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Banking Sector: कारोबारियों को राहत, बैंक वालों की सांसत

जीएसटी काउंसिल की 48 वीं बैठक में 2 करोड़ रुपए तक गड़बड़ियों के मामले में मुकदमा नहीं चलाने संबंधी प्रस्ताव पर सहमति बन गई है। अभी तक यह सीमा 1 करोड़ रुपए की थी। यह फैसला कारोबारियों को बड़ी राहत देने वाला है।

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GST Council meeting Big decision banking Sector relief to businessmen

Banking Sector: गत सप्ताह सम्पन्न हुई जीएसटी काउंसिल की 48 वीं बैठक में 2 करोड़ रुपए तक की गड़बड़ी वाले मामलों में मुकदमा नहीं चलाने के साथ-साथ सरकारी ऑफिसर के काम में बाधा पहुंचाने, सबूतों से छेड़छाड़ करने और आवश्यक सूचनाएं मुहैया न कराने जैसे आरोपों को भी दंडनीय अपराध की श्रेणी से बाहर रखने की बात कही गई है।

दरअसल कारोबारियों के लिए टैक्स चुकाना उतना बड़ा सर दर्द नहीं होता जितना कर अधिकारियों को इस बात का विश्वास दिलाना कि उन्होंने नियमानुसार टैक्स भर दिए हैं। बहुधा इसे लेकर दोनों पक्षों में मतभेद होता है कि कितना टैक्स चुकाया गया है और कितना टैक्स बनता है। अगर यह मतभेद आपस में नहीं सुलझता तो मामला अदालत की चौखट तक जाता है, इससे अदालतों पर तो बोझ बढ़ता ही है, व्यापार सुगमता (इज ऑफ डूइंग बिजनेस) का दावा भी कमजोर होता है।

सरकार द्वारा कारोबारियों को राहत पहुंचाने वाला यह कदम निश्चित रूप से न सिर्फ सराहनीय है बल्कि उनके कारोबार को सुगम बनाने वाला भी है। लेकिन चालू वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही में बैंकों के मुनाफे में बेहतरी के बावजूद उनका प्रदर्शन सभी मानकों पर अच्छा नहीं है। "एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा" वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए रिजर्व बैंक ने अपनी ताजा मौद्रिक समीक्षा में रेपो रेट को बढ़ाकर 6.25% कर दिया है। पहले से ही शिथिल पड़े बैंक कारोबार की गति रेपो रेट के बढ़ जाने से और अधिक सुस्त पड़ने की आशंका है।

व्यापारी अक्सर बैंकों के साथ मिलकर कारोबार करते हैं और बैंक कारोबार फिलहाल कई मुश्किलों के दौर में है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट 5.90 % से बढ़ाकर 6.25% कर देने से कर्ज महंगा होगा, बैंकों की पूंजी लागत बढ़ जाएगी जिसके लिए उन्हें फिर से ब्याज दर बढ़ानी पड़ेगी। महंगी ब्याज दर की वजह से सूक्ष्म, लघु, मझौले और कई प्रकार के बड़े उद्योग भी कर्ज़ लेने से और परहेज करेंगे, जिसके चलते पहले से ही सुस्त पड़ी आर्थिक गतिविधियां और अधिक नकारात्मक प्रभाव पैदा करेंगी, जिसका सीधा खामियाजा बैंकिंग कारोबार को उठाना पड़ सकता है।

मालूम हो कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए मई 2022 के बाद से लेकर 15 दिसंबर 2022 तक रेपो दर में 2.25% की रिकॉर्ड बढ़ोतरी की गई है। बावजूद खुदरा महंगाई रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित महंगाई दर की उच्चतम सीमा 6% से अधिक बनी हुई है। हालांकि अक्टूबर महीने में थोड़ी गिरावट देखी गई, जिस को आधार बनाकर रिजर्व बैंक रेपो दर में बढ़ोतरी के रास्ते पर आगे बढ़ा है। लेकिन यह तय है कि इस कदम से कर्ज महंगे होंगे, बैंकों की पूंजी लागत बढ़ेगी, परिणाम स्वरूप उन्हें फिर से अपनी ऋण दरें बढ़ानी पड़ेगी।

