Karnataka Politics: कर्नाटक में इस बार जेडीएस को भी कमजोर न समझें
जहां लिंगायत समुदाय येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के कारण भाजपा से नाराज है, वहीं वोक्कालिगा समुदाय ज्यादा आरक्षण की मांग पर अड़ा है। महाराष्ट्र कर्नाटक सीमा विवाद भी भाजपा को लिए सिरदर्द बन रहा है।
Karnataka Politics: मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ के चुनाव अभी बहुत दूर हैं, पहले तो अप्रेल-मई 2023 में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव हैं| इसलिए कर्नाटक में चुनावी गोटियां बिछनी शुरू हो गई हैं| भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने वोक्कालिगा समुदाय का आरक्षण बढ़ाने का रास्ता साफ कर दिया है। फिलहाल उन्हें आरक्षण के 3 ए वर्ग में 4 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है और वे 12 प्रतिशत की मांग कर रहे हैं| सरकार ने आरक्षण के 3 ए और 3 बी वर्ग खत्म कर के उन्हें 2 सी और 2 डी बना दिया है| वोक्कालिगा समुदाय अब 3 ए वर्ग से हट कर 2 सी में आ गया है, जिसमें फिलहाल तो उन्हें 4 प्रतिशत आरक्षण ही है|
आयोग से कहा गया है कि वह समुदायों की आबादी के आधार पर तीन महीनों में अपनी रिपोर्ट दे कि किस समुदाय को कितने प्रतिशत आरक्षण दिया जाए| सरकार का इरादा चुनावों की घोषणा से ठीक पहले मार्च के आखिर में आरक्षण का कोटा बढ़ाने का है| पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा वोक्कालिंगा समुदाय से आते हैं और उनका इस समुदाय पर अच्छा प्रभाव है|
इस समुदाय के प्रभाव वाला क्षेत्र पुराना मैसूर है, 2018 के चुनाव में वहां की 89 सीटों में से 31 सीटें देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस ने जीती थी| कांग्रेस को 32 सीटें मिलीं थीं, जबकि भाजपा को सिर्फ 22 सीटें| अब अगर आरक्षण का कोटा बढने से वोक्कालिगा समुदाय संतुष्ट हो जाता है तो भाजपा देवेगौड़ा परिवार और कांग्रेस के वोट बैंक के में सेंध मारने में कामयाब हो जाएगी|
लेकिन भारतीय जनता पार्टी के लिए वोक्कालिगा से ज्यादा लिंगायत मायने रखते हैं। कर्नाटक में लिंगायतों की आबादी वोक्कालिगा से ज्यादा है| लेकिन लिंगायतों की एक अत्यंत पिछड़ी जाति पंच-मसाली लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रही थी| उनकी मांग थी कि उन्हें अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण वाले 2 ए वर्ग में शामिल किया जाए, जिसमें 15 प्रतिशत आरक्षण है|
बोम्मई सरकार ने 29 दिसंबर को उनकी मांग भी स्वीकार कर ली, लेकिन उन्हें नए बनाए गए 2 डी वर्ग में डाल दिया गया है, जिसमें फिलहाल 5 प्रतिशत आरक्षण है| भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई लिंगायत समुदाय से आते हैं। इन दोनों के कारण भारतीय जनता पार्टी का लिंगायत वोटों पर दबदबा रहा है|
लिंगायतों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए 2018 में तब की कांग्रेस सरकार ने लिंगायतों को गैर हिन्दू मानकर अल्पसंख्यक का दर्जा देने का दांव खेला था| लेकिन कांग्रेस का हिन्दुओं को विभाजित करने का दांव विफल रहा|
लिंगायतों का 76 सीटों पर प्रभाव है, पिछली बार भाजपा ने 68 और कांग्रेस ने 49 लिंगायतों को टिकट दिए थे| लिंगायतों का 62 फीसदी वोट बीजेपी को मिला, 16 फीसदी वोट कांग्रेस के खाते में गया, जबकि जेडीएस को भी लिंगायतों का 11 फीसदी वोट मिला| जिससे भाजपा के 37, कांग्रेस के 18 और जेडीएस के 8 उम्मीदवार जीते|
