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Maha Political Twist: क्या अब राजनीति की परिभाषा बदल गई ?

By Dr Neelam Mahendra
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नई दिल्ली। यह बात सही है कि राजनीति में अप्रत्याशित और असंभव कुछ नहीं होता, स्थाई दोस्ती या दुश्मनी जैसी कोई चीज़ नहीं होता हां, लेकिन विचारधारा या फिर पार्टी लाइन जैसी कोई चीज़ जरूर हुआ करती थी। कुछ समय पहले तक किसी दल या नेता की राजनैतिक धरोहर जनता की नज़र में उसकी वो छवि होती थी जो उस पार्टी की विचारधारा से बनती थी लेकिन आज की राजनीति में ऐसी बातों के लिए कोई स्थान नहीं है ।

Maha Political Twist: क्या अब राजनीति की परिभाषा बदल गई ?

आज राजनीति में स्वार्थ, सत्ता का मोह, पद का लालच, पुत्र मोह, मौका परस्ती जैसे गुणों के जरिए सत्ता प्राप्ति ही अंतिम मंजिल बन गए हैं। शायद इसीलिए अपने लक्ष्य को हासिल करने की जल्दबाजी में ये राजनैतिक दल अपनी विचारधारा, छवि और नैतिकता तक से समझौता करने से नहीं हिचकिचाते।

पल-पल बदल रहा है महाराष्ट्र का घटनाक्रम

वैसे तो चुनाव परिणाम आने के बाद से ही लगातार महाराष्ट्र के घटनाक्रम केवल महाराष्ट्र की जनता ही नहीं पूरे देश के लोगों को निराश कर रहे थे। लेकिन जब 23 तारीख के अखबार कुछ कह रहे थे और खबरिया चैनल कुछ और, तो देश एक बार फिर राजनीति में अनिश्चितता का गवाह बना। जितना अचंभा एक आम आदमी को हुआ उससे बड़ा सदमा शिवसेना एन सी पी और कांग्रेस को लगा। इसे क्या कहा जाए कि एन डी ए में एक दूसरे के सहयोगी दल भाजपा और शिवसेना "देशहित" में चुनाव पूर्व गठबंधन बनाकर जनता के सामने जाते तो हैं लेकिन चुनाव परिणामों के बाद "स्वार्थ हित" में केवल गठबंधन ही नहीं तोड़ते बल्कि अपने 30 साल पुराने राजनैतिक संबंध को भी तिलांजलि दे देते हैं। शिवसेना के लिए उनकी राजनैतिक महत्वकांक्षा से उपजी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता "स्वाभिमान की लड़ाई" बन जाती है तो भाजपा के लिए एक मौका। क्योंकि मौजूदा समय में देखा जाए तो राष्ट्रीय स्तर पर दो ही पार्टियाँ हैं भाजपा और कांग्रेस जिसमें से कांग्रेस आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। तो ले दे कर राज्यों का चुनावी गणित टिक जाता है क्षेत्रीय दलों पर जो अल्पमत में होने के बावजूद क्षेत्र की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में आ जाते हैं। लेकिन आज का परिदृश्य यह है कि ज्यादातर क्षेत्रीय दलो के लिए उनकी अपनी वंशवाद की बेल ही उनके लिए अजगर साबित हुई है जिसकी जकड़न खुद उनके दल को ही निगल गई। राजनैतिक दूरदर्शिता और योग्यता से अधिक तरजीह परिवारवाद को देने का खामियाजा बिहार में लालू , उत्तर प्रदेश में मुलायम कर्नाटक के देवेगौड़ा और अब महाराष्ट्र में शिवसेना भुगत रही है।

राजनीति में होते जा रहे हैं नैतिक पतन

लेकिन आज बात किसी दल के अस्तित्व या फिर उसकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की नहीं है। बात आज नैतिकता की है, आदर्शों की है, राजनीति में होते जा रहे नैतिक पतन की है, राजनैतिक दलों की निर्लज्जता की है। महाराष्ट्र में जो सत्तालोलुपता का खेल यह देश यह समाज यह लोकतंत्र देख रहा है क्या इससे हम शर्मिंदगी महसूस करते हैं? चुनाव जनता और देश की सेवा के नाम पर लड़े जाते हैं लेकिन बात ढाई ढाई साल के लिए सत्ता की बागडोर अपने हाथ में रखने की जिद पर अटक जाती है। आज की राजनीति में विभिन्न राजनैतिक दलों के बीच जो रिश्ते चुनाव से पहले होते हैं चुनाव परिणामों के साथ इनके बीच के समीकरणों को बदलते देर नही लगती। देश समझ भी नहीं पाता कब बड़े और छोटे भाई एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं।

