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जल्द करो किसान के दर्द का निदान नहीं चलेगा पल्ला झाड़ने से काम!

By दीपक कुमार त्यागी
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पिछले लगभग एक हफ्ते से दिल्ली के सीमावर्ती सभी मुख्य मार्गों पर देश का अन्नदाता किसान अपनी मांगों को लेकर बैठा हुआ है। किसान अपने दुखदर्द के निदान की उम्मीद केंद्र सरकार से लगाए धरने पर महीनों के राशन-पानी के साथ बेहद विपरीत परिस्थितियों में सड़क पर डेरा डालकर कोराना जैसी घातक महामारी में अपनी जान दाव पर लगाकर बैठा हुआ है। इन धरनारत किसानों के समर्थन में देश के विभिन्न राज्यों में भी जगह-जगह किसान धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, प्रदर्शन शांतिपूर्ण होने के बाद भी सड़कों पर भयंकर जाम की इस स्थिति से बहुत सारी जगहों पर बेहद अव्यवस्था का माहौल बना हुआ है। लेकिन फिर भी देश के अन्नदाता की गंभीर समस्याओं के आगे अधिकांश लोगों को यह दिक्कत बहुत छोटी दिखाई देती है। पिछले कुछ वर्षों से भाजपा के शीर्ष नेताओं का एक बहुत पुराना वादा देश के किसानों के बीच बहुत ज्यादा लोकप्रिय है कि देश के किसानों को उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी 'एमएसपी' पूर्व में कृषि मसलों को लेकर बनी स्वामीनाथन कमेटी की अनुशंसा के आधार पर की गयी गणना के अनुसार दिया जाएगा और साथ ही मोदी सरकार का यह वादा भी लोकप्रिय है कि वर्ष 2022 तक देश के किसानों की आय को दोगुना कर दिया जायेगा।

जल्द करो किसान के दर्द का निदान नहीं चलेगा पल्ला झाड़ने से काम!

लेकिन आज देश में परेशान किसानों की हालात किसी से भी छिपी हुई नहीं है। मई 2014 में केंद्र में पहली बार मोदी सरकार बनने के बाद किसानों को अपने वर्षों पुराने दुख दर्द के निदान की कुछ उम्मीद की किरण दिखाई दी थी और किसानों की आय बढ़ाने के मसले पर कुछ काम मोदी सरकार के द्वारा किये भी गये थे, दूसरी बार केंद्र में सरकार बनने के बाद किसानों की आय बढाने की मंशा से ही मोदी सरकार के द्वारा तीन नए कृषि कानून पास किये गये हैं। लेकिन जब से कोरानाकाल में आननफानन में किसानों के हित का बताकर यह नए कृषि कानून देश की संसद के द्वारा पास किये गये हैं, तब से ही देश के किसान इन पारित तीनों नए कानूनों का जमकर सड़क पर उतरकर विरोध कर रहे है। बड़ी संख्या में किसानों व उनसे जुड़े संगठनों का मानना है कि किसानों से जुड़े तीनों नए कानून देखने में भले ही किसान हित के लगते हो, लेकिन असल में वो बिना 'एमएसपी' के अधिकार के प्रतिगामी सोच व किसानों के सीमित अधिकारों के साथ व्यापारियों के हित में ड्राफ्ट किये गए हैं। किसानों का मानना है कि यह तीनों कृषि कानून किसानों को धीरे-धीरे फिर से देश के जमाखोर व्यापारियों और छोटे-बड़े कॉरपोरेट घरानों, मल्टीनेशनल कंपनियों के रहमोकरम पर छोड़कर, अंततः किसान विरोधी साबित होंगे। आज सत्ता में बैठे लोगों के द्वारा अन्नदाता किसानों को रोकने के लिए दिल्ली में सीमाओं पर बॉर्डर की तरह संगीनों के साये वाली बनाई गयी स्थिति देखकर आम लोग कहते हैं कि सरकार में बैठे कर्ताधर्ताओं जरा सोचो विचार करो कि किसान को इस तरह से मार डालोगे, तो पेट भरने के लिए अन्न कहाँ से लाओगे?

जल्द करो किसान के दर्द का निदान नहीं चलेगा पल्ला झाड़ने से काम!

किसानों के आक्रोश की जड़़ पर अगर ध्यान दे तो हमकों वर्ष 2013 व 2014 में जाना पड़ेगा, उस समय भाजपा के शीर्ष नेताओं ने केन्द्र की सत्ता हासिल करने के लिए देश के किसानों को बहुत बड़े-बड़े सपने दिखाने का कार्य किया था, लेकिन अब किसानों को लगता है कि पिछले 6 वर्ष में मोदी सरकार ने उनसे किये अपने वादों पर कोई भी ठोस काम नहीं किया, उनके वादें किसानों के साथ जुमला और एक बहुत बड़ा धोखा है, वर्ष 2014 से ही भाजपा को सपोर्ट करने वाले बहुत सारे किसान आज अपने आपको केंद्र सरकार के द्वारा ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