बोम्मई सरकार ने दो महीने पहले ही अनुसूचित जाति के 1 ए वर्ग का आरक्षण कोटा 12 प्रतिशत से बढा कर 17 प्रतिशत किया है और अनुसूचित जनजाति का 1 बी वर्ग का कोटा 3 प्रतिशत से बढा कर 7 प्रतिशत किया है| आरक्षण और कोटा राजनीति के चलते कर्नाटक में 66 प्रतिशत आरक्षण हो चुका है, जो सुप्रीमकोर्ट की ओर से तय 50 प्रतिशत की सीमा से ज्यादा है| सुप्रीमकोर्ट इस पर रोक न लगा दे, इसलिए राज्य की भाजपा सरकार ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह बढाए गए आरक्षण के कोटे को नौंवे शेड्यूल में शामिल कर दे ताकि न्यायपालिका उसमें कोई अडंगा नहीं डाल सके|
वैसे इस समय कर्नाटक में भाजपा जनता पार्टी की हालत हिमाचल जैसी ही है| यानि पार्टी के दोबारा सत्ता में लौटने की संभावना कम दिखती है| पार्टी में गहरी अंतर्कलह है, पूर्व मंत्री केएस ईश्वरप्पा और रमेश जरकीहोली को मंत्रिमंडल में शामिल न करने पर पार्टी के भीतर नाराजगी है| हिमाचल की तरह कर्नाटक में भी असंतुष्ट नेताओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है|
इसके अलावा भाजपा के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। ठेकेदारों ने मंत्रियों पर 40 प्रतिशत कमीशन मांगने का आरोप लगाया है| पिछले साल पार्टी के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाना भाजपा के लिंगायत समर्थन आधार पर प्रभाव डाल सकता है| पार्टी को तीन बार सत्ता में लाने के बावजूद येदियुरप्पा अपने अपमान को चुपचाप बर्दाश्त कर रहे हैं| ऐसे में वह प्रेम कुमार धूमल की तरह चुनावों में सक्रिय रूप से प्रचार नहीं करने का फैसला कर सकते हैं|
बोम्मई भी हालांकि लिंगायत हैं, लेकिन लिंगायत वोटरों पर उनका वैसा प्रभाव नहीं है, जैसा येदियुरप्पा का है| येदियुरप्पा को हटाए जाने से लिंगायत भाजपा से नाराज हैं। उन्हें लगता है कि बोम्मई भी अस्थाई मुख्यमंत्री हैं, भाजपा सत्ता में आई तो किसी गैर लिंगायत को मुख्यमंत्री बना सकती है| इसलिए जिस तरह हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल को किनारे करने का भाजपा को खामियाजा भुगतना पड़ा, उसी तरह कर्नाटक में भी येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाने का खामियाजा भुगतना पड सकता है|
2018 में क्योंकि लिंगायत को अलग धर्म बनाने का कांग्रेस का दांव नहीं चला था, हिन्दुओं ने एकजुटता दिखाई थी, इसलिए हिन्दू एकता के लिए भाजपा ने इस बार वीर सावरकर का भी दांव चला है| इसके बावजूद भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षणों के मुताबिक इस बार पार्टी पिछले चुनावों में मिली 104 सीटों की तुलना में इस बार 70-80 सीटों पर सिमट सकती है|
पिछले कई चुनावों से कांग्रेस के जनाधार में भी गिरावट देखी जा रही है| कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच अंदरुनी कलह से कांग्रेस की स्थिति भी बेहद खराब है| लेकिन लिंगायतों की भाजपा से नाराजगी का फायदा कांग्रेस उठा सकती है। 2013 के चुनाव में कांग्रेस के 30 लिंगायत उम्मीदवार जीते थे, और भाजपा के सिर्फ 18, लेकिन 2018 में भाजपा के 37, कांग्रेस के 18 और जेडीएस के 8 लिंगायत जीते| इस बार लिंगायत भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं|
