क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

Opposition Unity: ईडी से परेशान विपक्ष की एकता कब तक टिकेगी?

विपक्षी एकता में केसीआर, ममता बनर्जी और केजरीवाल सबसे बड़ी बाधा हैं, तीनों ही ऐसे किसी चुनावी गठबंधन में शामिल होने को तैयार नहीं जिसका नेतृत्व कांग्रेस के हाथ में हो।

Google Oneindia News
how long opposition Unity against ED will last

Opposition Unity: संसद भवन के भीतर चल रही विपक्षी दलों की बैठकों ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की संभावनाएं जगाई हैं| हालांकि इन बैठकों में तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने हिस्सा नहीं लिया| कांग्रेस की सहयोगी एनसीपी ने बैठक में तो हिस्सा लिया, लेकिन 15 मार्च को जब सभी सांसदों के ईडी दफ्तर तक पैदल मार्च की बात आई, तो एनसीपी पीछे हट गई| ईडी निदेशक को लिखी गई चिठ्ठी पर भी एनसीपी ने दस्तखत नहीं किए हैं|

how long opposition Unity against ED will last

मल्लिकार्जुन खड़गे की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि चार राज्यों में कांग्रेस की जड़ों में मठ्ठा डालने वाली आम आदमी पार्टी उनकी बुलाई गई बैठकों में शामिल होने लगी है| कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रही समाजवादी पार्टी भी बैठक में आ रही है| लेकिन अखिलेश यादव भी ममता-केजरीवाल-केसीआर के साथ खड़े नजर आ रहे हैं, जो कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहते| अखिलेश अभी कांग्रेस के साथ यूपी में गठबंधन को लेकर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं| इतना ही नहीं अखिलेश यादव भाजपा और कांग्रेस को एक बता रहे हैं|

17 मार्च को सपा अपना अधिवेशन पश्चिम बंगाल में करने जा रही है और अखिलेश कोलकाता में ममता बनर्जी से भी मुलाकात करेंगे| अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, केसीआर और केजरीवाल का एक अलग मोर्चा बनता दिख रहा है| हालांकि टीवी डिबेट में तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और भारत राष्ट्र समिति के प्रवक्ता किसी न किसी तरह की विपक्षी एकता हो जाने की संभावना जता रहे हैं|

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार बड़ा जोखिम उठाने के मूड में हैं, इसलिए बजट सत्र के पहले भाग में उन्होंने चुटकी लेते हुए लोकसभा में कहा था कि ईडी ने विपक्षी एकता करवा दी है| यही सच है, क्योंकि जैसे ही ईडी ने मनीष सिसोदिया पर हाथ मारा, आम आदमी पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की बुलाई बैठक में पहुंच गये| जबकि कांग्रेस ने सिसोदिया की गिरफ्तारी का न सिर्फ समर्थन किया है, बल्कि शराब घोटाले की पूरी जांच की मांग भी की है|

उधर तृणमूल कांग्रेस ने साफ़ कहा है कि वह कांग्रेस की ओर से बुलाई गई बैठक में नहीं जाएगी, क्योंकि लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी उनकी नेता ममता बनर्जी पर अनाप शनाप आरोप लगा रहे हैं| अधीर रंजन चौधरी ने हाल ही में कहा था कि ममता बनर्जी पर भरोसा नहीं किया जा सकता, उन्होंने अडानी ग्रुप पर आई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर ममता बनर्जी की चुप्पी पर भी सवाल उठाया था| उन्होंने कहा था कि ममता की चुप्पी का कारण यह है कि अडानी के मुद्दे पर ममता और मोदी में युद्धविराम हो गया है। इस संबंध में प्रमाण देते हुए चौधरी ने कहा था कि ताजपुर पोर्ट बनाने के लिए ममता का अडानी ग्रुप के साथ एमओयू साईन हो चुका है|

अभी संसद में जो भी विपक्षी एकता दिख रही है, उसका कारण अडानी और ईडी ही हैं| विपक्ष इन दोनों मुद्दों पर सरकार के खिलाफ एकजुट हुआ है, इसलिए इसे संसद के बाहर विपक्षी एकता की संभावना के तौर पर देखना जल्दबाजी होगी| संसद के भीतर अडानी और ईडी के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ खड़ी दिखाई दे रही आम आदमी पार्टी ने कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ विधानसभा चुनावों में गतिविधियाँ बढ़ा दी हैं| अरविन्द केजरीवाल ने पिछले एक हफ्ते में इन सभी राज्यों में दौरा किया और सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया| इन राज्यों में अगर आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ती है, तो गोवा और गुजरात की तरह कांग्रेस का बंटाधार करेगी और भाजपा को फायदा पहुंचाएगी|

