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Price Rise in India: सरकारी आंकड़ों में महंगाई काबू में है तो बाजार में महंगाई क्यों बढ़ रही है?

सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि मंहगाई काबू में है लेकिन बाजार की हकीकत यह है कि खाद्य वस्तुओं के दाम एक साल के भीतर 40 प्रतिशत तक बढे हैं। आखिर सरकारी आंकड़ों और बाजार की वास्तविकता अलग अलग क्यों है?

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Inflation is down as per official statistics then why price rising in Indian market

Price Rise in India: दुनिया भर में महंगाई चरम पर है। भारत के कई पड़ोसी मुल्कों की वित्तीय स्थिति डांवाडोल है। पाकिस्तान में 150 रुपए का एक किलो आटा मिल रहा है तो 250 रुपए किलो प्याज बिक रही है। श्रीलंका में मुंहमांगी कीमत देकर लोग गैस का सिलेंडर खरीदने के लिए मजबूर हुए हैं। इन सबके बीच भारत में महंगाई कमोबेश अभी काबू में है, लेकिन खुदरा और थोक बाजार की चाल से कीमतों में आसन्न वृद्धि के संकेत मिलने लगे हैं।

शायद इसीलिए रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बढ़ती महंगाई को लेकर चिंता व्यक्त की है और घटती विकास दर को इसका कारण माना है। हालांकि उन्होंने यह भी भरोसा दिया है कि महंगाई पर काबू बनाए रखना सरकार की प्राथमिकता है, लेकिन तथ्य है कि खुले में बिकने वाला आटा जो पिछले साल 25 रुपए किलो था अब 35 रुपए किलो हो गया है। एक वर्ष की अल्प अवधि में 40% की वृद्धि अप्रत्याशित है। यही हाल दाल, दूध और गैस सिलेंडर का भी है। इस साल विकास दर 7% रहने का अनुमान लगाया गया है जो कि पिछले वर्ष की तुलना में करीब पौने दो प्रतिशत कम है। ऐसे में जाहिर है कि अगर विकास दर नहीं बढ़ेगी तो तुलनात्मक रूप से महंगाई चढ़ती ही जाएगी।

केंद्र सरकार लगातार महंगाई दर कम होने का दम भर रही है लेकिन महंगाई लगातार ऊपर की ओर ही चढ़ रही है। बढ़ती महंगाई से आम आदमी का बजट बिगड़ गया है। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया की मजबूरी सिर पर आ गई है। आटा दाल दूध ही नहीं दैनिक इस्तेमाल की सभी वस्तुओं के दाम धीरे-धीरे ऊंचाई की ओर चढ़ते जा रहे हैं। लेकिन यहां लाख टके का सवाल यह है कि सरकार के आंकड़ों में जब महंगाई दर काबू में है तो फिर बाजार में महंगाई क्यों बढ़ती जा रही है?

सरकारी आंकड़ों में महंगाई दर नीचे रहने और बाजार में महंगाई के बढने की मुख्य वजह सरकारी आंकड़ों और वास्तविक आंकड़ों में तालमेल ना होना है। जाहिर है सरकार ने महंगाई मापने के लिए मुद्रास्फीति का जो पैमाना बनाया है उसी में कहीं ना कहीं खोट है। इस तरह की स्थिति वर्ष 2008 में भी उत्पन्न हुई थी जब मुद्रास्फीति की दर नकारात्मक स्थिति में पहुंच गई थी। तब यह तय किया गया था कि मुद्रास्फीति की दर तय करने के लिए उन वस्तुओं को सूचकांक में शामिल किया जाए जो सीधे तौर पर आम आदमी से जुड़ी हुई हैं।

पहले केवल 432 वस्तुओं के आंकलन के आधार पर महंगाई दर तय कर दी जाती थी। विचार विमर्श के बाद सूचकांक में कुल 1000 वस्तुओं को शामिल किया गया तथा मासिक आधार पर इसकी रिपोर्ट तैयार होने लगी। लेकिन देश के सकल घरेलू उत्पाद में 60% का योगदान करने वाले सेवा क्षेत्र को आज भी गणना में गंभीरता से शामिल नहीं किया गया है, जबकि आम आदमी की कमाई का एक बड़ा हिस्सा विभिन्न सेवाओं जैसे बिजली बिल, टेलीफोन बिल, स्कूल फीस, इलाज आदि पर खर्च होता है। वहीं थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अंतर में इसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

