Layoffs in Tech Sector: टेक कंपनियों में जारी है नौकरियों का 'सामूहिक संहार'
मंदी की चिंता ने बड़ी-बड़ी टेक कंपनियों के होश उड़ा दिये हैं। कॉस्ट कटिंग के नाम पर वे ताबड़-तोड़ अपने कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा रही हैं। बीते एक महीने में करीब एक लाख से अधिक टेक कर्मी अपनी नौकरियां खो चुके हैं।
पिछले साल नवंबर से आईटी सेक्टर में ले ऑफ का दौर जारी है। कंपनियां बड़ी बेरहमी से अपने स्टाफ की संख्या कम करने में लगी हैं। खर्च घटाने के लिए ले ऑफ की शरण में जाने वाली अनेक विशालकाय कंपनियों में अब मैच ग्रुप इंक भी जुड़ गयी है। टिंडर, हिंज और ओकेक्युपिड़ जैसे प्रसिद्ध डेटिंग प्लेटफॉर्म 'मैच' ग्रुप ही चलाती है। इस कंपनी ने दुनिया भर से अपने आठ प्रतिशत कर्मचारी कम करने की घोषणा की है। मैच ग्रुप उन ढाई सौ टेक कंपनियों में से एक है, जिन्होंने पिछले एक महीने में अस्सी हजार से ज्यादा कर्मचारियों को ले ऑफ कर दिया है।
पुराना
है
हायर
और
फायर
का
फार्मूला
वैसे
टेक
कंपनियां
तो
शुरू
से
ही
'हायर
एंड
फायर'
की
नीति
अपनाने
और
इस्तेमाल
करने
के
लिए
बदनाम
रही
हैं।
यहां
रेड
कार्पेट
बिछाकर
युवा
प्रतिभाओं
का
स्वागत
किया
जाता
है
और
पिंक
स्लिप
देकर
विदा
कर
दिया
जाता
है।
लेकिन,
थोक
के
भाव
कर्मचारियों
की
विदाई
करने
का
यह
चलन
अब
कुछ
ज्यादा
ही
जोर
पकड़
रहा
है।
खासकर
कोरोना
के
बाद
के
परिदृश्य
ने
इन्हें
अपने
ऐसे
कदमों
को
तर्कसंगत
ठहराने
के
लिए
पर्याप्त
वजह
उपलब्ध
करा
दी
है।
अक्सर ले ऑफ यानि छंटनी और नौकरी से निकाले जाने को एक ही समझा जाता है। लेकिन सैद्धांतिक रूप से दोनों स्थितियां अलग हैं। नौकरी से किसी को निकाले जाने के पीछे कर्मचारी की कोई गलती, कंपनी के हितों के खिलाफ गतिविधियां आदि वजह होती हैं। लेकिन, ले ऑफ में मुनाफे में कमी या घाटे में वृद्धि, मंदी, खर्च कटौती जैसी चीजों का हवाला देकर कर्मचारी को अस्थायी तौर पर काम से हटा दिया जाता है। हालांकि उससे यह कहा नहीं जाता, लेकिन उसे भरोसा रहता है कि परिस्थितियां सामान्य होने पर उसे वापस ले लिया जायेगा। यह अलग बात है कि यथार्थ में ऐसा बहुत कम होता है।
नौकरियों के इस सामूहिक संहार का, जॉब खोने वाले कर्मचारियों के जीवन और भावनात्मक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है, इस बारे में कहीं चर्चा नहीं होती। सारी चर्चाओं और चिंताओं के केंद्र में इन कंपनियों का वित्तीय स्वास्थ्य ही रहता है।
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मनोविज्ञानियों का मत है कि इस तरह अचानक नौकरी गंवाने वाले आत्मसंदिग्धता, निराशा, कुंठा, तनाव, क्रोध, चिड़चिड़ेपन और छले जाने जैसी भावनाओं से भर जाते हैं। ऐसे में वे बेहद असहाय महसूस करने लगते हैं। अगले ऑफर का इंतजार करने के अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं होता। और ये इंतजार लंबा होता जाता है। क्योंकि, ये केवल उन्हीं की कंपनी नहीं है, जिसने ले ऑफ किया था। ये एक ग्लोबल ट्रेंड है, जो बहुत कम समय में पूरे कॉरपोरेट सेक्टर को अपनी गिरफ्त में ले लेता है।
जनवरी का ले ऑफ इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इस महीने जितने लोगों की जॉब गयी है, उनकी संख्या 2022 में नवंबर -दिसंबर के संयुक्त ले ऑफ से भी ज्यादा है। और फिलहाल जो स्थिति है, उसे देखकर नहीं लगता कि पूरे 2023 में यह सिलसिला रुकने वाला है। 'ले ऑफ' नामक इस तरह की सामूहिक विदाई के आंकड़ों का संकलन और प्रकाशन करने वाली वेबसाइट layoffs.fyi के अनुसार इस वर्ष अब तक 272 टेक कंपनियां 86, 882 कर्मचारियों को ले ऑफ कर चुकी हैं।
