बैठकर युद्ध होने की प्रतीक्षा करें। वो इस्लामिक मुल्क की आन बान शान हैं जिन्हें इस्लाम के नाम पर बने मुल्क और उसमें रहने वाले मुसलमान, दोनों की हिफाजत करनी है। इसलिए अगर पाकिस्तान में कोई फौज से टकरायेगा तो अवाम उससे टकराने वाले का साथ छोड़कर फौज के साथ चली ही जाएगी।

देर से ही सही इमरान खान को यह बात समझ में आ गयी है। 18 मई को उनके कार्यकाल में नियुक्त किये गये सदर ए पाकिस्तान आरिफ अल्वी ने फौज की ओर समझौता भरा संकेत भेजा कि फौज के जनरल की पोस्ट पर आसिफ मुनीर की नियुक्ति होने पर इमरान खान को कोई आपत्ति नहीं है। देर शाम इमरान खान ने भी हथियार डालते हुए कह दिया कि "मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि वो लोग (फौज के लोग) मुझसे इतना गुस्सा क्यों हैं? मेरी लड़ाई उनसे नहीं है।"

यह एक तरह का सफेद झूठ वाला कबूतर है जो इमरान खान की ओर से पाकिस्तानी फौज को भेजा गया है। वो जानते हैं कि अगर फौज के कानून में फंसे तो फिर उनको बचाने वाला कोई नहीं है। न सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बांडियाल कुछ कर पायेंगे और न ही सदर ए रियासत आरिफ अल्वी। फिर भी इमरान खान से ये उम्मीद करना कि इतनी जल्दी वो अपने आप को रोक लेंगे, नादानी ही होगी। एक बार मामला शांत हुआ तो वो फिर कोई चाल चलेंगे। उन्हें पाकिस्तान की डेमोक्रेसी का पोस्टर ब्वाय बनना है और उसके लिए वो कोई भी कुर्बानी देते हुए दिखना चाहेंगे।

ऐसे में फौज आंख मूंदकर इमरान खान के सफेद झूठ वाले कबूतर पर भरोसा कर लेगी ऐसा होने से रहा। पाकिस्तान में इमरान खान के गिरगिट कैरेक्टर से हर कोई वाकिफ है। जो व्यक्ति एक ही दिन में पाकिस्तान के टुकड़े होने और फौज से पैच अप करने वाली दोनों बातें कर सकता हो उस पर फौज के लोग इतनी जल्दी तो भरोसा नहीं करेंगे। इस्लाम में ये मान्यता है कि गिरगिट को मारने से शबाब मिलता है। तो फिर फौज एक पोलिटिकल गिरगिट के इतने करीब पहुंचकर जिसे उसने खुद जन्म दिया हो, ऐसे ही आजाद छोड़कर आगे बढ़ जाएगी, लगता नहीं है।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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Pakistan Crisis imran khan politics vs Democracy of army
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