अगर भाजपा और कांग्रेस दोनों में से कोई भी स्पष्ट बहुमत हासिल करने में सफल नहीं रही तो जेडीएस की भूमिका फिर से किंगमेकर की हो सकती है| इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की जनता दल सेकुलर कर्नाटक की तीसरी बड़ी ताकत है| पिछले लंबे अरसे से देवेगौड़ा की पार्टी कांग्रेस और भाजपा का खेल बिगाड़ती रही है, दोनों का खेल बिगाड़ कर खुद सत्ता हासिल करती रही है|
2006 में देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी भाजपा के साथ मिल कर मुख्यमंत्री बन गए थे और 2018 में कांग्रेस के साथ मिल कर मुख्यमंत्री बन गए थे| 2018 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को 224 के सदन में 104 सीटें मिलीं थी, जो बहुमत से सिर्फ 9 कम थीं, इसके बावजूद भाजपा की सरकार नहीं बन सकी। क्योंकि बिना समय गवाएं 80 सीटों के साथ बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस ने सिर्फ 37 सीटों वाली जेडीएस को समर्थन देकर एच.डी. कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बना दिया था| हालांकि कांग्रेस और जेडीएस से दलबदल करवा कर भाजपा ने 14 महीने बाद ही कुमारस्वामी की सरकार गिरा कर अपनी सरकार बना ली थी|
इस बार मजेदार समीकरण बन रहे हैं कि तेलंगाना की तेलंगाना राष्ट्र समिति, जिसका नाम हाल ही में भारतीय राष्ट्र समिति कर दिया गया है, वह भी जेडीएस के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतर रही है| भारतीय राष्ट्र समिति की नजर उन सात जिलों पर हैं, जो पहले हैदराबाद रियासत का हिस्सा हुआ करते थे| यह क्षेत्र पहले हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के नाम से जाना जाता था| अब इसे कल्याण कर्नाटक कहा जाता है|
इनमें बीदर, कलबुर्गी, यादगिरि, रायचूर, बेल्लारी, विजयनगर और कोप्पल शामिल हैं| इन सात जिलों में 40 विधानसभा सीटें हैं, फिलहाल कांग्रेस के पास इन जिलों में सबसे ज्यादा 21 सीटें हैं, वहीं भाजपा के पास 15 और जेडीएस के पास सिर्फ 4 सीटें हैं| देवेगौडा और चंद्रशेखर राव का गठबंधन इन सात जिलों में कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है| अगर दोनों का गठबंधन 60 सीटें जीतने में भी कामयाब रहा तो 2023 में कर्नाटक की सरकार बनाने के लिहाज से यह तीसरा पक्ष 2018 से भी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होगा|
इसके अलावा महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद भी एक चुनावी फेक्टर है| अगर वक्त रहते यह विवाद नहीं सुलझा, तो भारतीय जनता पार्टी को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है| ऐसे में जेडीएस के लिए बॉम्बे कर्नाटक यानि महाराष्ट्र से लगे इलाकों की 50 सीटों पर भी संभावनाएं बेहतर हो जाएंगी| जेडीएस की नजर इस मसले को भी भुनाने की है|
हालांकि भाजपा ने इस इलाके में वीर सावरकर को मुद्दा बनाकर कांग्रेस और जेडीएस के लिए मुश्किल तो खड़ी की ही है| आने वाला वक्त ही बताएगा कि जेडीएस इस बार भी किंगमेकर की भूमिका में होगी या खुद किंग बनने की कोशिश करेगी| एचडी कुमारस्वामी के हालिया बयान से संकेत मिलता है कि अगर कर्नाटक में कोई भी पार्टी स्पष्ट बहुमत हासिल करने में नाकाम रहती है तो सरकार बनाने के लिए जेडीएस भाजपा से हाथ मिला सकती है|
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एचडी कुमारस्वामी ने हाल ही बेंगलुरु में कहा है कि 2023 में भाजपा को जेडीएस के पास आना होगा| कुमारस्वामी किंगमेकर की भूमिका में आए तो भाजपा के साथ ढाई-ढाई साल वाली वही शर्त रखेंगे, जो उन्होंने 2006 में रखी थी|
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)