Kanhar Dam Project: कनहर बांध परियोजना और विकास की कीमत चुकाती पीढियां
कहते हैं कि हर विकास परियोजना की एक कीमत होती है, जो कई पीढियों को चुकानी पड़ती है। ऐसी ही एक योजना है कनहर बांध सिंचाई परियोजना। 46 वर्ष से लटकी इस परियोजना की नींव में दर्द और बर्बादी के अनगिनत किस्से हैं।
Kanhar Dam Project: उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की एक बड़ी आबादी विकास एवं औद्योगिक परियोजनाओं की कीमत पर लंबे अर्से से विस्थापन, पलायन और बेरोजगारी का दंश झेल रही है। रिहंद बांध परियोजना, अनपरा पॉवर प्रोजेक्ट, ओबरा प्रोजेक्ट समेत कई प्रावइेट कंपनियों के प्रोजेक्ट की वजह से विस्थापन इस औद्योगिक जिले का स्थायी भाव बन चुका है।
दुद्धी तहसील के अमवार गांव के पास झारखंड एवं छत्तीसगढ़ सीमा पर निर्माणाधीन कनहर बांध सिंचाई परियोजना भी विस्थापन के इसी सिलसिले को आगे बढ़ाती है। सरकारी विभागों की लापरवाही और लेटलतीफी ने विस्थापितों को ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया है, जहां से आगे की जिंदगी पहाड़ हो गई है। उनके पास ना तो घर है और ना ही जीविकोपार्जन का कोई साधन।
दरअसल, कनहर सिंचाई परियोजना की शुरुआत 6 अक्टूबर 1976 में दुद्धी तहसील के अमवार गांव में हुई थी। इस बांध प्रोजेक्ट में यूपी के साथ बिहार और मध्य प्रदेश के हजार से ज्यादा परिवार प्रभावित होने वाले थे। नारायण दत्त तिवारी की सरकार में सिंचाई मंत्री रहे लोकपति त्रिपाठी के प्रयास से इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिली थी। तब यह इलाका मिर्जापुर जिले का हिस्सा था।
इस योजना से 108 गावों के 35462 हेक्टेयर क्षेत्रफल को सिंचित किये जाने का लक्ष्य था। तत्कालीन जिलाधिकारी वीके मल्होत्रा के निर्देशन में प्रोजेक्ट को दस साल में पूरा होना था। वर्ष 1977 में एनडी तिवारी की सरकार जाने के कारण परियोजना अधर में फंस गई। 46 वर्ष बीतने के बाद भी ना तो बांध पूरी तरह निर्मित हो पाया है, और ना ही विस्थापितों की परेशानी हल हो सकी है।
नाबार्ड वित्त पोषित इस परियोजना की वर्तमान लागत 223933.57 लाख रुपये है, जिसमें स्पिलवे के साथ कम्पोजिट सेक्शन के निर्माण कार्य की लागत 98364.98 लाख रुपये है। शुरुआत में परियोजना का बजट मात्र 27 करोड़ रुपये था। कुल 21 गांवों के लोगों को विस्थापित होना था। ये सभी गांव बांध के डूब क्षेत्र में थे। उत्तर प्रदेश के 11, छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश) के 6 तथा झारखंड (तत्कालीन बिहार) के 4 गांव प्रभावित हो रहे थे। विस्थापन के समय प्रत्येक पीडि़त परिवार को मुआवजा, पांच एकड़ जमीन और एक सदस्य को नौकरी दिया जाना तय हुआ था। छत्तीसगढ़ और झारखंड के हिस्से का मुआवजा भी यूपी सरकार को देना था।
कनहर पुनर्वास आंदोलन के अध्यक्ष ईश्वर प्रसाद निराला कहते हैं, ''जब परियोजना की घोषणा की गई थी तब मुआवजा के साथ पांच एकड़ जमीन और नौकरी देने की बात थी। विस्थापित परिवारों को बांध से निकलने वाली कनहर दायीं और बांयीं नहर के सिंचाई वाले इलाके में बसाया जाना था। सरकार ने डूब क्षेत्र में जिन लोगों का जमीन अधिग्रहण किया, उन्हें प्रति बीघा 2800 रुपये का मुआवजा दिया, लेकिन पांच एकड़ जमीन नहीं दी। मुआवजा सबको नहीं मिल सका। शुरुआत में 165 लोगों को नौकरी दी गई, जो अब रिटायर हो चुके हैं। अन्य परिवार के लोग नौकरी का इंतजार करते रह गये।''
परियोजना के सरकारी फाइलों में अटक जाने के चलते विस्थापित परिवार अधर में लटक गये। खेती की जमीन के अधिग्रहण के बाद विस्थापित परिवारों के आय के साधन समाप्त हो गये। मजदूरी करने के अलावा कोई काम नहीं रह गया।
कनहर पुनर्वास आंदोलन के महामंत्री चिंतामणि कहते हैं, ''समय से मुआवजा और जमीन नहीं मिलने के कारण विस्थापित परिवारों के सामने जीविकोपार्जन की समस्या खड़ी हो गई। जब परियोजना शुरू हुई थी तब 1044 विस्थापित परिवार थे, लेकिन 46 साल में परिवार दो पीढ़ी और विस्थापित चार गुना बढ़ चुके हैं। कई बच्चे नाबालिग हैं, जिनको सरकारी मुआवजा के अंतर्गत नहीं लाया गया है। ये लोग ना इधर के रहे ना उधर के।''