ज्ञात हो कि कोरोना महामारी के बाद उधारी में तेज उठाव और ब्याज दर में कमी के कारण बैंकों को अपने डिपॉजिट बढ़ाने के लिए तरह-तरह के पापड़ बेलने पड़ रहे थे। यहां तक कि बैंक कर्मियों को अनिवार्य जमा का लक्ष्य भी दिया जा रहा है। पिछले 1 साल में केवल 4 सरकारी बैंकों के जमा में थोड़ी वृद्धि हुई जबकि अन्य सरकारी बैंकों की उधारी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई।

निजी बैंकों के हालात भी कमोबेश ऐसे ही हैं। बैंकों की शुद्ध ब्याज आय में वृद्धि उधारी के उठाव में तेजी के कारण हुई, लेकिन बैंक जमा में उधारी के अनुपात में वृद्धि नहीं हो पा रही है। उधारी और जमा में भारी अंतर के कारण बैंकों के सिर पर तरलता का संकट बढ़ता जा रहा है। हालांकि वर्ष 2022 -23 की दूसरी तिमाही में हुए बैंकों के मुनाफे को आगे कर उनकी मुश्किलें कम होने का दावा किया जा रहा है लेकिन बैंकों की सेहत को सिर्फ मुनाफे के बैरोमीटर से नहीं नापा जा सकता। मुनाफे में बढ़ोतरी का बड़ा कारण एनपीए और आकस्मिकता के मद में की जा रही कटौती भी प्रमुख है। गौरतलब है कि इस दरमियान बैंकों ने 13% तक की कटौती की है।

वित्त वर्ष 2022-23 के सितंबर वाली तिमाही में सूचीबद्ध बैंकों का एनपीए घटकर 6.62 लाख करोड़ रुपए रह गया है, जिसमें सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी 4.87 लाख करोड रुपए है। इनका शुद्ध एनपीए 1.68 लाख करोड़ रुपए है जिसमें सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी 1.29 लाख करोड़ रुपए है। वर्ष 2018 में सभी वाणिज्यिक बैंकों का सकल एनपीए 10.4 लाख करोड़ रुपए था ,जबकि शुद्ध एनपीए 5.2 लाख करोड़ रुपए था। इस अवधि में सरकारी बैंकों का सकल एनपीए 8.96 लाख करोड़ रुपए था जबकि शुद्ध एनपीए 4.54 लाख करोड़ रूपए था।

इसी तरह निजी क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए 1.92 लाख करोड़ रुपए था। जबकि शुद्ध एनपीए 64 हजार करोड़ रुपए था। एनपीए में कमी आने का कारण वसूली नहीं है। वास्तव में बैंकों ने विगत 5 सालों में बटटे खाते में डाले या माफ किए गए कर्ज से केवल 1 लाख 32 हज़ार करोड़ रुपए की वसूली की है। एनपीए में आई कमी का बड़ा कारण कोरोना के दौरान एनपीए के नियमों को शिथिल करना और कारोबारियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना रहा है। इस कारण बैंकों की बैलेंस शीट तो मजबूत हुई है, लेकिन बैंक कारोबार की राह रेपो रेट बढ़ने के बाद कठिन होती दिख रही है।

सरकार 'इज ऑफ डूइंग बिजनेस' को लेकर प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है, जिसका नतीजा है कि जहां वर्ष 2014 में हम व्यापार सुगमता सूची में 142वें स्थान पर थे, अब वहां से आगे बढ़कर 2022 में 63 वें स्थान पर आ गए हैं। यह बड़ी छलांग है। सरकार कारोबार और कारोबारियों को बेहतर माहौल प्रदान करने, जरूरी बुनियादी ढांचा देने का प्रयास कर रही है, वही कारोबार के केंद्र बैंकों के कारोबार की राह क्रमशः कठिन होती जा रही है।

ऐसे मे सिर्फ 6 महीने की छोटी अवधि में सवा दो प्रतिशत रेपो रेट बढ़ाने का दांव, बैंकों के लिए कहीं उल्टा ना पड़ जाए, इसकी आशंका बनी हुई है।

यह भी पढ़ें: Inflation and RBI: अकेले रिजर्व बैंक नहीं रोक सकती महंगाई

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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GST Council meeting Big decision banking Sector relief to businessmen
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