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इंडिया गेट से: गुलाम नबी आज़ाद के कांग्रेस छोड़ने से कश्मीर की राजनीति में रोचक मोड़

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नई दिल्ली, 26 अगस्त: गुलाम नबी आज़ाद के कांग्रेस से इस्तीफे से भविष्य की जम्मू कश्मीर की राजनीतिक तस्वीर उभरने लगी है। आप तीन बातों को एक साथ जोड़कर देखेंगे तो आपके सामने भी भविष्य की तस्वीर साफ़ होने लगेगी। गुलाम नबी आज़ाद को जब नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा से भावभीनी विदाई दी थी, तब कुछ राजनीतिक विश्लेषकों को लगने लगा था कि वह भाजपा में शामिल हो जाएंगे, भाजपा में शामिल न हुए तब भी मोदी उन्हें राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत करवा कर राज्यसभा में भेज देंगे। क्योंकि इस से पहले भी राजनीतिज्ञ मनोनीत होते रहे हैं, जैसे कांग्रेस ने मणिशंकर अय्यर को मनोनीत किया था और भाजपा ने सुब्रहमन्यम स्वामी को मनोनीत किया था।

From India Gate: Interesting turning point in Kashmir politics after Ghulam Nabi Azad quits Congress

लेकिन मेरी शुरू से यह धारणा थी कि अगर नरेंद्र मोदी और गुलाम नबी की कुछ नजदीकी बढी है, तो मोदी उन्हें जम्मू कश्मीर के हालात सुधारने में इस्तेमाल करना चाहेंगे। क्योंकि आज़ाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं और दशकों तक जम्मू कश्मीर में जमीन पर काम किया है। वह जम्मू कश्मीर के हिन्दुओं और मुसलमानों में एक जैसे लोकप्रिय हैं। लेकिन राज्य में कांग्रेस का आधार नगण्य होने के कारण वह जम्मू कश्मीर में महत्वहीन हो गए थे।

कांग्रेस से इस्तीफे के बाद गुलाम नबी आज़ाद ने एक बार फिर साफ़ कर दिया है कि वह भाजपा में शामिल नहीं हो रहे, उनके कई विरोधी पिछले तीन साल से यही बात कह रहे थे कि वह भाजपा में जा रहे हैं, कुछ दिन पहले तक उन्हें उप राष्ट्रपति बनाए जाने की अटकलें भी लगाई जा रहीं थीं। यह बात तब भी गलत थी और अब गलत साबित हो गई है।

गुलाम नबी आज़ाद के कांग्रेस छोड़ने के बाद कांग्रेस ने पहली बार उन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा कि उन का मोदीफिकेशन हो गया है। यह बात जयराम रमेश ने बाकायदा कांग्रेस मुख्यालय में बुलाई गई प्रेस कांफ्रेंस में कही, वह कोई कांग्रेस के ऐरे गैरे नेता नहीं हैं, कांग्रेस के महासचिव हैं। आफ द रिकार्ड उन्होंने यह भी कहा कि मोदी की सरकार बनने के बाद 2015 में गुलामनबी आज़ाद को सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान दिया गया था, इसके अलावा राज्यसभा से रिटायर होने के बाद मोदी सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था। इन दो बातों से कांग्रेस यह कहना चाहती है कि गुलामनबी आज़ाद की 2015 से ही नरेद्र मोदी से सांठ गाँठ हो चुकी थी।

लेकिन कांग्रेस की ऐसी सोच संसदीय परंपराओं के खिलाफ है। प्रणब मुखर्जी को भी 1997 में तब सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिला था, जब केंद्र में गैर कांग्रेस सरकार थी। अटल बिहारी वाजपेयी को 1994 में कांग्रेसी सरकार के समय सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिला था। कांग्रेस के ही डा.कर्ण सिंह और जदयू के शरद यादव को भी मोदी सरकार के समय सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिला था। इस लिए गुलामनबी आज़ाद पर लगाया गया यह आरोप ओछी और छोटी मानसिकता का प्रमाण है।