वहीं 2022 में 1,025 कंपनियों के 1,59,766 कर्मचारी ले ऑफ हुए थे। यानि एक साल में जितनी कंपनियों ने ले ऑफ किया, उसकी एक चौथाई कंपनियां सिर्फ एक महीने में उसका आधा ले ऑफ कर चुकी हैं। इसका मतलब यह है कि इस साल, हर रोज औसतन साढ़े तीन हजार टेक कर्मी अपनी नौकरी गंवा रहे हैं। यह संख्या आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है, जब 2023 की पहली तिमाही के वित्तीय नतीजे घोषित होने शुरू होंगे।
दो
साल
से
जारी
है
उतार
का
दौर
नौकरियों
की
दृष्टि
से
2019-20
तक
का
समय
टेक
वर्कर्स
के
लिए
काफी
अच्छा
रहा
था।
इस
दौरान
कोविड-19
के
प्रसार
को
रोकने
के
लिए
लगाए
गए
सख्त
लॉक
डाउन
ने
सारी
दुनिया
को
घरों
में
कैद
करके
रख
दिया
था।
ऐसे
में
टेक्नोलॉजी
लोगों
के
जीने
का
सबसे
बड़ा
सहारा
बन
गयी
थी।
लेकिन, लॉकडाउन खुलने के बाद लोगों ने सामान्य जीवन की ओर लौटना शुरू कर दिया और अधिकतर टेक कंपनियों का कारोबार व आत्मविश्वास दोनों डगमगाने लगे। 2022 आते-आते,भावी समृद्धि की वह इमारत धराशायी होती नजर आने लगी, जो इंटरनेट इकोनॉमी ने संभावनाओं और उम्मीदों के आधार पर खड़ी की थी।
इसका असर स्टार्टअप, यूनीकॉर्न कंपनियों से लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियों तक, सब पर पड़ा। इस असर को कम करने का एक ही रास्ता था, खर्च कम करना। खर्च में कटौती का सबसे आसान तरीका कर्मचारियों की संख्या में कटौती था। इन कंपनियों ने यही तरीका अपनाया। कुछ ने एक साथ, तो कुछ ने किस्तों में।
हर
सेक्टर
पर
दिखा
असर
ई-कॉमर्स,
फूड,
लॉजिस्टिक्स,
एजुकेशन,
हेल्थ
केयर,
आईटी,
सोशल
नेटवर्किंग,
सिक्योरिटी,
सेल्स,
क्रिप्टो,
ट्रांस्पोर्टेशन,
कन्ज्यूमर,
मीडिया,
फाइनेंस...
कोई
सेक्टर
ले
ऑफ
की
लहर
से
बचा
नहीं
रह
सका।
बीते
कुछ
महीनों
में
जिन
कंपनियों
से
सबसे
ज्यादा
कर्मचारियों
को
ले
आफ
किया
गया
उनमें
अमेजन
(18
हजार),
गूगल
की
पैरेंट
कंपनी
अल्फाबेट
(12
हजार)
फेसबुक
वाली
मेटा
(11
हजार),
सेल्स
फोर्स
(8
हजार),
उबेर
(7,700)
,
बायजूस
(4
हजार),
ओला
(2400),
स्विगी
(2600+),
कॉइन
बेस
(2000+),
पेपैल
(2000),
आईबीएम
(3900),
ग्रुप
ऑन
(3800),
ट्वीटर
(3700),
कारवान
(2500),
एयर
बीएन
बी
(1900),
व्हाइट
हैट
जूनियर
(1800),
ओयो
(1700),
पैसा
बाजार
(1500),
ओएल
एक्स
(1500),
अनअकेडमी
(1300+
)
,
ओपेन
डोर
(1150),
शॉपिफाई
(1000)
जैसी
अंतरराष्ट्रीय/भारतीय
कंपनियां
शामिल
हैं।
बाकी
नामी
कंपनियों
में
लिंक्डइन
स्पॉटीफाई,
जोमाटो,
पेटीएम,
गो
डैडी,
वेदांतु,
मेकमाईट्रिप,
ड्रॉप
बॉक्स,
मीशो
आदि
हैं,
जिन्होंने
अपने
कर्मचारियों
की
संख्या
में
उल्लेखनीय
कटौती
की
है।
ले
ऑफ,
मजबूरी
या
रणनीति?
बाजार
के
विशेषज्ञों
का
मानना
है
कि
ले
ऑफ
के
बढ़ते
चलन
के
पीछे
टेक
कंपनियों
की
एक
सोची-समझी
रणनीति
भी
है।
लगातार
घाटे
में
चल
रही
ये
कंपनियां
इसके
माध्यम
से
निवेशकों
का
विश्वास
जीतकर,
उन्हें
यह
संदेश
देना
चाहती
हैं
कि
वे
अपने
खर्च
कम
करते
हुए,
अपना
घाटा
आधारित
परिचालन
बंद
कर
रेवेन्यू
जुटाने
के
प्रति
काफी
गंभीर
हैं।
वस्तुत: यह अंत नहीं, एक बदलाव की शुरूआत है। यह टेक्नोलॉजी की दुनिया में अमेरिका का प्रभुत्व घटने का समय है। भारत, कनाडा, पोलैंड और जर्मनी इस क्षेत्र में तेजी से बढ़त बना रहे हैं। 2022 में, जब अमेरिकी कंपनियाँ नौकरियों में कटौती कर रही थीं, इन चार देशों में 42.5 लाख नए अवसर उत्पन्न किए गए। इनमें 27.5 लाख सिर्फ भारत से थे।
इसलिए चिंता करने की बजाय टेक्नोलॉजी की दुनिया में रिवर्स ब्रेन ड्रेन के एक नए दौर के लिए तैयार रहिये, जो ज्यादा व्यावहारिक, विश्वसनीय और ज्यादा स्थायी होगा।
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