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इसलिए देश में एकबार फिर अन्नदाता किसान अपने अधिकारों को पूरा करवाने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे हुए हैं। शुरुआत में किसानों के आंदोलन को नाकाम करने के लिए दिल्ली पहुंचने के पहले हर तरफ सरकार के द्वारा दमनकारी नीतियों का प्रयोग करते हुए, किसानों पर लाठीचार्ज, आंसू गैस, वाटर कैनन आदि का इस्तेमाल किया गया। जिसने किसान आंदोलन की इस आग में घी डालकर आंदोलन की आग को ओर तेजी से भड़काने का काम किया है, किसानों के हुजूम को रोकने के लिए हाईवे व अन्य सड़कों पर आवागमन को बाधित करने के लिए सरकारी सिस्टम के द्वारा विभिन्न प्रकार के जुगाड़ लगाये गए, जेसीबी से गहरे-गहरे गड्ढे खोदकर जगह-जगह सड़कों को बंद करा दिया गया, बड़े-बड़े पत्थर, कंटेनर, ट्रक आदि वाहन खड़े करके किसानों के रास्ते में अवरोध उत्पन्न करके किसानों के बड़े आंदोलन को दिल्ली से दूर रखने का हर संभव प्रयास किया गया।

जल्द करो किसान के दर्द का निदान नहीं चलेगा पल्ला झाड़ने से काम!

केंद्र सरकार ने किसी भी हालात में किसानों को दिल्ली से दूर रखने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना लिए, दिल्ली की सभी राज्यों से लगने वाली सीमाओं पर बॉर्डर की तरह संगीनों के साये में लोगों की आवाजाही हो रही है। देश के आम लोग भी बेहद आश्चर्यचकित हैं कि दिल्ली में अपनी मांगों को लेकर हमारे अपने अन्नदाता किसान आ रहे हैं या कोई आतंकी! वैसे भी सत्ता के मद में चूर होकर हमारे अपने ही कुछ राजनेताओं ने तो किसानों को खालिस्तानी आतंकी तक ठहराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है, सत्ता पक्ष के कुछ राजनेताओं व उनके समर्थक लोगों की इस नासमझी वजह से किसानों के बीच जबरदस्त आक्रोश व्याप्त है, जिसकी वजह से देश में जगह-जगह हंगामा और ज्यादा बरपा हुआ है। देश का पेट भरने वाले अन्नदाता किसानों के साथ अपने ही देश की सरकारों का यह व्यवहार बिल्कुल ही समझ से परे है। अंत में सरकार की तरफ से किसानों को दिल्ली में बुराड़ी के पास संत निरंकारी ग्राउंड तक आने की अनुमति दी गयी, लेकिन कुछ किसानों को छोडकर अधिकांश किसानों ने वहां जाने से इंकार कर दिया, सरकार ने कहा कि जब किसान बुराड़ी ग्राउंड चले जायेंगे उसके बाद ही वार्ता शुरू होगी, लेकिन किसानों के अड़ियल रुख को देखते हुए, हफ्ते भर बाद किसानों की हिम्मत के आगें सरकार को फिलहाल तो घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा है और उन्होंने किसानों से वार्ता करने का रास्ता अख्तियार कर लिया है, जो एक अच्छा संदेश है। क्योंकि बातचीत से ही समस्याओं के समाधान का रास्ता निकलता है।

जल्द करो किसान के दर्द का निदान नहीं चलेगा पल्ला झाड़ने से काम!

देश की आजादी के बाद से आजतक हम अपने देश के किसानों की स्थिति पर नज़र डाले तो जबरदस्त मेहनत व मंहगी लागत के बाद भी किसान हमेशा अपनी फसल का उचित मूल्य प्राप्त होने से वंचित रह जाता है। सबके लिए अन्न पैदा करने वाला किसान खराब आर्थिक स्थिति के चलते आत्महत्या करने तक के लिए मजबूर है। इसे हमारे देश के सिस्टम की विडंबना ही कहा जाना चाहिए कि सरकारी आंकड़ों में तो दिन-प्रतिदिन बहुत तेजी से कृषि पैदावार बढ़ रही है, लेकिन वास्तव में धरातल पर किसानों की बदहाली बेहद तेजी से बढ़ रही है। आज खेती की स्थिति यह हो गयी है कि किसान को अपने परिवार पेट भरने के लिए परेशानी हो रही है, इसलिए अब किसानों के परिवारों के बच्चे अब खेती नहीं करना चाहते हैं, वह दिन-प्रतिदिन बेहद तेजी से खेती से विमुख हो रहे हैं, अगर देश में यह स्थिति जारी रही तो लोगों के पेट भरने के लिए आखिर अन्न कौन पैदा करेगा। आज भी सोचने वाली बात यह है कि किसी भी राजनीतिक दल के पास इस स्थिति से निपटने की न तो कोई बेहद ठोस कारगर सुनियोजित योजना और न ही किसी भी दल ने किसानों के दर्द को समझ कर उसके निदान करने के लिए आज़ादी से आजतक दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई है। आज देश में किसानों की स्थित यह हो गयी है कि जब-जब चुनाव नजदीक आते हैं, तो उस समय मेहनतकश किसानों को तरह -तरह के बेहद लोकलुभावन वादें परोस कर छला जाता है, उन्हें केवल अपने पक्ष में वोट दिलवाने के लिए केवल एक वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और बाद में नेताजी चुनाव जीतने के बाद उनसे किये सभी वादों को भूला जाता है, जो स्थिति हमारे कृषि प्रधान देश व हम सभी का पेट भरने वाले अन्नदाता किसानों के लिए बेहतर नहीं है।

(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
Government should Solve the issues of farmer soon, there is no short cut
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