बेकाबू महंगाई रोकने के लिए रिजर्व बैंक पिछले कई महीनों से लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहा है, लेकिन महंगाई है कि रुकने का नाम नहीं ले रही है। रिजर्व बैंक अपने कई प्रयासों में लगभग फेल साबित हुआ है और मुद्रास्फीति की दर लगातार रिजर्व बैंक के सहनीय स्तर 6% से अधिक बनी हुई है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वर्ष 2022-23 के लिए भारत की विकास दर का अनुमान घटाकर 6.8% किए जाने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में सुस्ती के कारण खुदरा महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने भी स्वीकार किया है कि विनिर्माण और खनन के क्षेत्र में खराब प्रदर्शन की वजह से आर्थिक दर को ऊंचा रख पाना बड़ा कठिन बना हुआ है। इसके अलावा बढ़ता राजकोषीय और व्यापार घाटा जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता आदि के चलते महंगाई पर नियंत्रण कर पाना बहुत आसान नहीं है।

विनिर्माण के साथ खनन में आए संकुचन ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया है। खुदरा महंगाई की ऊंची दरों के साथ-साथ विनिर्माण में सुस्ती के चलते आय के वितरण में सबसे निचले पायदान पर रहने वाले लोगों के लिए गुजर-बसर से जुड़ी चुनौतियों में और बढ़ोतरी हो सकती है। मौजूदा हालात में गरीबों को बुनियादी खाद्य सुरक्षा एक अहम सवाल है, शायद इसीलिए प्रधानमंत्री ने खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 31 दिसंबर 2023 तक गरीबों को मुफ्त अनाज योजना को बढ़ा दिया है।

मौजूदा आर्थिक हालात पर शशिकांत दास ने साफगोई से बयान दिया है कि विकास दर पहले की तुलना में घटेगी और महंगाई का रुख ऊपर की तरफ बना रहेगा। लेकिन आम आदमी तो इस समस्या से निजात पाना चाहता है। समस्या से निकलने का कोई मजबूत आधार उन्होंने नहीं प्रस्तुत किया जबकि इसके बारे में कारगर कदम उठाने का काम रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय का है।

विडंबना है कि जिस तरह हमारे यहां थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में अंतर रहता है ठीक उसी तरह रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के बयान भी एक दूसरे से कई बार उलट होते हैं। यहां तक कि विकास दर के अनुमान भी कई बार वित्त मंत्रालय रिजर्व बैंक से उलट प्रस्तुत कर देता है। रिजर्व बैंक महंगाई की ओर इशारा कर रहा है, लेकिन वित्त मंत्री और उनका मंत्रालय यह मानने को तैयार नहीं है कि भारत में मंदी का वातावरण है। उन्हें भरोसा है कि जल्दी ही देश इस संकट से बाहर निकल आएगा।

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दुनिया भर में मंदी का आलम है। विश्व बाजार में भारतीय उत्पाद की खपत बढ़ाना इस समय टेढ़ी खीर है। आयात बढ़ने के कारण विदेशी मुद्रा का भी बोझ बढ़ रहा है। डॉलर के बाजार में रुपया गिरकर सर्वकालिक निम्न स्तर तक पहुंच चुका है। ऐसे में दुनिया के ऊपर मंडरा रही मंदी की आशंका तथा पड़ोसी मुल्कों की दुर्दशा से सबक लेते हुए देश के अर्थ से जुड़े हुए तंत्र को महंगाई बांधने के लिए फौरी तौर पर कारगर कदम उठाने की जरूरत है।

यह भी पढ़ें: नए साल में महंगाई को लेकर राहत भरी खबर, थोक मूल्य सूचकांक में आई गिरावट

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
Inflation is down as per official statistics then why price rising in Indian market
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