
Demographic Imbalance: देश में बढ़ते जनसंख्या असंतुलन से उत्पन्न चिंताएं और संघ नेतृत्व के सुझाव
Demographic Imbalance: इन दिनों पूरे देश में बढ़ती जनसँख्या और उसके नियंत्रण पर चर्चाएं हो रही हैं और चर्चा के केंद्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के हालिया बयान बताये जा रहे हैं।
देश के एक वर्ग विशेष ने विक्टिम कार्ड खेलते हुए इस मुद्दे को हिन्दू बनाम मुस्लिम कर दिया है और ऐसा प्रचारित किया जा रहा है मानो संघ मुस्लिमों की बढ़ती आबादी से घबराकर जनसँख्या नियंत्रण पर कानून की मांग कर रहा है।

दरअसल, विजयादशमी पर संघ के वार्षिक उत्सव पर मोहन भागवत ने कहा था, 'धर्म आधारित जनसंख्या असंतुलन एक महत्वपूर्ण विषय है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। जनसंख्या असंतुलन से भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होता है। जन्मदर में अंतर के साथ-साथ बलपूर्वक धर्मांतरण और घुसपैठ भी बड़े कारण हैं। जनसंख्या असंतुलन से देश अलग हो सकते हैं। पूर्वी तिमोर, कोसोवो और दक्षिण सूडान धर्मों के बीच असंतुलन के कारण नए देश बन कर उभरे हैं।'
देश में अल्पसंख्यकों की स्थिति के बारे में संघ प्रमुख ने कहा था, 'कुछ लोगों द्वारा ये डर फैलाया जा रहा है कि हमारे कारण अल्पसंख्यकों को खतरा है। यह न तो संघ का विश्वास है और न ही हिंदुओं का। संघ हमेशा से भाईचारे, सौहार्द और शांति के पक्ष में खड़ा रहा है।'
उनके वक्तव्य के बाद संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने प्रयागराज में जारी अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में कहा, 'धर्मांतरण और पलायन के कारण जनसंख्या असंतुलन बढ़ा है। देश के कुछ हिस्सों में अवैध घुसपैठ बढ़ी है और इस पर रोक लगाने की जरूरत है। जनसँख्या असंतुलन के कारण ही भारत समेत कई देशों का बंटवारा हुआ है।'
पलायन और घुसपैठ से हुआ जनसँख्या असंतुलन
देश के सीमावर्ती व तटीय राज्यों मसलन पश्चिम बंगाल, असम सहित उत्तर पूर्वी राज्य, जम्मू, कश्मीर, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल, गोवा आदि में जनसँख्या असंतुलन बढ़ते-बढ़ते असामान्य स्तर तक पहुँच गया है। भारत में बाहर से आकर बसने वालों में सबसे ज्यादा 32 लाख बंगलादेशी, 11 लाख पाकिस्तानी, 5.4 लाख नेपाली और 1.6 लाख श्रीलंकाई मुस्लिम हैं। उक्त सरकारी आंकड़ा गाहे-बगाहे हमारे समक्ष आता रहता है किन्तु अवैध रूप से भारत में आकर जनसँख्या असंतुलन उत्पन्न करने वाले कितने घुसपैठिये हैं, इसका आंकलन करना कठिन है। इस स्थिति के लिये सरकारी तंत्र पर सवालिया निशान लगते हैं और इसकी जवाबदेही तय होना चाहिए किन्तु अब स्थितियां आपे से बाहर हैं।
कानूनी तौर पर असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण जिसे नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स भी कहा जाता है, के तहत भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता प्रदान किए जाने हेतु 3.29 करोड़ आवेदन प्राप्त हुए थे जिनमें से 1.9 करोड़ लोगों को वैध भारतीय नागरिक माना गया जबकि शेष 1.39 करोड़ आवेदनों की विभिन्न स्तरों पर जांच जारी है। यह आंकड़ा 2017 का है। ये वे लोग थे जो स्वयं सामने आये थे। जो सामने ही नहीं आये, उनकी गणना का प्रश्न ही नहीं है। पश्चिम बंगाल के कई जिलों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं और बहुसंख्यक आबादी अवैध घुसपैठिये के रूप में रह रही है। इसी प्रकार धीरे धीरे देश के 9 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।