अब उन तीन चार बातों पर आते हैं, जो एक साथ हुई हैं और भविष्य की राजनीति का संकेत देती हैं। ये तीनों बातें गुलाम नबी आज़ाद के इस्तीफे से पहले सिर्फ दस दिन में घटित हुई हैं और सभी का ताल्लुक जम्मू कश्मीर से है। सबसे पहले तो यह हुआ कि 17 अगस्त को जम्मू कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने एलान किया कि जम्मू कश्मीर में रह रहे हर व्यक्ति को वोट का अधिकार मिलेगा, किसी को मूल कश्मीरी नागरिक होने का प्रमाणपत्र देने की जरूरत नहीं है।

यही नियम सारे देश में लागू है, लेकिन इससे क्षेत्रीय पार्टियों नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी में खलबली मच गई, क्योंकि उन्हें लगा कि इससे जम्मू कश्मीर के मुस्लिम राज्य होने का विशेष करेक्टर ही बदल जाएगा। फारूक अब्दुला ने 21 अगस्त को गुप्कार एलांयस की मीटिंग बुलाई और मोदी सरकार के इस फैसले का कडा विरोध किया।

इस बैठक में कांग्रेस भी शामिल हुई और कांग्रेस ने बाकी क्षेत्रीय दलों के साथ मिल कर जम्मू कश्मीर में रहने वाले सभी लोगों को वोट का अधिकार दिए जाने को अदालत में चुनौती देने की बात कही। यह हैरान कर देने वाली बात थी कि 370 हटने के बाद से कांग्रेस जम्मू कश्मीर को मुसलमानों की एक्सक्यूलिस्व स्टेट बनाए रखने की गलतफहमी में है।

गुलामनबी आज़ाद कांग्रेस की इस पालिसी से कतई सहमत नहीं हैं। उन्होंने उसी दिन कांग्रेस की चुनाव कैंपेन कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, जबकि सोनिया गांधी ने 24 घंटे पहले ही उन्हें कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाया था। 25 अगस्त के अपने कालम में मैंने कहा था कि मोदी की रणनीति 2023 के जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में भाजपा को पहले नंबर की पार्टी बनाने की है, ताकि अन्य विधायकों को साथ मिला कर भाजपा अपनी सरकार बना सके। विधानसभा के पिछले चुनाव में भी भाजपा को जम्मू क्षेत्र से 25 सीटें मिलीं थी, जम्मू में कांग्रेस और अन्य दलों का लगभग सूपड़ा साफ़ हो गया था।

लेकिन मुस्लिम बहुल कश्मीर से भाजपा को कोई सीट नहीं मिली, वहां से 28 सीटें ला कर पीडीपी पहले नंबर की पार्टी बन गई थीं। पीडीपी-भाजपा की साझा सरकार और फिर महबूबा मुफ्ती की आतंकवादियों का संरक्षण करने की नीति से तंग आ कर भाजपा के सरकार तोड़ने की कहानी सब को पता ही है।

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दो दिन पहले तक यह नहीं दिखाई दे रहा था कि भाजपा अगर पहले नंबर की पार्टी बन कर उभर भी आई तो उसे समर्थन कौन देगा। कर्नाटक और महाराष्ट्र के उदाहरण हमारे सामने है जब कांग्रेस ने बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद भाजपा की सरकार नहीं बनने दी थी। यह बात अलग है कि उन दोनों राज्यों में दलबदल के बाद अंतत भाजपा की सरकारें बनीं, लेकिन जम्मू कश्मीर में ऐसी कोई संभावना भी नहीं दिख रही थी।

लेकिन दो दिन के अंदर ही तस्वीर एकदम बदल गई है। गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस से अपना 50 साल पुराना रिश्ता तोड़ दिया और जम्मू कश्मीर में क्षेत्रीय पार्टी बनाने का एलान कर दिया। गुलाम नबी आज़ाद अब नई पार्टी बना कर कांग्रेस का वोट बैंक तो खाएंगे ही, कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस औए पीडीपी के वोट बैंक में भी सेंध लगाएंगे।
अगर भाजपा अपनी सीटें बढा ले और गुलाम नबी आज़ाद 20-22 सीटें ले आएं तो नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को सत्ता से बाहर करने का मोदी-अमित शाह का सपना साकार हो जाएगा। फिर भले ही भाजपा को एकनाथ शिंदे की तरह गुलाम नबी आज़ाद को मुख्यमंत्री बनाना पड़े।

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
From India Gate: Interesting turning point in Kashmir politics after Ghulam Nabi Azad quits Congress
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