सच यह है कि आम आदमी पार्टी को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि उसके कारण विपक्षी वोट बंटते हैं और भाजपा को फायदा होता है| असुदुद्दीन ओवैसी और अरविन्द केजरीवाल को अपनी राजनीति से मतलब है| दोनों भाजपा विरोध की राजनीति करते हैं, लेकिन विपक्षी एकता में शामिल नहीं होकर भाजपा को फायदा पहुंचाते हैं। कांग्रेस इस बात को समझती है कि उत्तर भारत में केजरीवाल उसके रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा बन गए हैं| इसलिए न चाहते हुए भी कांग्रेस कर्नाटक में आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन का प्रयोग करना चाहती है| बाद में उस प्रयोग को वह मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ में भी बढ़ाना चाहती है। आम आदमी पार्टी को इस तरह के फीलर भेजे जा रहे हैं|

भाजपा यह समझती थी कि राहुल गांधी के लंदन में दिए गए भाषणों को मुद्दा बनाकर वह विपक्षी एकता तोड़ने में कामयाब हो जाएगी| सच यही है, राहुल गांधी के बचाव की लड़ाई कांग्रेस अकेले ही लड़ रही है। आम आदमी पार्टी और बाकी विपक्षी दल राहुल गांधी के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ नहीं हैं, क्योंकि वे अभी भी 2024 के चुनाव में राहुल का चेहरा सामने रख कर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं| राहुल गांधी के मुद्दे पर कांग्रेस का समर्थन करके वे राहुल को नेता नहीं बनाना चाहते| हालांकि राहुल के लंदन में दिए गए भाषण के बचाव में कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी के ऐसे छह भाषण ढूंढ लिए हैं, जो उन्होंने विदेशों में जाकर दिए थे, जिनमें वैसी ही बातें झलकती हैं, जैसी राहुल गांधी ने कही हैं| लेकिन राहुल गांधी के लंदन में दिए गए भाषणों के मुद्दे पर फिलहाल भाजपा का पलड़ा भारी है|

कांग्रेस को कमजोर होते देख राहुल के भाषणों का ड्राफ्ट तैयार करने वाले सैम पित्रोदा को उनके बचाव में सामने आना पड़ा है। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह राहुल के लंदन में दिए गए भाषणों को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रही है और झूठ फैला रही है| लगातार कई ट्विट करके सैम पित्रोदा ने कहा है कि राहुल गांधी ने अमेरिका और यूरोप से भारत में दखल देने की अपील नहीं की थी बल्कि उन्होंने कहा था कि भले ही भारत में लोकतंत्र की मौजूदा दशा चिंताजंक है, लेकिन भारतीय लोकतंत्र विश्व में सर्वश्रेष्ठ है| उन्होंने कहा था कि यह भारत की अंदरुनी समस्या है और भारत के लोग इससे निपट लेंगे, हमने कभी भी किसी विदेशी देश को मदद के लिए नहीं बुलाया|

सैम पित्रोदा ने भारतीय मीडिया पर भी अपना गुस्सा उतारते हुए लिखा है कि मीडिया भी भाजपा से सांठगांठ करके झूठ फैला रहा है| राहुल गांधी ने खुद भी लोकसभा में सफाई देने का मौक़ा मांगा है और उन पर लगे आरोपों को गलत बताया है|

सैम पित्रोदा को यह सफाई दो कारणों से देनी पडी, एक तो यह कि कांग्रेस बचाव करने में कमजोर पड़ रही थी, और दूसरे विपक्ष के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से मिली लोकप्रियता को खत्म होते देख कर खुश थे| क्योंकि वे राहुल गांधी को नेता बना कर किसी भी हालत में चुनाव लड़ने को तैयार नहीं|

यहां तक कि विपक्षी एकता के सबसे बड़े हामी नीतीश कुमार ने अभी एक बार भी राहुल गांधी का चेहरा सामने रख कर चुनाव लड़ने की बात नहीं कही| स्टालिन के जन्मदिन पर हुए जमावड़े में फारूख अब्दुल्ला तक ने राहुल के नाम की पैरवी नहीं की, बल्कि चुनाव बाद फैसला करने की बात कही| विपक्षी एकता में केसीआर, ममता बनर्जी और केजरीवाल सबसे बड़ी बाधा हैं, तीनों ही ऐसे किसी चुनावी गठबंधन में शामिल होने को तैयार नहीं जिसका नेतृत्व कांग्रेस के हाथ में हो|

यह भी पढ़ें: Modi and Rajasthan: राजस्थान में रैलियों द्वारा मोदी की नजर लोकसभा की कमजोर सीटों पर

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

Comments
English summary
how long opposition Unity against ED will last
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X