राजनैतिक स्वार्थ के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नेताओं से हाथ मिला रहे हैं लोग

आज भले ही सभी दल एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं लेकिन अधिकार तो किसी को भी नहीं है। वो कांग्रेस जो "सेक्युलर" होने का दम तो भरती है लेकिन सत्ता के लिए कट्टर हिंदूवादी छवि वाली शिवसेना के साथ हाथ मिलाने से नहीं हिचकती। वो शिवसेना जो राम के नाम पर मरने मारने को तैयार है वो उस कांग्रेस से हाथ मिला लेती है जो राम के अस्तित्व को ही काल्पनिक बताती रही है। वो पवार जो कभी सोनिया गांधी के विदेशी मूल को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस से अलग हुए और आज उन्हीं सोनिया के साथ मुलाकातों के दौर कर रहे हैं या वो भाजपा जो आम आदमी से निस्वार्थ भाव से देश हित में अपना योगदान देने के लिए कहती है और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करती है अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नेताओं से हाथ मिला लेती है। क्या यह महज एक संयोग है कि भाजपा अपने चुनावी भाषणों में अजित पवार को जेल की चक्की पिसवाने की बात करती रही लेकिन शनिवार को महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनने के दो दिन बाद ही सोमवार को महाराष्ट्र भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो 2013 में दर्ज 71000 करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले से जुड़े नौ मामले यह कह कर बन्द कर देता है कि इन मामलों का अजित पवार से कोई संबंध नहीं है ?

मूल्यों और सिद्धांतों की केवल बातें

आज गांधी की विरासत को देश का हर राजनैतिक दल संभालना चाहता है उनके मूल्यों और सिद्धांतों से अपने भाषणों को भर देता है लेकिन उनके आदर्शों को अपने आचरण में नहीं उतारता। गाँधी मात्र वो नाम रह गया है जिसे 2 अक्टूबर को हर नेता याद करता है उनकी तस्वीर पर फूलमाला चढ़ता है लेकिन जब सरकार में हिस्सेदारी की बात आती है या मंत्रिमंडल के खरीद फरोख्त की बात आती है तो गाँधी जी दिखाई नहीं देते शायद इसलिए ही उनकी तस्वीर हमेशा इन माननीय नेताओं की कुर्सी के पीछे लगी होती है सामने नहीं।

शह मात के गेम प्लान में आंकड़ो के संख्या काफी अहम

लेकिन राजनैतिक दलों की इन बड़ी बड़ी महत्वकांक्षाओं और सत्ता के इस बड़े खेल में ,शतरंज की गहरी चालों और शह मात के गेम प्लान में आंकड़ो के संख्या गणित में उन प्यादों की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता जिनके दम पर यह सारा खेल खेला जाता है। यह विडंबना नहीं तो क्या है कि जो दल आज लगातार महाराष्ट्र में लोकतंत्र की हत्या की दुहाई दे रहे हैं वे अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को होटल में कड़ी निगरानी की कैद में रखते हैं। और आश्चर्य की बात यह है कि वे निर्वाचित प्रतिनिधि भी अनुशासन के नाम पर बंदियों की सी स्थिति स्वीकार भी कर लेते हैं। संविधान की रक्षा के लिए संघर्ष करने की बात करते हैं लेकिन स्वाभिमान की लड़ाई स्वेच्छा से हार जाते हैं। वर्चस्व के इस युद्ध में कोर्ट का फैसला किसी के भी पक्ष में जाए, फ्लोर टेस्ट का कोई भी नतीजा आए "लोकतंत्र की जीत" या "लोकतंत्र की हत्या" जैसे शब्दों का चयन हर दल अपनी सुविधानुसार कर लेगा लेकिन मतदाता को तो सबकुछ देखकर और समझकर भी सब चुपचाप सहन करना ही पड़ेगा क्योंकि आज राजनीति ने अपनी नई परिभाषाएं गढ़ ली है।

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English summary
: In another twist, Devendra Fadnavis has resigned as the Maharashtra CM. Fadnavis’ resignation came after Ajit Pawar stepped down as the deputy chief minister ahead of tomorrow's floor test
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