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प्रजनन दर की असमानता और धर्मान्तरण से हो रहा जनसँख्या असंतुलन
जनसँख्या असंतुलन पर बात करने से पहले प्रजनन दर को भी समझना चाहिए। 1992 में हिन्दुओं की प्रजनन दर 3.30 प्रतिशत थी वहीं मुस्लिमों में यह दर 4.41 थी। 2021 की बात करें तो एक अनुमान के अनुसार हिन्दुओं की प्रजनन दर 1.94 रही तो मुस्लिम प्रजनन दर 2.36 प्रतिशत रही। मुस्लिमों की प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से अभी भी अधिक है।
प्रजनन दर के इतर धर्मान्तरण ने भी हिन्दुओं की आबादी को घटाया है और यह सत्य किसी से छुपा नहीं है। 'भारत में धर्म' पर प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वेक्षण के नतीजों के अनुसार धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने हिन्दुओं का बड़ा हिस्सा दक्षिण भारत से है। हिन्दू से ईसाई बनने वालों में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों की संख्या अधिक है।
धर्मांतरण के कारण ही हरियाणा के मेवात इलाके के 100 से अधिक गाँव हिन्दू विहीन हो चुके हैं। धर्मांतरण पर जब-जब कड़े कानून की मांग की गई, ईसाई मिशनरियां, मुस्लिम समुदाय सहित अन्य राजनीतिक दल जिनकी राजनीति ही अल्पसंख्यक तुष्टिकरण से चलती है, ने कड़ा विरोध किया है।
याद कीजिये, सितम्बर, 2022 में जब कर्नाटक के कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी ने कर्नाटक विधान परिषद् में धर्मान्तरण रोधी बिल प्रस्तुत किया था तो कांग्रेस विधायक प्रियांक खड़गे ने कर्नाटक सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि यह सरकार एक व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों को खत्म करने की कोशिश कर रही है। जबकि बिल के मसौदे में स्पष्ट था कि किसी ऐसे व्यक्ति को प्रतिबंधित नहीं किया जा रहा है जो स्वेच्छा से अपना धर्म बदलता है।
इसके लिए व्यक्ति को स्वेच्छा से अपना धर्म बदलने की इच्छा बताते हुए डीसी के समक्ष आवेदन देना होगा। इस एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि तुष्टिकरण की राजनीति के कारण कैसे राजनीतिक दल ही धर्मान्तरण को परोक्ष रूप से बढ़ावा देने में लगे हैं।
जनसँख्या असंतुलन से बनते हैं नये देश
संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जिन देशों के अस्तित्व में आने को जनसँख्या असंतुलन का आधार बताया था उनके विषय में भी जान लीजिये। 1975 में ईस्ट तिमोर में आबादी में 40 प्रतिशत ईसाई थे जो 1990 में बढ़कर 90 प्रतिशत हो गये और अंततः 1999 में इंडोनेशिया से अलग देश बन गया।
2011 में साउथ सूडान में ईसाई आबादी बढ़ी और यह भी धर्म के आधार पर अलग देश बन गया। कोसोवो में 90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी हुई तो 2008 में सर्बिया से टूटकर वह भी दुनिया के नक्शे पर नये देश के रूप में उभरा।
इन सबसे पहले पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश सहित) के निर्माण का दंश तो हम झेल ही चुके हैं जो शुद्ध रूप से इस्लाम के नाम पर ही भारत को तोड़कर बनाया गया था। पाकिस्तान बनाने का तर्क सिर्फ इतना था कि उन हिस्सों में मुस्लिम जनसंख्या हिन्दुओं से अधिक हो गयी थी।
अतः संघ की चिंता बड़ी है और अतीत के सबक से महत्वपूर्ण भी। देश से एक और पाकिस्तान न बने इस हेतु जनसँख्या के असमान असंतुलन को रोकने के लिये समाज को जागरूक होना होगा। सरकारों से भी यही अपेक्षा है कि राष्ट्रीय हित में वे इस दिशा में कड़े कदम उठाये।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)