चार दशक से लटकी इस परियोजना को पटरी पर लाने का श्रेय सपा सरकार में सिंचाई मंत्री रहे शिवपाल सिंह यादव को जाता है। वर्ष 2011 में बसपा सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इस योजना का शिलान्यास किया, लेकिन निर्माण प्रक्रिया प्रारंभ होने से पहले सरकार चली गई। वर्ष 2012 में जब सपा की सरकार आई तो शिवपाल सिंह यादव ने इस बांध के स्लीपवे का निर्माण प्रारंभ कराया। हैदराबाद की एचईएस कंपनी बांध का निर्माण कर रही है। स्लीपवे के कंक्रिटिंग का कार्य वर्ष 2015 में शुरू हुआ। बांध का निर्माण नये सिरे से शुरू हुआ तो पुराने सरकारी वायदे को दरकिनार कर दिया गया। नये सरकारी आदेश में विस्थापित हुए परिवार के प्रत्येक बालिग सदस्य को 7 लाख 11 हजार रुपये मुआवजा तथा 150 वर्ग मीटर जमीन का प्लॉट देने का निर्देश जारी हुआ।
कनहर परियोजना पूर्ण होने के बाद अमवार, सुंदरी, कोरची, भीसुर, गोहड़ा, रनदहटोला, बघाड़ू, कुदरी, बरखोहरा, सुगवामान तथा लांबी गांव जलसमाधि ले लेंगे। इन गांवों के विस्थापितों को अमवार से एक किलोमीटर पहले बनाई गई पुनर्वास कालोनी में 150 वर्ग मीटर जमीन आवंटित की जा रही है।
ग्रामीणों का आरोप है कि जिन लोगों के पास जुगाड़ और पैसा है, उन्हें मुआवजा और जमीन पहले मिल रहा है। शेष का इंतजार अभी लंबा है। मूल रूप से विस्थापित परिवारों के वर्तमान पीढ़ी के कई सदस्यों का नाम जोड़ा नहीं गया है। विस्थापन पैकेज मिलने के बाद भी महज पांच-छह दर्जन परिवार ही पुनर्वास कॉलोनी में बस पाये हैं। बाकी तमाम परिवार अब भी अमवार एवं अन्य गांवों में आबाद हैं।
ईश्वर प्रसाद निराला बताते हैं, ''शिवपाल सिंह यादव जब आये थे तो उनसे केवल जमीन देने की जगह लोहिया आवास योजना के तहत घर भी बनाकर देने की बात कही गई थी, लेकिन बाद में सरकार ने इससे इंकार कर दिया। सरकार ने जो 7 लाख 11 हजार का मुआवजा तय किया वह भी मकान प्रतिकर के आधार पर, जबकि मुआवजा जमीन प्रतिकर के आधार पर दिया जाना चाहिए था।
जिन विस्थापित परिवारों में तीन से चार भाई थे, और मकान केवल एक भाई के नाम से था, उसमें केवल एक को मुआवजा मिला बाकी सभी भाई खाली हाथ रह गये। जमीन प्रतिकर के आधार पर मुआवजा मिलता तो सभी की परेशानी हल होती। जिन परिवारों में केवल बेटियां पैदा हुईं, उन्हें मुआवजा के अंतर्गत नहीं लाया गया।''
कनहर बांध परियोजना शुरू होने के बाद 1984 से लेकर वर्ष 2000 तक इसका काम पूरी तरह से बंद रहा। वर्ष 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के प्रयास से डैम के निर्माण की प्रक्रिया आगे बढ़ी। इसी वर्ष झारखंड और छत्तीसगढ़ बनने के बाद हलचल शुरू हुई। दोनों नये राज्यों से सहमति लेने के साथ मृदा परीक्षण एवं डाटा जुटाने का काम शुरू हुआ, परंतु राजनाथ की सरकार जाने के बाद एक बार यह फिर ठप हो गया।
कनहर परियोजना के अंतर्गत विस्थापन पैकेज की जिम्मेदारी संभालने वाले रवि श्रीवास्तव बताते हैं, ''तीन चरणों में अब तक 4145 विस्थापितों को चिन्हित किया गया है। इनमें 3400 लोगों को 7.11 लाख रुपये का तय मुआवजा दिया जा चुका है, जबकि 2400 लोगों को प्लॉट और मुआवजा दोनों दिया जा चुका है। जल्द ही सभी को मुआवजा एवं प्लॉट उपलब्ध करा दिया जायेगा।''
विस्थापित परिवारों के सामने सबसे बड़ी समस्या जीविकोपार्जन की है। ज्यादातर परिवारों के खेत अधिग्रहण में जा चुके हैं। सरकार की तरफ से जो मुआवजा दिया जा रहा है, वह नया घर बनाने में खत्म हो जायेगा, ऐसी दशा में इन परिवारों के पास मजदूरी के अलावा जीविकोपार्जन के बहुत सीमित विकल्प रह जायेंगे।
ईश्वर प्रसाद निराला कहते हैं, ''जमीन जा चुकी है। बांध पूरा होते ही हमें अमवार में हमारे घरों से निकालकर पुनर्वास कालोनी भेज दिया जायेगा। बहुतों को अब तक जमीन और मुआवजा दोनों नहीं मिल पाया है। हम कहां जायेंगे और कहां रहेंगे? हमारे पास हल चलाने, खेती करने, बांध बांधने और पशुपालन का अनुभव है, लेकिन डेढ़ सौ वर्गमीटर जमीन में हम कौन सा काम करेंगे?।''
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